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दिल्ली में 2 साल से ड्रग कंट्रोलर नहीं, काढ़ा और सेनिटाइजर बनाने का लाइसेंस कौन दे?

दिल्ली में दो साल से कोई ड्रग कंट्रोलर ही नहीं है. यहां दो डिप्टी ड्रग कंट्रोलर के जरिए खानापूर्ति हो रही है. नियुक्ति इसलिए नहीं हो रही, क्योंकि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में है.

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प्रतीकात्म फोटो
प्रतीकात्म फोटो

  • दिल्ली में दो साल से कोई ड्रग कंट्रोलर ही नहीं
  • केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार की लड़ाई
  • मामला कोर्ट में लंबित, कोरोना की मार से ग्रस्त सुनवाई

आज खबर ये नहीं है कि दिल्ली में कोरोना वायरस से निपटने को हैंड सेनिटाइजर, पीने के जड़ी बूटियों और औषधियों वाले काढ़े यानी क्वाथ की किल्लत है. कालाबाजारी है या लोग इनके लिए परेशान हैं. आज की खबर तो ये है कि दिल्ली में दो साल से कोई ड्रग कंट्रोलर ही नहीं है. राजधानी में दो डिप्टी ड्रग कंट्रोलर के जरिए खानापूर्ति हो रही है. नियुक्ति इसलिए नहीं हो रही, क्योंकि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में है और इसकी सुनवाई भी कोरोना की मार से ग्रस्त है.

नतीजा ये कि पूरे देश की तरह दिल्ली में भी हैंड सेनिटाइजर और काढ़ा/क्वाथ की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन उसे पूरा करने को तैयार दवा कंपनियों को लाइसेंस मिले तो कैसे? लाइसेंस देने वाले तो आपसी लड़ाई में उलझे हैं और दोनों तरफ का दावा ये कि कोरोना को हराएंगे.

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फिलहाल, दिल्ली में आयुष विभाग के तहत आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं के निर्माण और अन्य तकनीकी फाइलें निपटाने के लिए दो असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर हैं. यूनानी दवाओं के लिए डॉ मोहम्मद खलिद और आयुर्वेदिक दवाओं के लिए डॉ विजय कुमार. दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से फैसला आते ही 30 जनवरी 2019 को इनकी नियुक्ति का फरमान जारी कर दिया. स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने अधिसूचना जारी कर दी कि उनकी नियुक्तियों के लिए उपराज्यपाल की अनुशंसा की अब कोई जरूरत ही नहीं है.

उम्र होने पर दोनों अफसर रिटायर हुए तो प्रिंसिपल सेक्रेटरी हेल्थ ने इनको सेवा विस्तार भी दिया, लेकिन आयुष विभाग के डायरेक्टर ने इन दोनों असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर्स से लाइसेंस जारी करने का अधिकार ले लिया. तब से मामला झूल रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर स्पष्टता के लिए फिर अर्जी लगाई गई है.

सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित

केंद्रीय पूल के अधिकारियों की नियुक्तियों और तबादलों को लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित हुआ, तो ड्रग कंट्रोलर की नियुक्ति भी खटाई में पड़ गई. जब तक ड्रग कंट्रोलर नहीं तो लाइसेंस दे कौन?

उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से अपील कर रहे हैं कि कोरोना को हराने के लिए औषधियों का काढ़ा पिएं, घर में बैठें. अब लॉकडाउन में आमजन काढ़ा बनाएं तो कैसे? आयुर्वेदिक और यूनानी दवा निर्माता कंपनियां इस काम के लिए आगे बढ़ीं, तो लाइसेंस प्रक्रिया ने रास्ता रोक लिया.

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इस राजनीतिक खींचतान के बीच कई आयुर्वेदिक और यूनानी दवा निर्माता कंपनियों ने सेनिटाइजर और क्वाथ बनाने के लिए लाइसेंस की अर्जी दी, तो संबंधितऑथोरिटीज ने साफ कह दिया कि उपराज्यपाल के दफ्तर से अनुशंसा आए बगैर कोई लाइसेंस नहीं बन सकता.

यानी दिल्ली में दवा निर्माण कर रही कंपनियों के लिए लॉकडाउन के दौरान किसी दूसरे राज्य मसलन हिमाचल प्रदेश, हरियाणा या फिर राजस्थान में स्थित अपनी निर्माणशालाओं तक जाकर निर्माण कार्य संचालित करना काफी पेचीदा काम है. अब ये कंपनियां इन ऑथोरिटीज के चक्कर लगा रही हैं, लेकिन ना तो दिल्ली सरकार अपने रवैए से टस से मस होने को राजी है और ना ही केंद्र सरकार के बाबू. सब कहते हैं हमने जो कह दिया सो कह दिया. अब कुछ नहीं हो सकता.

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दिल्ली सरकार के आयुष विभाग के अधिकारियों से बात करने पर उनका सीधा जवाब था कि असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर तो हैं, वही देखेंगे. अधिकारी कहते हैं जब तक कोर्ट ने स्पष्टता नहीं आती इन मामलों में उपराज्यपाल की अनुशंसा जरूरी है. यानी दिल्ली सरकार और केंद्र के नौकरशाहों के बीच अभी भी रार ठनी हुई है, जिसमें कोरोना की मारी जनता पिस रही है.

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