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दिल्ली: लॉकडाउन में अस्पतालों की बेरुखी से परेशान हो रहे डायलिसिस के मरीज

कोरोना वायरस की वजह से कुछ मरीजों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. शुगर, हार्ट और डायलिसिस के मरीजों पर दोहरी मार पड़ रही है. दिल्ली से ही अलग-अलग कहानियां सामने आ रही हैं. पेशेंट अस्पतालों पर मनमानी फीस वसूलने का आरोप लगा रहे हैं.

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डायलिसिस की बीमारी से जूझ रहे संदीप कुमार मंडल
डायलिसिस की बीमारी से जूझ रहे संदीप कुमार मंडल

  • दिल्ली में लगातार बढ़ रहे हैं कोरोना संक्रमण के केस
  • डायलिसिस, शुगर और हार्ट के रोगियों की बढ़ी मुश्किलें
कोरोना के दौर में हर शख्स कोरोना संक्रमण से बचने की कोशिशों में जुटा है. शुगर पेशंट, हार्ट अटैक और डायलिसिस के मरीजों को दोहरी मार पड़ रही है. राजधानी दिल्ली से भी ऐसे ही मामले सामने आ रहे हैं. परेशान रोगी अस्पतालों को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

शीदीपुरा के रहने वाले लाल बाबू ने जहां अपनी बीवी की मौत के लिए एंबुलेंस ना मिलने को ठहराया वहीं जमीन बेचकर डायलिसिस करवा रहे एक मरीज ने प्राइवेट एंबुलेंस वालों पर मनमानी रूपए ऐंठने का आरोप लगया है. कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही जाहिदा खातून की डेड बॉडी अस्पताल से 4 दिन बाद मिल पाई है.

दरअसल जाहिदा खातून की डायलिसिस दिल्ली के बड़े अस्पताल राम मनोहर लोहिया में पिछले करीब 7 सालों से चल रहा था. गर्दन में फिस्टुला बनने की वजह से अस्पताल ने इलाज करने से मना कर दिया. आरोप है कि महिला की हालत बिगड़ने पर करीब 8 घंटे बाद ही एंबुलेंस आई ऐसे में गंभीर हालत में इमरजेंसी के बाहर ही बीवी ने दम तोड़ दिया.

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हाई कोर्ट पहुंचा केस

परिजन मौत के लिए जिम्मेदार एलएमएल प्रशासन को ठहरा रहे हैं. आरोप है कि बुरे वक्त में अस्पताल ने साथ नहीं दिया और पीड़िता की मौत इमरजेंसी गेट के बाहर ही हो गई. यह घटना 26 अप्रैल की है. घटना के बाद 27 अप्रैल को नई सोच एनजीओ ने इस बाबत हाइकोर्ट में याचिका दायर की. पिटिशनर वरूण जैन का कहना है कि कोर्ट ने सभी सरकारी अस्पतालो को नोटिस कर दिया है.

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सरकारी आंकड़ा बताता है कि दिल्ली में 127 कैट्स एंबुलेंस काम कर रही है. 54 कोविड मरीजों के लिए और 73 नॉन-कोविड और नान क्रिटिकल पेशंट के लिए. 79 एंबुलेंस काम पर लगाई गई हैं.

एडवोकेट और पिटिशनर वरूण जैन का कहना है कि दो करोड़ से ज्यादा आबादी वाली दिल्ली में सिर्फ 30 एंबुलेंस कैसे इमरजेंसी में पड़े रोगियों की मदद कर सकती हैं. ऐसे में हार्ट, ब्रेन पेशंट के लिए तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं को और ज्यादा तेज किए जाने की जरूरत है. इमरजेंसी वाले पेशेंट की जान ना जाने पाए.

नहीं मिल रही सरकारी एंबुलेंस

करीब 1 साल से डायलिसिस की बीमारी से जूझ रहे संदीप कुमार मंडल की डायलिसिस हफ्ते में तीन बार होती थी. लॉकडाउन की वजह से अब यह दो बार हो पाती है. सरकारी ट्रांसपोर्ट ना चलने की वजह से ऑटो लिया लेकिन पैसा ज्यादा मांगने की वजह और पुलिस के आटो को परेशान करने की वजह से ऑटो छोड़कर एंबुलेंस करनी पड़ी.

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सरकारी एंबुलेंस नहीं मिल रही है, लिहाजा प्राइवेट एंबुलेंस की जो अब मनमाना चार्ज कर रहे हैं. ऑटो वाला 2000 से 3000 रुपए लेता है. बिहार में जमीन बेचकर पिताजी ने डायलिसिस के लिए पैसे भेजे थे. 14 महीनों में 10-12 लाख रुपए लग चुके हैं. किसी की मौत होने के बाद कोविड टेस्ट की रिपोर्ट आने में हफ्ता लग जाता है. जल्द से जल्द रिपोर्ट आ जाए जिससे कि डेड बॉडी के लिए परिजनों को ज्यादा लंबा इंतजार ना करना पड़े.

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