
पिछली रात पटाखों की आवाज हर दिल्लीवाले के घर तक गूंजी. हालांकि इस बार भी दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की मैन्युफैक्चरिंग, बिक्री और इस्तेमाल पर पाबंदी थी लेकिन 'ग्रीन क्रैकर्स' को मंजूरी दी गई यानी ऐसे पटाखे जो कम प्रदूषण फैलाने वाले बताए जाते हैं.
लेकिन सवाल ये है, क्या ये सच में ग्रीन हैं? इंडिया टुडे ने 12 घंटे के AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) के आंकड़े खंगाले और पिछले साल की दीवाली से तुलना की ताकि समझा जा सके कि दिल्ली की हवा इतनी जल्दी जहरीली कैसे होती है. रात 10 बजे AQI पहुंचा 691, फिर अचानक डेटा गायब!

दीवाली की रात वजीरपुर स्टेशन पर रात 10 बजे AQI 691 पहुंच चुका था. इसके बाद रात 10 बजे से सुबह 2 बजे तक का डेटा CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) की वेबसाइट से गायब रहा. जब अपडेट दोबारा शुरू हुए, तो AQI 985 हो गया था और एक घंटे बाद तो 999 की ऊपरी सीमा को भी छू गया. फिर सुबह 4 बजे तक यह घटकर 622 पर आ गया.

IITM के आंकड़ों से जोड़ी कड़ी
इस गैप को भरने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (IITM) के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. दीवाली की शाम 4 बजे से अगले दिन सुबह 11 बजे तक का डेटा (2024 और 2025) ट्रैक किया गया ताकि यह पता चल सके कि प्रदूषण के स्तर में गिरावट या बढ़ोतरी किस पैटर्न में हुई.
इस बार PM2.5 लेवल पिछले साल की तुलना में ज्यादा पाया गया. रात 1 बजे PM2.5 करीब 697 तक पहुंच गया, जो पिछले साल के 329 से दोगुना था. सीधे शब्दों में दीवाली से पहले की तुलना में प्रदूषण का स्तर तीन गुना बढ़ा.
सिर्फ पटाखे ही नहीं, और भी कई वजहें हैं
दीवाली के दौरान प्रदूषण बढ़ने की सीधी वजह भले पटाखे हों, लेकिन दिल्ली की हवा को गंदा करने में कई और फैक्टर भी काम करते हैं जैसे फसल जलाना (stubble burning), हवा की दिशा बदलना, तापमान में गिरावट और नमी (humidity) में उतार-चढ़ाव.
पराली या पटाखे...कौन बड़ा दोषी?

पंजाब सरकार के डेटा के मुताबिक, पंजाब और हरियाणा में 20 अक्टूबर को पराली जलाने के मामले सबसे ज्यादा दर्ज हुए. लेकिन इंडिया टुडे के विश्लेषण में पाया गया कि 15 सितंबर से 20 अक्टूबर के बीच दिल्ली के AQI और पराली के मामलों के बीच कोई स्थायी संबंध नहीं दिखा.
मध्य अक्टूबर तक प्रदूषण पराली के साथ बढ़ता दिखा, लेकिन दीवाली के पहले ही पैटर्न टूट गया यानी फायर काउंट घटा, फिर भी हवा जहरीली हो गई. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसका कारण त्योहार से कुछ दिन पहले ही पटाखे फोड़ना है.
'ग्रीन' पटाखे कितने ग्रीन?
कई रिसर्च यह दिखाती हैं कि ग्रीन क्रैकर्स सामान्य पटाखों से कम प्रदूषण फैलाते हैं, लेकिन पूरी तरह प्रदूषण-मुक्त नहीं हैं. ये कुछ खतरनाक धातुओं (toxic metals) को हटाते हैं और मैन्युफैक्चरिंग को थोड़ा सुरक्षित बनाते हैं, लेकिन इनके जरिए भी अल्ट्रा-फाइन पार्टिकल्स और रेजिडुअल टॉक्सिन्स निकलते हैं, जो हवा को नुकसान पहुंचाते हैं.
तापमान गिरा तो क्यों बढ़ गया AQI?
दीवाली के बाद दिल्ली का AQI कुछ समय के लिए अपने सबसे खराब स्तर पर पहुंच गया, लेकिन कुछ दिनों में हवा फिर सामान्य हुई.
एक रिसर्चर (जिनका नाम नहीं बताया गया) के मुताबिक, इसका कारण हवा की रफ्तार (wind speed) है.
दरअसल, दिल्ली की हवा सिर्फ बाहर से आने वाले स्रोतों पर निर्भर नहीं करती. वही वायुमंडलीय तत्व जैसे वायुदाब (air pressure), तापमान (temperature), हवा की गति (wind speed) और नमी (humidity) आदि तय करते हैं कि प्रदूषण हवा में कितनी देर तक टिका रहेगा.
हवा और तापमान का खेल
घंटे-घंटे के AQI डेटा का विश्लेषण बताता है कि हवा की गति बढ़ने पर प्रदूषक फैल जाते हैं और हवा थोड़ी साफ होती है. वहीं तापमान घटने पर हवा ठंडी और भारी हो जाती है, जिससे धूल और धुआं जमीन के पास ही फंस जाता है. नमी (humidity) और वायुदाब (pressure) का असर थोड़ा जटिल है.
इसे ऐसे समझें कि ज्यादा नमी हवा में मौजूद छोटे कणों (PM2.5) को पानी की बूंदों से जोड़ देती है, जिससे वे नीचे बैठ जाते हैं और थोड़ी राहत मिलती है. ज्यादा वायुदाब हवा के ऊपरी हिस्से को 'ढक्कन' की तरह बंद कर देता है, जिससे प्रदूषक ऊपर नहीं उठ पाते और सतह पर फंसे रहते हैं, यही वजह है कि स्मॉग गहराता है.