दिल्लीवाले घर से बाहर झांकते हैं तो काली धुंध का साया है. ये धुंध वायु प्रदूषण की कहानी कह रही है. वहीं सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों पर 'ध्वनि' प्रदूषण है. कमोबेश ये ध्वनि का प्रदूषण इस काली धुंध ने पैदा कर दिया है. हर नेता अपने को किसी पर्यावरण प्रेमी से कम नहीं आंका जाना चाहता है. इस तमाम वायु और ध्वनि प्रदूषण के बीच एक डेटा है जो दिमाग तक को हिला देता है. ये डेटा कहता है कि दिल्ली में पिछले छह साल में सिर्फ नौ दिन ही दिल्लीवालों ने शुद्ध-साफ हवा में सांस ली है.
अब पूरे साल न पराली जली, न पटाखे...फिर भी राजधानी गैस चैंबर ही रही. इसे पूरे सिस्टम और समाज की सामूहिक विफलता ही कहेंगे. अब भी वक्त है कि प्रदूषण कम कराने के लिए किसी रॉकेट साइंस का इंतजार करने के बजाय अपनी गलतियों को स्वीकारना और उन्हें सुधारना शुरू कर दें. अगर अब भी आंखें नहीं खोलीं तो आने वाले बुरे दौर के साक्षी और भागी हमसब कलेक्टिविली ही होने वाले हैं.
ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि दिल्लीवालों को पराली के लिए किसानों पर उंगली उठाने का कोई हक नहीं. आखिर हर सीजन में हवा में इतना जहर कैसे रहा, जब न कहीं पराली जल रही थी न पटाखे फोड़े जा रहे थे. आखिर तब भी एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 500 के पार क्यों रहा.
हमने और हमारी सरकारों ने हवा को साफ रखने के लिए क्या किया. पूरे साल वो क्यों नहीं हुआ जो शोर मचने पर हो रहा है. तब क्यों सड़कों पर पानी के छींटें क्यों नहीं डाले गए, अब आग लगने पर कुआं खोदने से क्या फायदा. अब इस शो-ऑफ से कुछ बहुत ज्यादा बदलता नहीं दिख रहा. aqi.in ने साल 2025 के एक्यूआई का डेटा बताता है कि दिल्ली वालों को एक दिन भी 50 या उससे कम एक्यूआई वाली हवा नहीं मिली. यानी हम पूरे साल ही प्रदूषित हवा में सांस लेते रहे.
कब-कब मिली थोड़ी राहत?
2020: अगस्त में सिर्फ 2 दिन AQI 50 या उससे कम रहा
2021: एक भी दिन हवा साफ नहीं रही
2022: सितंबर में 1 दिन, अक्टूबर में 2 दिन
2023: सितंबर में सिर्फ 2 दिन
2024: जुलाई और अगस्त में 1-1 दिन
यानी छह साल में कुल मिलाकर सिर्फ 9 दिन
किसानों को कोसना आसान, अपनी आदतें बदलना मुश्किल
असल समस्या ये है कि दिल्ली अपनी जीवनशैली बदलने को तैयार नहीं है. बड़ी गाड़ियां, बढ़ता ट्रैफिक, लगातार कंस्ट्रक्शन, धूल और छोटे-बड़े उद्योग, ये सब मिलकर साल भर हवा खराब करते हैं. लेकिन चिंता सिर्फ उन्हीं 10–15 दिनों में दिखती है, जब पंजाब और हरियाणा में पराली जलती है. सच्चाई ये है कि दिल्ली की हवा को सबसे ज्यादा नुकसान स्थानीय कारणों से होता है, न कि सैकड़ों किलोमीटर दूर जलाई गई पराली से.
कौन है असली जिम्मेदार?
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की संस्था SAFAR की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के सबसे बड़े कारण ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री और धूल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक उबर-ओला की एक टैक्सी साल में औसतन 1.45 लाख किलोमीटर चलती है. दिल्ली की सड़कों पर वाहनों की औसत रफ्तार 20–30 किमी/घंटा रह गई है. हर दिन दिल्ली के 8 एंट्री प्वाइंट्स से करीब 11 लाख गाड़ियां अंदर-बाहर होती हैं यानी बोझ सिर्फ हवा पर नहीं, सिस्टम पर भी है.
AQI क्या बताता है?
एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI हवा में मौजूद प्रदूषकों की मात्रा को मापने का पैमाना है. इसमें पीएम10, पीएम2.5, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे प्रदूषकों को शामिल किया जाता है. AQI 50 या उससे कम हो तो हवा ‘गुड’ मानी जाती है और दिल्ली में ये अब दुर्लभ हो चुका है.
अब सवाल दिल्ली वालों से
सवाल सिर्फ ये नहीं कि हवा कब साफ होगी, सवाल ये है कि क्या दिल्ली खुद अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने को तैयार है? अगर हर साल दोषारोपण चलता रहा और स्थानीय वजहों पर गंभीर काम नहीं हुआ तो ये 9 दिन भी शायद इतिहास बन जाएंगे.