एक अभिभावक का प्यार जीवन की तरह ही उत्तम होता है. वे एक छोटे से व्यक्ति को इस दुनिया में लाते हैं और खुशी खुशी उसे अपने जीवन का केंद्र बना लेते हैं. हर बच्चा चाहता है कि उसके अभिवाहक उसे प्यार करें, उसे सुरक्षित रखें, जब वह दुखी हो तो उसे सहारा दें, जब चिंतित हो तो उसे शांत करें, और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाएं. दुर्भाग्य से दुनिया इससे कोसों दूर है और ऐसे कई बच्चे हैं जिनके माता-पिता या तो अब इस दुनिया में नहीं हैं या फिर उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा के लिए छोड़ दिया है.
यूनिसेफ के अनुसार दुनिया में लगभग 15 करोड़ अनाथ बच्चे हैं, और इनमें से 10 लाख बच्चे भारत में हैं. सिंधुताई सपकाल ने अपना पूरा जीवन ऐसे ही अनाथ बच्चों को सौंप दिया. प्यार से माई और अनाथ बच्चों की मां बुलाई जाने वाली 71 साल की सिंधुताई 1400 से ज्यादा बच्चों की मां और हजार से ज्यादा की दादी हैं.
वर्धा में एक गरीब परिवार में हुआ था सिंधुताई का जन्म
सिंधुताई का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में एक गरीब परिवार में हुआ था. लड़की होने के कारण उन्हें बचपन से ही काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा, खासतौर से अपनी मां से. सिंधुताई की मां को उनके स्कूल जाने या शिक्षा प्राप्त करने के विचार से घृणा थी. हालांकि, उनके पिता उन्हें शिक्षित बनाना चाहते थे और मां को बताए बिना उन्हें स्कूल भेजते थे. उनकी मां को लगता था कि उनकी बेटी मवेशी चराने के लिए बाहर जा रही है. जब वह 12 साल की थीं तो उन्हें औपचारिक शिक्षा छोड़ कर एक ऐसे व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर किया गया जिसकी उम्र उनसे 20 साल ज्यादा थी.
शादी होने पर सिंधुताई को अपने पति के साथ रहने के लिए वर्धा के नवरगांव भेज दिया गया. उनका पति एक दंबग आदमी था जो अक्सर अक्सर उनके साथ मार-पीट करता था और बात-बात पर उनका अनादर करता था. लेकिन ये सब भी सिंधुताई को जरूरतमंदों की मदद करने से नहीं रोक सका. किशोरावस्था में होने के बावजूद उन्होंने वन विभाग और जमींदारों द्वारा स्थानीय महिलाओं के शोषण के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी. लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
20 साल की उम्र में चौथी बार वह गर्भवती हुईं. उस दौरान एक ज़मींदार ने गांव में उनके व्यभिचार की अफवाह फैला दी. इन अफवाहों को सच मानते हुए सिंधुताई के पति ने अपनी गर्भवती पत्नी को पीटा और मरने के लिए छोड़ दिया. खून से लथपथ सिंधुताई ने पास की ही एक गौशाला में एक नन्ही बच्ची को जन्म दिया. बाद में वह शरण के लिए कई किलोमीटर चल कर अपने माता-पिता के घर गईं, लेकिन उनकी मां ने उन्हें अपमानित किया और वापस लौटा दिया. अब उनके पास कहीं भी जाने का कोई रास्ता नहीं था. बच्ची को खाना कैसे खिलाएं? पक्के इरादे वाले सिंधुताई ने हार नहीं मानी. उन्होंने जिंदा रहने के लिए ट्रेन और सड़क पर भीख मांगा शुरू किया. खुद और बच्ची की सुरक्षा का उन्हें डर था, इसलिए उन्होंने अपनी रातें कब्रिस्तानों और गौशालाओं में गुजारीं.
इस खराब दौर में ही सिंधुताई ने अनाथ बच्चों के साथ समय बिताना शुरू किया और महसूस किया कि उनका जीवन कितना कठिन था. सिंधुताई ने लगभग एक दर्जन अनाथ बच्चों को गोद लिया और उन्हें पालने की जिम्मेदारी उठा ली. समय बीतने के साथ उन्होंने और भी बच्चों को गोद लेना शुरू किया, और एक मां के सभी कर्तव्यों को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत की. इतने सारे बच्चों की देखभाल करना आसान नहीं था, लेकिन उनकी मासूम मुस्कान देख कर सिंधुताई अपनी सारी थकन भूल जाती थीं.
अमरावती के चिकलदरा में पहला आश्रम
वर्षों की मेहनत और कई शुभचिंतकों की मदद ने सिंधुताई को अमरावती के चिकलदरा में अपना पहला आश्रम स्थापित करने में सक्षम बनाया. उनका पहला गैर सरकारी संगठन (NGO) सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल भी चिकलदरा में बना.
तब से उनका खुशहाल परिवार बढ़ता और फलता-फूलता रहा है. उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में कई संगठनों की स्थापना की है जो हजारों अनाथ बच्चों को शिक्षा और आश्रय प्रदान करते हैं. उनके कई बच्चे डॉक्टर, वकील और शिक्षक के रूप में समाज की सेवा कर रहे हैं और अपनी मां की ही तरह लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला रहे हैं.
270 से अधिक पुरस्कार मिले
समाज में अनुकरणीय योगदान के लिए सिंधुताई सपकाल को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से 270 से अधिक पुरस्कार मिले हैं. इसमें महिलाओं को समर्पित भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार नारी शक्ति पुरस्कार भी शामिल है. ये अवॉर्ड उन्हें साल 2017 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिया था. उनके जीवन पर आधारित मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' साल 2010 में रिलीज हुई थी.
जिंदगी ने कदम कदम पर सिंधुताई का इम्तेहान लिया, लेकिन सिंधुताई मुस्कुराते हुए उन सभी में सफल होती चली गयीं. वह इस बात का जीता जागता प्रमाण हैं कि हमें चारों ओर खुशी फैलाने से पहले अपने भीतर खुशी तलाशनी चाहिए. कोलगेट इंडिया और इंडिया टुडे ग्रुप सिंधुताई सपकाल के मातृत्व और समाज के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवा को सलाम करता है.