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प्लास्टिक की बोतल में पी रहे ठंडा पानी? जान‍िए- ये कैसे बन रही लिवर की दुश्मन, नई रिसर्च में हुआ खुलासा

शोध में सामने आया है कि इन प्लास्ट‍िक यूज के कारण जो छोटे-छोटे प्लास्टिक कण खाने और पानी के जरिए शरीर में पहुंच रहे हैं. ये लिवर रोग और हार्मोनल असंतुलन जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकते हैं. आइए जानते हैं कि ये खतरा कितना बड़ा है और इससे कैसे बचा जा सकता है. 

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Bottled water contains lakhs of nanoplastics. (Illustration by Vani Gupta/India Today)
Bottled water contains lakhs of nanoplastics. (Illustration by Vani Gupta/India Today)

बाहर सफर कर रहे हैं, पानी पीना है तुरंत एक बोतल खरीद ली. बाहर से खाना ऑर्डर कर रहे हैं, वो भी प्लास्ट‍िक की पैकेजिंग में घर आ रहा है. देखा जाए तो प्लास्टिक की बोतलें, खाने की पैकेजिंग और डिस्पोजेबल बर्तन अब रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं.  लेटेस्ट शोध इस आदत से निजात दिलाने के लिए आंखें खोलने वाला है. शोध के अनुसार प्लास्टिक लिवर और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा है. 

इसी साल इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्मेंटल र‍िसर्च एंड पब्ल‍िक हेल्थ और एनवायर्मेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित शोध ने माइक्रोप्लास्टिक्स के खतरनाक प्रभावों को उजागर किया है. शोध में सामने आया है कि इन प्लास्ट‍िक यूज के कारण जो छोटे-छोटे प्लास्टिक कण खाने और पानी के जरिए शरीर में पहुंच रहे हैं. ये लिवर रोग और हार्मोनल असंतुलन जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकते हैं. आइए जानते हैं कि ये खतरा कितना बड़ा है और इससे कैसे बचा जा सकता है. 

जानें क्या है माइक्रोप्लास्टिक्स

माइक्रोप्लास्टिक्स 5 मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण हैं जो बोतलबंद पानी, फूड पैकेजिंग, समुद्री भोजन और यहां तक कि हवा में भी पाए जाते हैं. Environmental Science & Technology (2024) में प्रकाशित स्टडी के अनुसार ये कण मानव शरीर में प्रवेश कर लिवर, किडनी और प्रजनन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं. भारत में जहां हर साल प्रति व्यक्ति 11 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग होता है. ऐसे में ये खतरा और भी गंभीर है. बोतलबंद पानी में औसतन 0.09 माइक्रोप्लास्टिक्स प्रति ग्राम पाए गए हैं, जो हमारे शरीर में धीरे-धीरे जमा हो रहे हैं. 

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लिवर पर हमला कर रहा माइक्रोप्लास्टिक्स

Environment & Health में प्रकाशित रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक्स खासकर पॉलिस्टीरीन और BPA (बिस्फेनॉल-ए) जैसे रसायनों के साथ लिवर में सूजन और कार्यक्षमता में कमी ला सकते हैं. ये कण लिवर कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा करते हैं, जिससे फैटी लिवर और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ता है. भारत में जहां पहले से ही लिवर रोगों के मामले बढ़ रहे हैं (लगभग 10% आबादी फैटी लिवर से पीड़ित), माइक्रोप्लास्टिक्स इस संकट को और गहरा सकते हैं.

माइक्रोप्लास्टिक्स का असर सिर्फ लिवर तक सीमित नहीं है. BJOG: An International Journal of Obstetrics & Gynecology (2024) की एक स्टडी में पाया गया कि ये कण मानव प्लेसेंटा, स्तन दूध और वीर्य में भी मौजूद हैं. इससे बांझपन, भ्रूण विकास में समस्याएं और हार्मोनल असंतुलन का खतरा बढ़ सकता है. 

भारत में क्यों है ज्यादा खतरा?

भारत में प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन एक बड़ी समस्या है. दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में प्लास्टिक प्रदूषण नदियों और भूजल को दूषित कर रहा है. समुद्री भोजन जो भारतीय आहार का अहम हिस्सा है, माइक्रोप्लास्टिक्स का एक बड़ा स्रोत है. उदाहरण के लिए मछलियों और झींगों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी पाचन तंत्र और लिवर को नुकसान पहुंचा सकती है. इसके अलावा बोतलबंद पानी और प्लास्टिक में पैक खाद्य पदार्थों का बढ़ता उपयोग इस खतरे को और बढ़ा रहा है. 

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कैसे करें बचाव?

प्लास्टिक बोतलों से दूरी बनाएं, स्टील या कांच की बोतलों का उपयोग करें. 
पानी फिल्टर करके प‍िएं, RO या उच्च गुणवत्ता वाले फिल्टर का उपयोग माइक्रोप्लास्टिक्स को कम कर सकता है. 
ताजा खाना चुनें, प्लास्टिक पैकेजिंग वाले खाद्य पदार्थों के बजाय ताजा और स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता दें. 
रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दें, प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए रीसाइक्लिंग और जागरूकता जरूरी है. 
अपने आसपास के लोगों को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में बताकर उन्हें जागरुक करें. 

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