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फैक्ट चेक: इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाली 'हब पावर' नहीं है पाकिस्तानी कंपनी

आजतक फैक्ट चेक ने पाया कि चुनावी बॉन्ड के डॉक्यूमेंट्स में 'हब पावर कंपनी' नाम की जिस कंपनी का जिक्र है, वो पाकिस्तान की नहीं, भारत की कंपनी है. पाकिस्तान में भी इस नाम की एक कंपनी है, पर उसने भारत के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने की बात से साफ इंकार किया है.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
पुलवामा हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान की 'हब पावर कंपनी' ने कांग्रेस पार्टी को दस करोड़ से ज्यादा धनराशि का डोनेशन दिया.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
'हब पावर कंपनी' नामक जिस कंपनी के नाम का जिक्र चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट में है, वो पाकिस्तान की कंपनी नहीं है.

चुनावी बॉन्ड के जरिए पार्टियों को चंदा देने वालों की लिस्ट सार्वजनिक होते ही कुछ सोशल मीडिया यूजर्स आरोप लगाने लगे कि पुलवामा अटैक के ठीक बाद बीजेपी ने एक पाकिस्तानी कंपनी से चंदा लिया. ठीक यही इल्जाम कांग्रेस पर भी लग रहा है.  

मिसाल के तौर पर, समाजवादी पार्टी सदस्य संतोष कुमार यादव ने बीजेपी पर ये आरोप लगाते हुए सबूत के तौर पर 'हब पावर कंपनी' नामक पाकिस्तानी कंपनी के विकीपीडिया पेज का स्क्रीनशॉट पेश किया.  

 

फैक्ट चेक

वहीं, एक अन्य यूजर ने चुनावी बॉन्ड के सरकारी डॉक्यूमेंट शेयर किए जिन्हें देखकर लगता है कि जिस दिन, यानि 18 अप्रैल 2019 को 'हब पावर कंपनी' ने ये बॉन्ड खरीदे, ठीक उसी दिन कांग्रेस पार्टी को चंदा मिला. इन स्क्रीनशॉट्स के जरिये कहा जा रहा है कि पुलवामा अटैक के बाद पाकिस्तानी 'हब पावर कंपनी' से चंदा लेने वाली कंपनी कांग्रेस है.  

 

 

फैक्ट चेक

इन दोनों पोस्ट्स का आर्काइव्ड वर्जन यहां और यहां देखा जा सकता है. गौरतलब है कि 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे.

आजतक फैक्ट चेक ने पाया कि चुनावी बॉन्ड के डॉक्यूमेंट्स में 'हब पावर कंपनी' नाम की जिस कंपनी का जिक्र है, वो पाकिस्तान की नहीं, भारत की कंपनी है. पाकिस्तान में भी इस नाम की एक कंपनी है, पर उसने भारत के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने की बात से साफ इंकार किया है. इसके अलावा ये बात भी जानना जरूरी है कि चुनाव आयोग ने अभी तक जितनी जानकारी सार्वजनिक की है उसके आधार पर चंदा देने वाली कंपनी का पैसा किसको मिला, इसके बारे में कुछ अंदाजा तो लगाया जा सकता है लेकिन पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता.

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'हब पावर कंपनी' की क्या कहानी है?

कीवर्ड सर्च के जरिये तलाशने पर हमें 'इंडियामार्ट' पर 'हब पावर कंपनी' का एक पेज मिला. यहां ये कंपनी एक 'वेरिफाइड सप्लायर' के रूप में लिस्टेड है. इस पेज को देखकर पता लगता है कि ये कंपनी एलईडी लाइट, सजावटी लाइटें और इलेक्ट्रिक केटल वगैरह बेचती है. यहां इस कंपनी का जीएसटी नंबर '07BWNPM0985J1ZX' लिखा है. 

 

फैक्ट चेक

 

इस नंबर को जीएसटी की आधिकारिक वेबसाइट पर खोजने से पता लगा कि 'हब पावर कंपनी' का ऑफिस दिल्ली के एक रिहायशी इलाके गीता कॉलोनी में है और ये रवि मेहरा नामक व्यक्ति के नाम पर रजिस्टर्ड है. हमें अपनी खोजबीन में ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिसके आधार पर हम कह सकें कि इस कंपनी का कोई पाकिस्तान कनेक्शन है. 

 

फैक्ट चेक

 

चुनाव आयोग के मुताबिक, 'हब पावर कंपनी' ने 18 अप्रैल, 2019 को 95 लाख रुपये की कीमत के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे. इन बॉन्ड्स के जरिये किस राजनीतिक पार्टी या पार्टियों को चंदा मिला, ये बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती.

'डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स' के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड्स की वैधता सिर्फ 15 दिन की होती है. इसी अवधि के भीतर पार्टी को इसे बैंक में जमा करके भुनाना होता है.

 

फैक्ट चेक

 

ये बात सच है कि पाकिस्तान में 'हब पावर कंपनी' नाम की एक कंपनी है जो बिजली का उत्पादन करती है. लेकिन इस कंपनी ने अपना नाम भारत के चुनावी बॉन्ड्स से जोड़े जाने पर आपत्ति जताई है और इसे लेकर 'एक्स' पर स्पष्टीकरण दिया है. कंपनी ने लिखा कि भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली 'हब पावर कंपनी' से उनका कुछ लेना-देना नहीं है.

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क्या विदेशी कंपनी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दे सकती है चंदा ?
 

भले ही गीता कॉलोनी वाली हब पावर कंपनी का पाकिस्तान से कोई लेना-देना ना हो लेकिन किसी विदेशी कंपनी के भी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा देने पर रोक नहीं थी. शर्त सिर्फ दो थीं. पहली ये कि वो कंपनी भारत में कारोबार करने के दूसरे सभी नियमों पर खरी उतरती हो और दूसरा ये कि वो कंपनी भारत में भी रजिस्टर्ड हो. इसका रास्ता साफ करने के लिए सरकार ने 2017 में नियमों में बदलाव कर दिया था.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के संस्थापक त्रिलोचन शास्त्री ने आज तक को बताया कि इस बदलाव से पहले, किसी विदेशी कंपनी के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये भारत की राजनीतिक पार्टी को चंदा देना तभी संभव था जब भारत के उसके कारोबार में कम से कम 51 प्रतिशत हिस्सेदारी किसी भारतीय कंपनी की हो. लेकिन 2017 में इस नियम में बदलाव कर के बाहर से आने वाले पैसे से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदना आसान बना दिया गया था. इसे एडीआर और कुछ और लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.


आखिरकार, 15 फरवरी, 2024 को  सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्क्रीम को असंवैधानिक बताते हुए  इस पर रोक लगा दी और स्टेट बैंक से इसकी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया.

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