फिलिस्तीन के साथ भारत के संबंध काफी मजबूत रहे हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों में छपी मीडिया रिपोर्ट्स में भारतीय विदेश नीति का झुकाव इजरायल की ओर बढ़ने की बात कही गई है. और अब, सोशल मीडिया पर कुछ लोग कह रहे हैं कि फिलिस्तीन को स्वतंत्र राज्य के तौर पर मान्यता देने वाला पहला देश भारत था, न कि कोई मुस्लिम देश. ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि ये कदम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण के इरादे से उठाया था.
ऐसे ही एक पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है. फिलिस्तीन से संबंधित इस वायरल पोस्ट में तीन प्रमुख दावे किए गए हैं. आइए, एक-एक करके इनकी सच्चाई जानते हैं.
पहला दावा: फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला देश सउदी अरब, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईराक या तुर्की नहीं बल्कि भारत था.
सच्चाई: ये बात सच है कि भारत, 1988 में फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था. लेकिन भारत ऐसा करने वाला पहला देश नहीं था.
फिलिस्तीन आंशिक रूप से मान्यता प्राप्त राज्य है. यहां के लोगों की नुमाइंदगी करने वाले 'फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन' ने 15 नवम्बर, 1988 को फिलिस्तीन राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा की थी. अभी तक दुनिया के 139 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं.
फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर उन देशों की लिस्ट मौजूद है जिन्होंने उसे अब तक मान्यता दी है. यहां बताया गया है कि अल्जीरिया, इराक, इंडोनेशिया, कुवैत, मलेशिया, मोरक्को, तुर्की और यमन सहित 13 देशों ने उसे 15 नवंबर, 1988 को मान्यता दी थी. इसी तरह, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, यूएई और सउदी अरब जैसे 13 देशों ने 16 नवंबर, 1988 को और पांच अन्य देशों ने 17 नवंबर, 1988 को मान्यता दी थी. इस लिस्ट के मुताबिक, भारत ने फिलिस्तीन को 18 नवंबर, 1988 को मान्यता दी थी.
फिलिस्तीन की न्यूज एजेंसी WAFA और भारत के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर भी यही जानकारी दी गई है.
दूसरा दावा: भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिलिस्तीन के पूर्व राष्ट्रपति यासिर अराफात को नेहरू शांति पुरस्कार दिया था, जिसमें एक करोड़ रुपये नकद और 200 ग्राम वजन वाली सोने की ढाल शामिल थी.
सच्चाई: यासिर अराफात को 1988 में भारत सरकार ने "जवाहरलाल नेहरू अवॉर्ड फॉर इंटरनेशनल अंडरस्टैंडिंग" से नवाजा था.
राजनीतिक विश्लेषक और 'सोनिया, अ बायोग्राफी' किताब के लेखक रशीद किदवई ने हमें बताया कि "जवाहरलाल नेहरू अवॉर्ड फॉर इंटरनेशनल अंडरस्टैंडिंग" पुरस्कार के तहत अराफात को एक करोड़ रुपये दिए जाने की बात बिल्कुल बेबुनियाद है. उन्होंने 'आजतक' को बताया, "इस पुरस्कार के साथ अराफात को 93,750 डॉलर की धनराशि दी गई थी. उस वक्त एक डॉलर 16 रुपये के करीब था इसलिए ये राशि तकरीबन 15 लाख रुपये हुई. इसके साथ 10-20 ग्राम वजन वाला एक मेडल दिया गया था न कि 200 ग्राम वजन वाली कोई ढाल."
तीसरा दावा: पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अराफात को इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से नवाजा था. साथ ही, राजीव ने उन्हें बोइंग विमान भी उपहार में दिया था.
सच्चाई: अराफात को 21 जनवरी, 1992 को नई दिल्ली में "इंदिरा गांधी अवॉर्ड फॉर इंटरनेशनल जस्टिस एंड हार्मनी" पुरस्कार से नवाजा गया था. लेकिन उस वक्त देश के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे, न कि राजीव गांधी. राजीव की 21 मई, 1991 को हत्या कर दी गई थी.
राजीव गांधी के अराफात को बोइंग विमान तोहफे में देने की बात को भी किदवई ने बेबुनियाद बताया. हमें भी किसी विश्वसनीय वेबसाइट पर इस तरह की कोई जानकारी नहीं मिली.
हालांकि ये बात सच है कि इंदिरा और राजीव गांधी के साथ यासिर अराफात के संबंध बेहद अच्छे थे. वो इंदिरा को अपनी बहन मानते थे. "द हिंदू" की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अराफात, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी- दोनों के अंतिम संस्कार के वक्त मौजूद थे.
चौथा दावा: अराफात ने कश्मीर को पाकिस्तान का अभिन्न अंग कहा था. साथ ही, यह भी कहा था कि जब भी पाकिस्तान चाहेगा, मेरे बच्चे कश्मीर की आजादी के लिए लड़ेंगे.
सच्चाई: अराफात ने कभी इस तरह का बयान नहीं दिया था. उन्होंने यह जरूर कहा था कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर मसले का हल 1972 के शिमला समझौते के तहत निकालना चाहिए.
बल्कि, हमें कुछ ऐसी रिपोर्ट्स मिलीं जिनमें कश्मीर के कुछ अलगाववादी नेताओं के हवाले से अराफात के कश्मीर की आजादी का समर्थन न करने की बात लिखी है.
वहां के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने एक बार पाकिस्तानी अखबार "डॉन" को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि यासिर अराफात ने कभी कश्मीर की आजादी का समर्थन नहीं किया क्योंकि वो सेक्यूलर विचारों के शिकार थे.
हमने इस बारे में जेएनयू के "स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज" के प्रोफेसर डॉ. अमिताभ सिंह से भी बात की. उन्होंने "आजतक" को बताया, "कश्मीर को लेकर यासिर अराफात अमूमन बयान नहीं देते थे. अगर कुछ कहते भी थे तो उनका रवैया तटस्थ रहता था."
फिलिस्तीन और इजरायल के बीच का विवाद 100 साल पुराना है. इसे सुलझाने की कई बार कोशिश की गई पर फिर भी इस मामले का समाधान नहीं निकला. इस जटिल विवाद को आसान भाषा में समझने के लिए आप ये वीडियो रिपोर्ट देख सकते हैं.