गेम ऑफ थ्रोन्स में अपनी एक्टिंग से रातों रात स्टार बने पीटर डिक्लेंक की कहानी किसी भी शख़्स के लिए प्रेरणादायक हो सकती है. उनका कद भले ही सामान्य से छोटा हो लेकिन उन्होंने कभी भी इसे अपनी जिंदगी में बाधा नहीं बनने दिया बल्कि अपने दृढ़ संकल्प और मेहनत से दुनिया भर में पहचाने जाने लगे.
पीटर का जन्म 1969 में अमेरिका में हुआ था. उन्हें एकोंड्रोप्लासिया नाम की एक बीमारी थी. इस बीमारी के चलते उन्हें बौनेपन का शिकार होना पड़ा. इस बीमारी में हड्डियों में भी काफी असर पड़ता है. जाहिर है, पीटर अपने हालातों के चलते काफी तनाव में रहते थे. उन्होंने कहा कि मैं जब छोटा था, तब काफी गुस्से में रहता था और मैं मन ही मन अपने आप से बातें करता था और ज्यादा लोगों से खुल भी नहीं पाता था. मेरे आत्मविश्वास को भी शुरुआत में झटका लगा था लेकिन धीरे धीरे मैं इससे उबर गया था.
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कॉलेज से पासआउट होने के बाद 1991 में उन्होंने न्यूयॉर्क जाने का फैसला किया था. वहां उन्होंने एक्टिंग का कोर्स करने का फैसला किया. उनके संघर्ष की कहानी को यूं बयां किया जा सकता है कि वे एक ऐसे अपार्टमेंट में रहते थे जहां चूहों का भारी जमावड़ा था. ये भी कहा जाता है कि इन चूहों से निजात पाने के लिए उन्होंने एक बिल्ली भी पाली थी. इसके बाद उनके साथ ये बिल्ली एक दशक तक साथ रही थी. पीटर पहले से जानते थे कि उनके हालातों को देखते हुए उन्हें ज्यादातर ऐसे ही रोल्स मिलेंगे जिनमें उनका मजाक उड़ने की संभावना ज्यादा होगी. यही कारण है कि उन्होंने ऐसे सभी असंवेदनशील रोल्स को ना करने का फैसला किया था जो आर्थिक तौर पर उनके लिए काफी कठिन भी था. हालांकि, पीटर ने सिर्फ ऐसे किरदारों की ही परवाह की जिनमें गहराई की संभावना ज्यादा थी. इसी के चलते उन्हें काफी समय बाद अच्छे ऑफर्स आने शुरू हुए थे.
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1995 में आई फिल्म लिविंग इन ओबलिवियन में उन्होंने अपनी एक्टिंग क्षमता का लोहा मनवाया. इस रोल के सहारे वे कई क्रिटिक्स की नज़र में भी आ गए थे. इसके बाद उन्होंने द स्टेशन एजेंट, लाइफ एज़ वी नो इट और एक्स मैन जैसी फिल्मों से काफी नाम कमाया. हालांकि, साल 2011 में गेम ऑफ थ्रोन्स में लैनिस्टर के किरदार के साथ ही वे घर-घर में पहचाने जाने लगे.
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