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किताबी पाठ जैसा है 'खेलें हम जी जान से'

फिल्म 'खेलें हम जी जान से' न सिर्फ एक किताब की बुनियाद पर है बल्कि खुद एक किताब जैसी है.

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फिल्म: खेलें हम जी जान से
निर्देशकः आशुतोष गोवारीकर
कलाकारः अभिषेक बच्चन, दीपिका पादुकोण

न सिर्फ यह फिल्म एक किताब की बुनियाद पर है बल्कि खुद एक किताब जैसी है. 1930-34 के बीच चटगांव (अब बांग्लादेश में) और आसपास के इलाकों में एक अध्यापक सूर्जो सेन (बच्चन) की अगुआई में चले आजादी के आंदोलन पर मानिनी चटर्जी ने किताब लिखी थी (डू ऐंड डाइः द चटगांव अपराइजिंग). इस शोधपूर्ण कृति को गोवारीकर ने उसकी पूरी बारीकियों के साथ शिद्दत से फिल्माया है.

लेकिन अपने नजरिए को लेकर वे इतने आग्रही हो गए हैं कि दर्शकों के नजरिए से फिल्म का ज्‍यादा ख्याल नहीं रख पाए. घटनाएं किताब के पन्नों की तरह घटती जाती हैं, दर्शक से किसी तरह का रिश्ता बगाए बगैर. सूर्जो, कोल्पना (पादुकोणे) और साठ से ज्‍यादा किशोर कैंट समेत अंग्रेजों के कई ठिकानों पर हमले करते हैं पर अंत में ज्‍यादातर मारे जाते हैं.

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एक दूसरे नजरिए से कह सकते हैं कि तीन घंटे तक धीरे-धीरे चलने वाली-खासकर पूर्वार्द्ध में-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की इस फिल्म को धैर्य से देखने की जरूरत है. पर दिक्कत यह है कि किसी भी मोड़ पर यह अपने में कोई दिलचस्पी नहीं जगा पाती. एक उम्मीद मुख्य अभिनेताओं से थी पर वे-खासकर बच्चन-भी कुछ नहीं कर पाए.

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