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राजघाट पर प्रह्लाद टिपानिया के कबीरपंथी निर्गुन गीत और भावविभोर सोनिया

सोनिया, राहुल और प्रियंका समेत कांग्रेस आलाकमान सोमवार को  राजघाट पर सत्याग्रह करके सरकार का विरोध कर रहे हैं. राजघाट पर इस दौरान भारतीय लोकगायक प्रह्लाद टिपानिया के भजनों में सोनिया गांधी भावविभोर दिखीं. जानें- कौन हैं प्रह्लाद टिपानिया.

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अपनी मंडली के साथ प्रह्लाद टिपानिया (बाएं से तीसरे)
अपनी मंडली के साथ प्रह्लाद टिपानिया (बाएं से तीसरे)

नागरिकता संशोधन एक्ट (Citizenship Amendment Act) के खिलाफ आज कांग्रेस पार्टी ने प्रोटेस्ट किया. यहां सोनिया, राहुल और प्रियंका समेत कांग्रेस आलाकमान सोमवार को  राजघाट पर सत्याग्रह करके सरकार का विरोध किया. राजघाट पर इस दौरान भारतीय लोकगायक प्रह्लाद टिपानिया के भजनों में सोनिया गांधी भावविभोर दिखीं. जानें- कौन हैं प्रह्लाद टिपानिया.

पद्मश्री सम्मान से नवाजे जा चुके प्रहलाद टिपानिया एक भारतीय लोक गायक हैं, जो मध्य प्रदेश के मालवी लोक में कबीर भजन करते हैं. इसके अलावा वो देवास शाजापुर लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी की तरफ से चुनाव भी लड़ चुके हैं.

तंबूरा, खरताल, मंजीरा, ढोलक, हारमोनियम, टिमकी और वायलिन वादकों के एक समूह के साथ उनका पूरा ग्रुप देश ही नहीं विदेशों में भी कई शो कर चुका है.

प्रह्लाद टिपानिया का जन्म साल 7 सितंबर 1954 को लूनीखेड़ी, तराना, मालवा, मध्य प्रदेश में एक मालवी बलाई जाति के परिवार में हुआ था. कबीरपंथी भजन गायक के तौर पर दुनिया के तमाम हिस्सों में उनकी पहचान बन चुकी है.

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प्रह्लाद ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान के साथ-साथ भारत में भी अलग-अलग जगह में "आमेरिका में कबीर यात्रा" और "हद-अनहद" टाइटल से अपने कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं.  उनका संगीत इंदौर के ऑल इंडिया रेडियो स्टेशनों पर बजाया गया है. वो भोपाल, जबलपुर, पटना, लखनऊ और कानपुर दूरदर्शन पर भी काम का चुके हैं. उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शिखर सम्मान (2005), 2007 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2011 में पद्म श्री सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं.

वो कबीरपंथी गायकों के लिए आयोजित किए जाने वाले एनुअल सूफी म्यूजिक फेस्टिवल में हिस्सा ले चुके हैं. वो सद्गुरु कबीर शोध संस्थान भी चलाते हैं. उन्होंने बीएससी तक पढ़ाई की है. फिलहाल वो देवास जिले के सरकारी स्कूल गणित और विज्ञान विषय पढ़ाते हैं. शबनम विरमानी ने टिपानिया पर डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी.

साल 1978 में प्रह्लाद सिंह टिपानिया ने पहली बार 5-तार वाला वाद्य यंत्र तंबूरा सुना था जिसके वो दीवाने हो गए. उस समय वो 24 साल के थे, वो गांव के स्कूली छात्र थे जिन्हें गायन विरासत में मिली पारिवारिक परंपरा नहीं थी. लेकिन फिर भी उन्होंने उसी पल निर्णय लिया कि वो तंबूरा के साथ कबीर की दुनिया में जाएंगे. वहीं से वो कबीरपंथ की ओर चल पड़े.

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इस 15 वीं सदी के संत कबीर के शब्दों को गांव-गांव में पहुंचाने लगे. वो 600 सालों से कबीर की कविता को गाने की एक अटूट मौखिक परंपरा को जीवित रखने के राही बन गए. प्रह्लाद ने एक शिक्षार्थी के रूप में ऑल-नाइट भजन सत्रों की इस दुनिया में प्रवेश किया था.

आज ढाई दशक बाद उनका नाम दुनिया के कोने कोने में पहुंच चुका है. उन्होंने मालवा क्षेत्र में कबीर गायन की मौखिक परंपराओं के पुनरुत्थान में गहरा प्रभाव डाला है. प्रह्लादजी एक शक्तिशाली गायन शैली को अपने दर्शकों के साथ संवाद करने की चुंबकीय क्षमता के साथ जोड़ते हैं. उनका संगीत मनोरंजन संगीत से अधिक है. वे कबीर के आध्यात्मिक और सामाजिक विचार से शक्तिशाली जुड़ाव रखते हैं.

मालवा क्षेत्र में, उन्हें न केवल एक गायक के रूप में सराहा जाता है, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में भी सम्मानित किया जाता है. ऐसा व्यक्ति जो कबीर के आध्यात्मिक संदेश का प्रचार कर रहा है. उनके संगीत कार्यक्रमों में क्षुद्र विभाजन, संप्रदायवाद, खाली संस्कार और मूर्तिपूजा से ऊपर उठने और प्रेम को परम धर्म के रूप में अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है.

वह अपनी मंडली में आम तौर पर 7-8 सदस्यों के साथ तंबूरा, करतल, मंजीरा, ढोलक, हारमोनियम, टिमकी और वायलिन की संगत पर गाते हैं.

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