भारत के बड़े तकनीकी कॉलेज आईआईटी में बीटेक पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या अभी भी कम है- लगभग हर 5 में से सिर्फ 1 लड़की. केवल सीटें आरक्षित करना काफी नहीं है. लड़कियों के लिए असली दिक्कतें हैं- सुरक्षा की चिंता, कोचिंग का खर्चा, परिवार का कम समर्थन और आत्मविश्वास की कमी. सिर्फ सीट बढ़ाने से फर्क नहीं पड़ेगा. ज़रूरी है कि लड़कियों को सुरक्षित माहौल, सही मार्गदर्शन और पढ़ाई में बराबर मौके दिए जाएं. आईआईटी में लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं, जैसे सुपरन्यूमरेरी सीट्स स्कीम (SSS), लेकिन फिर भी बीटेक कोर्स में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ़ 20% है.
लड़कियों के लिए अलग से रखी गईं 20% सीटें
2018 में शुरू हुई इस स्कीम के तहत लड़कियों के लिए 20% सीटें अलग से रखी गईं. इससे शुरू में अच्छा असर दिखा – जहां 2016 में सिर्फ 8% लड़कियां आईआईटी में दाखिला लेती थीं, वहीं 2020-21 तक यह बढ़कर 20% हो गया. लेकिन इसके बाद प्रगति रुक-सी गई. पिछले पांच सालों (2020 से 2025) में यह आंकड़ा 19% से 21% के बीच ही अटका रहा.
यानी सीटें बढ़ाने और कोटा देने से थोड़ी मदद तो मिली, लेकिन असली वजहें – जैसे सुरक्षा की चिंता, कोचिंग की महंगी फीस और आत्मविश्वास की कमी, अब भी लड़कियों को इंजीनियरिंग पढ़ाई से रोकती हैं. यही कारण है कि भारत के सबसे बड़े इंजीनियरिंग संस्थानों में अब भी लड़कियों की संख्या बहुत कम है. 2020 से 2025 के बीच आईआईटी में लड़कियों की संख्या थोड़ी-सी ही बढ़ी हैं.

20 प्रतिशत लड़कियां पढ़ रहीं इंजीनियरिंग
2020 में कुल 16,061 सीटों में से लगभग 19.9% लड़कियों ने ली थीं. 2025 तक सीटें बढ़ीं और 18,188 में से लगभग 20.15% लड़कियों को प्रवेश मिला. यानी लड़कियों की संख्या 3,185 से बढ़कर 3,664 हो गई. लेकिन ये बढ़ोतरी ज्यादातर सीटें बढ़ने की वजह से है, न कि इसलिए कि लड़कियों की हिस्सेदारी में बड़ा बदलाव आया हो.
पिछले पांच सालों में लड़कियों का अनुपात लगभग 20% पर ही अटका हुआ है. असल दिक्कत यह है कि पढ़ाई का चुनाव केवल नीतियों या कोटा पर नहीं, बल्कि परिवार की सोच, नौकरी की संभावनाओं और काम-जिंदगी संतुलन जैसी बातों पर भी निर्भर करता है. यही वजह है कि इंजीनियरिंग में करियर बनाने से कई लड़कियां पीछे हट जाती हैं. इसका मतलब साफ है—सिर्फ सीटें बढ़ाना काफी नहीं है, जरूरत है सोच, सहयोग और माहौल बदलने की.

प्रवेश के बाद भी चुनौतियां
कई शीर्ष रैंकिंग वाली महिला छात्राएं आईआईटी में पढ़ाई करने से डरती हैं. वजहें हैं – परिसर की सुरक्षा, सही ब्रांच चुनने की टेंशन और घर से दूरी. भले ही आईआईटी ने छात्रावास की सुविधाओं, परामर्श सत्र और सुरक्षा में सुधार किया हो, फिर भी चुनौतियां बनी हुई हैं. आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनिन्द्र अग्रवाल कहते हैं, पिछले दस सालों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 12 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है. अतिरिक्त कोटा लागू करने से मदद मिली, लेकिन अभी भी रास्ता लंबा है.

प्रवेश की राह में बड़ी चुनौतियां
आईआईटी में दाखिला पाने के लिए अक्सर दो साल की गहन कोचिंग की जरूरत होती है, जो घर से दूर विशेष केंद्रों में होती है. कई परिवार, खासकर छोटी बेटियों के मामले में, इतने लंबे समय तक बेटी को दूर भेजने से हिचकिचाते हैं. फिर भी कई महिलाएं इंजीनियरिंग की अलग-अलग शाखाएं चुन रही हैं. पहले मैकेनिकल इंजीनियरिंग जैसी शाखाओं को लेकर शंकाएं थीं, लेकिन अब धीरे-धीरे ये कम हो रही हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इस ठहराव के पीछे कई कारण हैं. सबसे पहले महंगी कोचिंग, माता-पिता का असमान प्रोत्साहन, शाखाओं में रूढ़िवादिता, परिसर की चुनौतियां और तकनीकी विषयों में आत्मविश्वास की कमी.
2025 में जानें क्या था लड़कियों का स्कोर
26 मई को आयोजित JEE एडवांस्ड 2024 में पेपर 1 और 2 दोनों में कुल 1,80,200 उम्मीदवार शामिल हुए थे. आपको बता दें कि साल 2025 में कुल 48,248 उम्मीदवारों ने जेईई एडवांस्ड परीक्षा पास किया है. लेकिन हैरानी की बात है कि 48,248 उम्मीदवारों में से सिर्फ 7,964 लड़कियां पास हुई हैं. इस साल IIT दिल्ली जोन से वेद लाहोटी कॉमन रैंक लिस्ट (CRL) में टॉप किया था. वहीं, IIT बॉम्बे ज़ोन से द्विजा धर्मेश कुमार पटेल CRL 7 के साथ लड़कियों में टॉप किया था. इस तरह टॉप 10 लिस्ट में सिर्फ एक लड़की है.

यहां जानते हैं जोन-वाइज टॉपर लड़कियों की लिस्ट
साल 2024 में 23 छात्रों ने स्कोर किया था. 100% जेईई मेन्स सेशन -1 2024 की परीक्षा में कुल 23 छात्रों ने 100 पर्सेंटाइल स्कोर किया था. पिछले साल हरियाणा के रहने वाले आरव भट्ट, तेलंगाना के रिशि शेखर, शेख सूरज ने भी 100 प्रतिशत नंबर हासिल किया था. इसके अलावा इस लिस्ट में मुकुंद प्रथिश एस, माधव बंसल, आर्यन प्रकाश, ईशान गुप्ता, आदित्य भी थे.
साल 2022 सेशन-1 परीक्षा में इन छात्रों ने मारी थी बाजी
आपको बता दें कि JEE Main 2022 सत्र 1 के टॉपर्स की लिस्ट में देश भर के विभिन्न राज्यों से कई मेधावी छात्रों ने स्थान प्राप्त किया था. आंध्र प्रदेश से पेनिकलपति रवि किशोर ने जनरल श्रेणी में 100 परसेंटाइल हासिल कर टॉप किया था. वहीं, जनरल-ईडब्ल्यूएस श्रेणी में पॉलिसेटी कार्तिकेय, आंध्र प्रदेश से, 100 परसेंटाइल के साथ शीर्ष पर रहे थे. ओबीसी-एनसीएल (केंद्रीय सूची) श्रेणी में कोय्याना सुहास, आंध्र प्रदेश से, 100 परसेंटाइल प्राप्त कर टॉपर बने थे. एससी श्रेणी में दयाला जॉन जोसेफ, आंध्र प्रदेश से, 99.99 परसेंटाइल के साथ सर्वोच्च स्थान पर रहे थे.

वहीं, महिला वर्ग की बात करें तो असम की स्नेहा पारीक ने 100 परसेंटाइल स्कोर हासिल किया था. पुरुष वर्ग में तेलंगाना से अनिकेत चट्टोपाध्याय 100 परसेंटाइल के साथ टॉप रैंक हासिल की थी. इसके अलावा कुशाग्र श्रीवास्तव (झारखंड), मृणाल गर्ग (पंजाब), नव्या (राजस्थान), बोया हरेन सात्विक (कर्नाटक), सौमित्र गर्ग (उत्तर प्रदेश), और रूपेश बियाणी (तेलंगाना) जैसे अन्य छात्र भी टॉपर्स की सूची में शामिल हुए थे. इस डेटा से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि IIT जैसे संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है.