वर्किंग पेरेंट्स को अक्सर उनके बच्चे ही टोक देते हैं कि आप हमें टाइम नहीं देते. बच्चों के मुंह से ये बात सुनकर पेरेंट्स में एक अपराध बोध आ ही जाता है. ये बहुत सामान्य-सी बात है, लेकिन जब यही पछतावा और गिल्ट बच्चों की पालने में नजर आता है तो ये बच्चों के लिए ठीक नहीं है. अगर बच्चे को देखकर आपकी आंखों में प्यार कम और पछतावे की झलक ज़्यादा है. आप उसे जल्दी-जल्दी गले लगाते हैं, चॉकलेट थमाते हैं, थोड़ी देर खिलाते हैं और सोचते हैं कि कम से कम उसे लगे कि मैं अच्छा पैरेंट हूं.
तो आखिर ये 'गिल्ट पेरेंटिंग' है क्या?
गिल्ट पेरेंटिंग यानी वो पैरेंटिंग जिसमें मां-बाप अपने बच्चे के लिए चीजें इसीलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वो बच्चे के साथ उतना वक्त नहीं बिता पा रहे जितना चाहिए था. कई बार ऐसा भी होता है कि पेरेंट्स को लगता है कि वो बच्चे से ज्यादा सख्त हो गए थे, चिल्ला दिए थे या उसका दिल दुखा दिया था... और अब हर चीज की भरपाई किसी लॉलीपॉप, स्क्रीन टाइम या 'हां बेटा जो मर्जी करो' से करने की कोशिश करते हैं.
कुछ ऐसे ही होते हैं गिल्ट पेरेंट्स
बच्चे के हर रोने पर गिल्टी महसूस करना.
ज़रा सी डांट के बाद उसे फेवरेट टॉय देना.
हमेशा खुद को दोष देना कि 'मैं अच्छा पैरेंट नहीं हूं'.
बच्चे के हर कहे को ‘हां’ कहना ताकि वो दुखी न हो.
वर्किंग पैरेंट्स का छुट्टी न मिल पाने का गिल्ट, जो उन्हें और ज़्यादा स्पॉयलिंग मोड में डाल देता है.
मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं?
साइकोलॉजिस्ट डॉ. विधि एम पिलनिया कहती हैं कि गिल्ट पेरेंटिंग बच्चों को एक तरह से इमोशनली कन्फ्यूज्ड बना देती है. वो नहीं समझ पाते कि कब क्या सही है, क्या गलत. उन्हें डिसिप्लिन और इमोशनल बॉन्डिंग में फर्क नजर नहीं आता. ‘प्यार’ का नाम लेकर जो हो रहा है, वो बच्चे की जरूरत नहीं, आपकी माफी है. वो कहती हैं कि बच्चे को बार-बार गले लगाना, गिफ्ट्स देना या ‘आई लव यू’ कहना बुरा नहीं है. लेकिन अगर ये हर बार तब हो रहा है जब आप पछता रहे हों, तो यह बच्चे की खुशी नहीं बल्कि आपका गिल्ट है, जो आप उस पर लाद रहे हैं.
डॉ विधि एक एक सिचुएशन का उदाहरण देती हैं कि आपकी 4 साल की बेटी खिलौना लेकर रो रही है कि उसे दूसरा भी चाहिए. आपने उसे मना कर दिया और वो रोने लगी. आपने उसे डांटा फिर आपको गिल्ट हुआ. फिर आपने अगले दिन वो खिलौना ला दिया. अब बच्ची ने क्या सीखा? अगर मैं रोऊंगी तो मुझे चीज़ें मिलेंगी.मम्मी-पापा को कैसे गिल्टी करना है, ये मैं जानती हूं.
और ये सिर्फ बच्चा नहीं सीखता, आपका कॉन्फिडेंस भी टूटता है
धीरे-धीरे आप डिसिप्लिन देने से डरने लगते हैं. आपको लगता है कि कहीं बच्चा मुझसे दूर न हो जाए. और ये डर आपको अपने ही रोल में कमजोर बनाता है. क्या आप भी गिल्ट पेरेंटिंग कर रहे हैं? ये सवाल खुद से पूछिए कि क्या आप हर बार बच्चे को न कहने के बाद गिल्टी महसूस करते हैं? क्या आप बच्चों को चुप कराने के लिए हर बार स्क्रीन या गिफ्ट का सहारा लेते हैं? क्या आपको लगता है कि अगर आपने डांटा, तो आप बुरे पेरेंट हैं? क्या आप सिर्फ छुट्टी वाले दिन ज़रूरत से ज़्यादा बच्चे को खुश करने की कोशिश करते हैं? अगर आपभी खुद को इस तरह के सवालों का जवाब खुद के लिए हां में देते हैं तो आपको नये सिरे से सोचना चाहिए.
कैसे तोड़ें गिल्ट पेरेंटिंग का ये साइलेंट जाल?
1. गिल्ट की जगह गाइड बनिए
आपका रोल सिर्फ 'गिफ्ट देने वाले' नहीं, बल्कि 'गाइड' का है. बच्चा सही-गलत तभी सीखेगा जब आप उसे सिखाएंगे.
2. ‘न’ कहना सिखिए और बच्चे को भी सिखाइए
ना कहने से प्यार कम नहीं होता. बल्कि बच्चे को सीमाएं और अनुशासन का मतलब समझ आता है.
3. अपने इमोशन्स को हैंडल करना सीखिए
अगर आपने गलती से डांट दिया, तो प्यार से समझाइए, माफी ज़रूरी नहीं हर बार गिफ्ट या स्क्रीन के जरिए दी जाए.
4. क्वॉलिटी टाइम, क्वॉन्टिटी नहीं
हर दिन 15 मिनट का ईमानदारी से जुड़ा वक्त बच्चे को लॉन्ग टर्म में ज्यादा हेल्दी बनाता है बजाय घंटों की 'गिल्टी गिफ्टिंग' के.
5. खुद को माफ कीजिए
हर पैरेंट गलती करता है. आप परफेक्ट नहीं हैं, और यही सच्ची पैरेंटिंग की खूबसूरती है.
डॉ पिलनिया कहती हैं कि 'गिल्ट पेरेंटिंग' उस चॉकलेट की तरह है जो बच्चे को तो खुशी देती है, लेकिन अंदर से उसकी आदतें खराब कर जाती है. इसलिए अगली बार जब आप खुद को गिल्टी फील करें, तो गहरी सांस लीजिए, खुद को याद दिलाइए कि मैं सिर्फ गिफ्ट देने वाला नहीं, गाइड हूं. बच्चा वो आपको आपकी गिल्ट से नहीं, आपके वक्त और समझ से याद रखेगा.