इजराइल के शहर हाइफा ने सोमवार को शहीद भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की. हाइफा के मेयर योना याहाव ने आगे कहा कि शहर के स्कूलों की इतिहास की पुस्तकों में यह सुधार किया जा रहा है कि शहर को ओटोमन शासन से मुक्त कराने वाले ब्रिटिश नहीं बल्कि भारतीय सैनिक थे.
मेयर योना याहाव ने आगे कहा- "मैं इसी शहर में पैदा हुआ और यहीं से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. हमें लगातार यही बताया जाता था कि इस शहर को अंग्रेजों ने आजाद कराया था, जब तक कि एक दिन हिस्टोरिकल सोसायटी के किसी व्यक्ति ने मेरे दरवाजे पर दस्तक नहीं दी और कहा कि उन्होंने काफी रिसर्च किया और पाया कि अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि भारतीयों ने इस शहर को (ओटोमन साम्राज्य से) आजाद कराया था.

भारतीय सैनिकों ने दिलाई आजादी
मेयर ने आगे बताया कि उन्होंने यह टिप्पणी भारतीय सैनिकों के श्मशान घाट पर उनकी बहादुरी को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित समारोह में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए की. याहाव ने कहा, "हर स्कूल में हम पाठ बदल रहे हैं और कह रहे हैं कि अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि भारतीयों ने हमें आजाद कराया. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, भालों और तलवारों से लैस भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों ने तमाम मुश्किलों के बावजूद माउंट कार्मेल की चट्टानी ढलानों से ओटोमन सेनाओं को खदेड़कर शहर को मुक्त कराया, जिसे अधिकांश युद्ध इतिहासकार "इतिहास का अंतिम महान घुड़सवार अभियान" मानते हैं.
हर साल मनाया जाता है हाइफा दिवस
मेयर याहाव ने 2009 में इसी स्थान पर आयोजित पहले समारोह के दौरान कहा था कि उत्तरी तटीय शहर की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में भारतीय सैनिकों द्वारा इसकी मुक्ति की कहानी शामिल की जाएगी और आज यह शहर के युवाओं के बीच एक प्रसिद्ध तथ्य है. भारतीय सेना हर साल 23 सितंबर को हाइफा दिवस के रूप में मनाती है, ताकि तीन बहादुर भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों - मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर्स - को श्रद्धांजलि दी जा सके, जिन्होंने 1918 में इसी दिन 15वीं इंपीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड की एक आक्रामक घुड़सवार कार्रवाई के बाद हाइफा को आजाद कराने में मदद की थी. भारतीय मिशन और हाइफा नगर पालिका द्वारा यहां भारतीय सैनिकों के कब्रिस्तान में हर साल बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.

कई लोगों को मिला मिलिट्री क्रॉस सम्मान
इस युद्ध में उनकी बहादुरी के सम्मान में कैप्टन अमन सिंह बहादुर और दफादार जोर सिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (आईओएम) से सम्मानित किया गया और कैप्टन अनूप सिंह और द्वितीय लेफ्टिनेंट सगत सिंह को मिलिट्री क्रॉस (एमसी) से सम्मानित किया गया.
मेजर दलपत सिंह, जो हाइफा के नायक के रूप में व्यापक रूप से लोकप्रिय थे, उनको भी उनकी बहादुरी के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया. इस युद्ध में जोधपुर लांसर्स के आठ सैनिक शहीद हुए और 34 घायल हुए. लेकिन उन्होंने 700 से ज्यादा कैदी, 17 फील्ड गन और 11 मशीन गन भी जब्त कर लीं. इस युद्ध को लगभग एकमात्र ऐसा अवसर बताया गया जब किसी किलेबंद शहर पर घुड़सवार सेना ने तेजी से कब्जा किया था.
74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद
इस कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान इजरायल में भारत के राजदूत जे.पी. सिंह ने कहा- भारतीय सैनिकों ने इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में ओटोमन सेना की हार हुई. सिंह ने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपनी जान कुर्बान की, जिनमें से 4,000 से ज्यादा पश्चिम एशिया में शहीद हुए.

भारतीय राजदूत ने कहा- यह उस युग की अंतिम शास्त्रीय घुड़सवार कार्रवाई थी, जिसमें युद्ध का बड़े पैमाने पर मशीनीकरण हुआ था. उन्होंने कहा- ये शहीद सैनिक हमारे देश के सभी प्रमुख धर्मों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे और यह श्रद्धांजलि दर्शाती है कि उनके साहस और बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा.
इजराइल के इन शहरों के कब्रिस्तानों में भारतीय सैनिक दफन
इजराइल में हाइफा, यरूशलेम और रामले में भारतीय सैनिकों के स्मारक मौजूद हैं, जिनमें कुछ भारतीय सैनिक भी शामिल हैं जो यहूदी वंश के थे. इजराइल के इन शहरों के कब्रिस्तानों में लगभग 900 भारतीय सैनिक दफन हैं. इन सैनिकों की बहादुरी को श्रद्धांजलि देने के लिए, भारतीय दूतावास, इजरायली अधिकारियों की मदद से, पवित्र भूमि में "द इंडिया ट्रेल" स्थापित कर रहा है.
हाइफा में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में कक्षा 3 से 5 तक भारतीय सैनिकों द्वारा हाइफा की मुक्ति की कहानी पढ़ाई जाती है. हाइफा हिस्टोरिकल सोसायटी भी पिछले एक दशक से शहर के स्कूलों में जाकर युवाओं को यह कहानी सुना रही है.
दिल्ली के तीन मूर्ति चौक का बदला नाम
इजराइल के साथ मित्रता के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में, भारत ने जनवरी 2018 में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की दिल्ली यात्रा के दौरान, इस ऐतिहासिक कार्य के उपलक्ष्य में 1922 में नई दिल्ली में निर्मित प्रतिष्ठित तीन मूर्ति चौक का नाम बदलकर "तीन मूर्ति हाइफा चौक" कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2017 में अपनी इजरायल यात्रा के दौरान हाइफा में भारतीय कब्रिस्तान का दौरा किया और शहर की मुक्ति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए मेजर दलपत सिंह की स्मृति में एक पट्टिका का अनावरण किया.
पीएम मोदी ने सैनिकों को किया सलाम
मोदी ने अतिथि पुस्तिका में लिखा था, "मैं आज यहां खड़े होकर उन बहादुर भारतीय सैनिकों को सलाम करते हुए बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हाइफा की मुक्ति के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. 61वीं घुड़सवार सेना, जो स्वतंत्रता के बाद तीन घुड़सवार इकाइयों के विलय के बाद बनाई गई इकाई को दिया गया नाम है, ने शताब्दी समारोह में भाग लेने के लिए 2018 में एक टुकड़ी इजराइल भेजी थी. इजराइल पोस्ट ने शहर को आजाद कराने में भारतीय सैनिकों की भूमिका की सराहना में 2018 में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था.