देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में से एक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना 04 फरवरी 1916 को हुई. यूनिवर्सिटी की स्थापना राष्ट्रवादी नेता और शिक्षाविद् पंडित मदन मोहन मालवीय ने डॉ. एनी बेसेंट के सहयोग से की थी. जब पंडित मालवीय ने एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की यूनिवर्सिटी बनाने का सपना देखा, तो उनके पास इसके लिए पैसा नहीं था. उन्होंने देशभर से चंदा इकट्ठा कर यूनिवर्सिटी बनाई. यूनिवर्सिटी के लिए जमीन भी उन्होंने दान में पाई और स्थापना के लिए एक-एक पाई दान के पैसे से जोड़ी.
अंग्रेजों से गुलामी के दौर में पंडित मदन मोहन मालवीय ने देखा कि हायर एजुकेशन के लिए भारतीय स्टूडेंट्स देश से बाहर जाने के लिए मजबूर थे. अब्रॉड पढ़ाई करने से युवाओं के मन में अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति सम्मान नहीं रहता. ऐसे में उन्होंने विचार किया कि देश के भीतर ही ऐसी क्वालिटी एजुकेशन उप्लब्ध होनी चाहिए, ताकि पढ़ाई के लिए युवाओं को देश से बाहर जाने की जरूरत न हो. उन्होंने साल 1904 में ही एक विश्व स्तरीय यूनिवर्सिटी बनाने का प्रस्ताव कांग्रेस के सामने रख दिया था.
काशी नरेश से दान में ली जमीन
विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए काशी नरेश ने पंडित मालवीय को जमीन दान में दी. प्रचलित कहानी ये है कि जब पंडित मालवीय उनके पास दान मांगने पहुंचे तो काशी नरेश ने इस शर्त के साथ उन्हें जमीन देने का वादा किया, कि वह सूर्यास्त तक जितनी जमीन पैदल चलकर नाप लेंगे, उतनी जमीन उन्हें दे दी जाएगी.
हैदराबाद के निजाम ने फेंक दिया था जूता
पिपुलट्री वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब पंडित मालवीय चंदा मांगने हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खां के पास गए तो उन्होंने इसे हिंदू विश्वविद्यालय मानते हुए कुछ भी देने से मना कर दिया. साथ ही उन्होंने गुस्से में पंडित मालवीय पर अपनी जूती भी फेंक दी. पंडित मालवीय ने विनम्रता के साथ उनकी जूती उठाई और वहां से चले गए. बाद में उन्होंने उसी जूती को नीलाम कर दिया और उससे मिलने वाला पैसा विश्वविद्यालय के निर्माण में लगा दिया.
1916 में बनी यूनिवर्सिटी
इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बिल 22 मार्च 1915 को पास हुआ. इसके बाद 04 फरवरी 1916 को यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. उस समय भारत में इस स्तर की कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी. उन्होंने अमृतसर से दरभंगा और जोधपुर तक घूमकर यूनिवर्सिटी के लिए चंदा इकट्ठा किया. पंडित मालवीय 2 दशकों तक यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी रहे.