आम तौर पर औद्योगिक संदर्भ में क्रिएटिविटी और इनोवेशन अमूमन कुछ मौलिक, अनोखे और नए उत्पाद के जरिए ग्राहकों को मौजूदा उत्पाद से कुछ अधिक उम्दा मुहैया कराने को कहा जाता है. इसलिए हर इनोवेटिव या क्रिएटिव गतिविधि के लिए जरूरी तामझाम चाहिए. उसे पारंपरिक ढांचे में नहीं सिखाया जा सकता.
उसके लिए तो ऐसा माहौल बनाना होगा जिसमें क्रिएटिविटी और इनोवेशन को संभव बनाने के लिए नॉलेज, स्किल और इनोवेटिव प्रक्रियाओं का संगम हो. नॉलेज और स्किल को दो हिस्से में बांटा जा सकता है—सामान्य नॉलेज तथा स्किल और खास विषय की नॉलेज तथा स्किल. क्रिएटिविटी की सर्वमान्य टेक्नीक ब्रेनस्टॉर्मिंग या ब्रेन राइटिंग है.
हालांकि मॉर्फालॉजिकल एनालिसिस, फोर्स्ड कनेक्शन वगैरह दूसरी टेक्नीक भी हैं. लेकिन जो भी टेक्नीक चुनी जाए, वह समस्या की पहचान, आइडिया जेनरेशन या विचारों के चयन जैसे इनोवेशन की प्रक्रिया के चरणों में फिट बैठना चाहिए.
दूसरी ओर कोई इनोवेशन की प्रक्रिया किसी जरूरत या मौके के साथ शुरू होती और उत्पाद या सॉफ्टवेयर सिस्टम के पूरा होने के साथ खत्म होती है. इनोवेशन की प्रक्रिया पेचीदा होती है और इसमें समाधान पर पहुंचने के लिए कई मोड़ से गुजरना होता है. सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग या औद्योगिक डिजाइन में, यह एक मिली-जुली प्रक्रिया है जिसमें परियोजना के अलग-अलग हिस्सों के काम अलग-अलग चरणों में चलते रहते हैं.
इनोवेशन मैनेजमेंट यह तय करता है कि इसके भिन्न-भिन्न मॉडयूल एक-दूसरे से सहजता से जुड़ जाएं. इसका मकसद अतिरिक्त संसाधन जुटाने से पहले परियोजना के व्यावसायिक पक्ष को जांचना होता है. लेकिन फर्क तो लोगों की कल्पना और मेहनत से ही आता है.
दरअसल इनोवेशन के लिए ऐसे लीडर की दरकार होती है जो इनोवेशन के अनुकूल माहौल पैदा कर सके, इसके अलावा सामान्य स्किल और प्रासंगिक टेक्नोलॉजी के अच्छे जानकार कर्मचारी होने चाहिए और नए उत्पाद या सेवा के संभावित ग्राहकों की खास जरूरतों और चाहत को समझने वाले लोग होने चाहिए. यही नहीं, इनोवेशन के लिए व्यापारिक बुद्धि वाले लोगों की भी दरकार है जो उस उत्पाद या सेवा को मुनाफे के धंधे में तब्दील करने में अहम भूमिक निभा सकें.
क्रिएटिव और इनोवेटिव इंजीनियरों के लिए जरूरी स्किल
किसी समस्या का हल निकालने, डाटा समीक्षा और नई सोच की क्षमता ही क्रिएटिविटी को आगे बढ़ाती है.
डिजाइन स्किल्स.
किसी एक विषय में विशेषज्ञता समस्या पर फोकस करने में मददगार होती है.
दूसरे विशेषज्ञों के साथ काम करने की काबिलियत होनी चाहिए. अमूमन क्रिएटिव समाधान दूसरों से बातचीत से निकलता है, बशर्ते वे अपने विषय के जानकार हों क्योंकि क्रिएटिविटी विस्तृत बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान के जरिए ही आकार लेती है.
संबंधित परियोजनाओं से जुड़ाव क्योंकि एक-दूसरे के पूरक स्किल्स वालों के बीच संपर्क बनता है.
समस्या और उसकी समीक्षा से जुड़ी लर्निंग बढ़ानी चाहिए.
इनोवेशन मैनेजमेंट सबसे अहम है. इनोवेशन के मैनेजमेंट की प्रक्रिया ही क्रिएटिविटी के अंतिम स्वरूप को प्रभावित करती है और उसकी क्वालिटी बढ़ाती है.