जॉब मिल गया है... अब घर खरीद लेते हैं. किराये पर रहकर कितने दिन तक नौकरी करेंगे. आज के दौर में ये आम धारणा है, खासकर मिडिल क्लास फैमिली में. दरअसल, घर खरीदना अब इसलिए आसान हो गया है, कि होम लोन आसानी से मिल जाता है.
लेकिन अब ये चर्चा जरूर होने लगी है कि घर खरीदना (Buy House) चाहिए या नहीं? नौकरी के कितने दिन के बाद घर खरीदना चाहिए? क्या घर खरीदना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. या फिर सबसे बेहतर विकल्प ये हो सकता है कि किराये पर ही रहें? अधिकतर मिडिल क्लास फैमिली के लोग अपनी जिंदगी में एक या दो घर खरीदते हैं. लेकिन कर्ज लेकर घर खरीदने पर चुकाने की टेंशन बनी रहती है.
कुछ लोग ये सोचकर भी घर खरीद सैलरी अच्छी है, फिर किराये पर क्यों रहे?, लेकिन घर खरीदना या किराये पर रहना... ये दोनों फैसले केवल आमदनी पर निर्भर नहीं करते. अब आइए एक-एक सवाल का जवाब जानते हैं.
सवाल: आपको कब घर खरीदना चाहिए?
जवाब: घर खरीदने के दो पैमाने होते हैं. पहला- कितने का घर है और कितनी आपकी सैलरी है. सीधा फॉर्मूला है कि Home Loan की EMI आपकी सैलरी का अधिकतम 20 से 25 फीसदी हिस्सा हो. उदाहरण के लिए अगर आपकी मंथली सैलरी 1 लाख रुपये है, फिर आप 25 हजार रुपये महीने की EMI आसानी से चुका सकते हैं.
सवाल: अगर सैलरी 1 लाख रुपये से कम है तो फिर क्या करें?
जवाब: अगर सैलरी 50 से 70 हजार रुपये के बीच है और होम लोन लेकर घर खरीद लेते हैं, जिसकी EMI करीब 25 हजार रुपये बनती है, तो वित्तीय तौर पर ये फैसला गलत माना जाएगा. क्योंकि होम लोन चुकाने में कम से कम 20 साल का लंबा वक्त लग जाता है. हालांकि यह सोच या सलाह बिल्कुल गलत है कि घर खरीदना ही नहीं चाहिए. किराये पर ही रहने में फायदा है. अगर सैलरी की 25 फीसदी राशि ही लोन की EMI बनती है तो जरूर घर खरीदें.
वहीं अगर सैलरी 50 से 70 हजार रुपये के बीच है और घर की ईएमआई 20 हजार रुपये कम रहती है तो घर खरीद सकते हैं. यानी 25 लाख रुपये तक का घर ले सकते हैं. जिसकी 20 साल के लिए 20 हजार रुपये से कम आएगी.
सवाल: सैलरी 1 लाख रुपये ज्यादा, फिर क्या करें?
जवाब: अगर घर की कीमत 30 लाख रुपये से अधिक है, ऐसे में 50 से 70 हजार की सैलरी वालों को किराये पर रहना फायदा का सौदा होगा. इस दौरान हर महीने बचत पर फोकस करें, और जब सैलरी एक लाख रुपये के आसपास पहुंच जाए, तो घर खरीद सकते हैं. जितना अधिक डाउन पेमेंट करेंगे, उतनी कम EMI आएगी.
वित्तीय तौर पर माना जाता है कि अगर किसी की सैलरी एक लाख रुपये है, तो वो 30 से 35 लाख रुपये तक का घर खरीदने का फैसला ले सकता है. वहीं अगर सैलरी डेढ़ लाख रुपये महीने है. ऐसे लोगों के लिए 50 लाख के ऊपर बजट का घर सही रहेगा. यानी हर हाल में सैलरी का अधिकतम 25 फीसदी राशि ही होम लोन की EMI होनी चाहिए.
सवाल: घर खरीदने में जॉब प्रोफाइल का सबसे बड़ा रोल, जानिए कैसे?
जवाब: घर खरीदने से पहले ये जरूर सोचें कि आप काम क्या करते हैं? आपका जॉब प्रोफाइल क्या है? फिर फैसला लें. अगर आप सबसे पहले घर ले लेते हैं तो फिर एक शहर से बंधकर रह जाएंगे. अधिकतर लोग करियर ग्रोथ की वजह से शुरुआती दौर में एक शहर से दूसरे शहर में शिफ्ट हो जाते हैं. ऐसे में पहली नौकरी के साथ घर खरीदने पर लोग नौकरी बदलने की स्थिति में नहीं रहते. क्योंकि नए शहर में जाकर किराये पर रहना और फिर अपने घर को किराये पर देना वो उचित नहीं समझते. साथ ही अगर सेक्योर जॉब नहीं है तो फिर हड़बड़ी में घर न खरीदें. नौकरी छूट जाने की स्थिति में EMI की परेशान कर सकती है.
सवाल: कितने दिन तक रेंट पर चाहिए, या कब फैसला लेना चाहिए कि अब घर खरीद लेते हैं?
जवाब: ये सवाल आम है, इसका सीधा जवाब है, जब आप किसी एक शहर को लेकप फैसला कर लें, कि अब यहीं रहना है, जॉब में उतार-चढ़ाव न हो, और फिर घर की EMI आमदनी की 20 फीसदी राशि हो, ताकि घर की वजह से आर्थिक तंगी न हो, निवेश को प्रभावित न करें. फिर आप घर खरीद सकते हैं. इन लक्ष्य तक पहुंचने में चाहे नौकरी के 10 साल बीत जाए, तब तक रेंट पर रहिए. क्योंकि इससे आपकी आर्थिक चुनौतियां नहीं बढ़ेंगी. किराये पर रहकर आप नौकरी या शहर बदल सकते हैं. आप किराये पर रहकर अपनी बचत को निवेश में लगाकर बेहतर रिटर्न कमा सकते हैं.
सवाल: कहां खरीद घर?
जवाब: अगर घर खरीदने का फैसला कर लिया है तो फिर प्रॉपर्टी का चयन जरूर करें. अगर फ्लैट खरीदना है, तो ऐसे लोकेशन में खरीदें जहां रेंट में अच्छी रकम मिलती हो. साथ ही फ्लैट की कीमत में सालाना कम से कम 8 से 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो. ताकि महंगाई के हिसाब से फ्लैट की कीमत भी बढ़ती जाए और जब होम लोन चुकता हो जाए, यानी 20 साल के बाद तो फ्लैट की मौजूदा कीमत बॉयिंग प्राइस की तुलना में कम से कम तिगुनी होनी चाहिए.
गौरतलब है कि कुछ लोग पहली नौकरी के साथ ही घर और कार खरीद कर अपने ऊपर EMI की बोझ डाल लेते हैं, जो आगे चलकर बिल्कुल गलत फैसला साबित होता है. इसलिए जरूरत के हिसाब से फैसले लें. कमाई को आधार बनाकर फैसले लेंगे तो वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. एक और काम की बात ये है कि पहली नौकरी के साथ ही अगर सेविंग (Saving) की शुरुआत कर देंगे तो 40 साल की उम्र में आप अपने रिटायरमेंट को लेकर आश्वस्त हो जाएंगे.