परेशानी में चल रहे इंडियाबुल्स समूह में निजी और सरकारी बैंकों का करीब 27,580 करोड़ रुपये फंसा हुआ है. यह कर्ज और नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर के रूप में है. इंडियाबुल्स के प्रमोटर वित्तीय अनियमितता के आरोपों का सामना कर रहे हैं. सबसे ज्यादा पैसा भारतीय स्टेट बैंक का है जिसके 8,100 करोड़ रुपये दांव पर हैं. संकट में चल रहे यस बैंक के भी इसमें 6,040 करोड़ रुपये दांव पर लगे हैं. इंडियाबुल्स ने अगर डिफाल्ट किया तो सबसे ज्यादा जोखिम यस बैंक के लिए ही है.
इंडियाबुल्स समूह में मुख्य कंपनी इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस (IHFL), इसकी 100 फीसदी सब्सिडियरी इंडियाबुल्स कॉमर्शियल क्रेडिट (ICCL) और इंडियाबुल्स कंज्यूमर फाइनेंस (ICFL) शामिल हैं. मैकक्वायर रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्टेट बैंक के बाद इसमें बैंक ऑफ बड़ौदा (विजया बैंक और देना बैंक सहित) ने 6,460 करोड़ रुपये और यस बैंक के 6,040 करोड़ रुपये लगे हुए हैं.
क्यों है यस बैंक के लिए ज्यादा जोखिम
यस बैंक के कुल नेटवर्थ का एक चौथाई इंडियाबुल्स समूह में फंसा हुआ है. यस बैंक का कुल नेटवर्थ करीब 27,000 करोड़ रुपये है. यानी इंडियाबुल्स ने अगर डिफाल्ट किया तो सबसे ज्यादा जोखिम यस बैंक के लिए ही है. इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा के नेटवर्थ का 10 फीसदी हिस्सा इंडियाबुल्स को दिया गया है.
इंडसइंड बैंक ने इंडियाबुल्स समूह को 3,080 करोड़ रुपये और एचडीएफसी बैंक ने 1,650 करोड़ रुपये दे रखे हैं. हालांकि इन दोनों बैंकों को लोन का कुछ हिस्सा वापस भी मिल चुका है. इनके अलावा आरबीएल बैंक ने इंडियाबुल्स को 390 करोड़ रुपये, कोटक महिंद्रा बैंक ने 170 करोड़ रुपये और एक्सिस बैंक ने 1,690 करोड़ रुपये का लोन दे रखा है. ICICI बैंक इस मामले में बचा हुआ है, क्योंकि उसने इंडियाबुल्स को कोई लोन नहीं दिया है.
एक साल से जारी है संकट
गौरतलब है कि पिछले एक साल से संकट में चल रही इंडियाबुल्स ने अपने ज्यादातर ऑफिस एसेट प्राइवेट इक्विटी दिग्गज ब्लैकस्टोन को बेच दिए हैं, जो कि आगे समूह के कॉमर्शियल पोर्टफोलियो पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करेगा. मार्च में इंडियाबुल्स ने मुंबई और गुरुग्राम के अपने दो कॉमर्शियल प्रॉपर्टी को 4,750 करोड़ रुपये में ब्लैकस्टोन को बेचे हैं. इंडियाबुल्स को लक्ष्मी विलास बैंक में विलय करने की भी योजना है, लेकिन अभी इसे प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग और कई अन्य एजेंसियों से हरी झंडी नहीं मिली है.
ये हैं आरोप
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में आरोप लगाया गया है कि चेयरमैन समीर गहलोत सहित इंडियाबुल्स के प्रमोटर ने ग्रुप की कंपनियों को फंड अपने खाते में ट्रांसफर करा लिया. 30 सितंबर को इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस के शेयरों में 34 फीसदी की गिरावट देखी गई. पिछले एक साल में यह शेयर 70 फीसदी तक गिर चुका है.