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23 लाख मकानों का निर्माण कार्य लटका, मांग कम, लागत ज्यादा होने से बिल्डर परेशान

Real Estate Projects Delay कर्ज की लागत ज्यादा होने, बाजार में सुस्ती और परियोजनाओं की मंजूरी में हो रही देरी की वजह से देश में हजारों रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स का काम लटक गया है. यह इस लिहाज से एक बड़ी समस्या मानी जा सकती है कि केंद्र सरकार सबको मकान देने के लक्ष्य पर काम कर रही है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (रायटर्स)
प्रतीकात्मक तस्वीर (रायटर्स)

देश में 23 लाख से ज्यादा मकानों का निर्माण अधर में लटक गया है. रियल एस्टेट बाजार में सुस्ती की वजह से मांग घट गई है और कर्ज की लागत बढ़ गई है जिसकी वजह से डेवलपर काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. रियल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म लियासेज फोराज के मुताबिक ये मकान देश भर में फैले करीब 16,330 प्रोजेक्ट के हैं.

लियासेज फोरास के एमडी और फाउंडर पंकज कपूर ने हमारे सहयोगी प्रकाशन बिजनेस टुडे को बताया, 'इस देरी की कोई एक वजह नहीं है. यह सिस्टमेटिक मसला है. यह सेक्टर एक ऐसी मुश्किल में फंस गया है जिसमें एक वजह दूसरे को बढ़ावा दे रहा है और इस वजह से देरी बढ़ती जा रही है.' 

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से रियल एस्टेट सेक्टर में बिक्री में 6 से 7 फीसदी की बढ़त हो रही है. अनबिके मकानों की संख्या बहुत ज्यादा है जिनको बेचकर निपटाने में करीब 40 माह लग सकते हैं. बिल्डर्स को बिक्री से मिलने वाले धन का इंतजार है ताकि वे लगातार अपने प्रोजेक्ट्स में पैसा लगा सकें. कपूर ने कहा, 'बिक्री यदि धीमी है, तो बिल्डर प्रोजेक्ट में देरी कर देते हैं और उन्हें बहुत ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है. यही नहीं पैसे का इस्तेमाल निर्माण में लगाने की जगह वे इसे पुराने कर्ज चुकाने में लगाते हैं. यह एक तरह का दुष्चक्र है.' 

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प्रोजेक्ट्स की मंजूरी में होने वाली देरी एक और वजह है जिससे इनके पूरा होने की डेडलाइन का आगे बढ़ाना पढ़ता है. कॉलियर्स इंटरनेशनल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अमित ओबेरॉय ने कहा, 'आमतौर पर किसी प्रोजेक्ट को मंजूरी हासिल होने में तीन से छह महीने का समय लगता है, लेकिन यह विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होता है. जमीन राज्यों के अधिकार के तहत आता है, इसलिए मंजूरी मिलने का समय अलग-अलग होता है.'

काफी लंबे समय से रियल एस्टेट सेक्टर परियोजनाओं के सिंगल विंडो क्लियरेंस की मांग कर रहा है. लेकिन इस मांग पर अभी कोई प्रगति नहीं हुई है. कपूर ने कहा, 'किसी वजह से यदि किसी प्रोजेक्ट में देरी होती है, तो यह अव्यवहार्यता की स्थिति में पहुंच जाता है.'

जिन 16,330 प्रोजेक्ट का काम लटका है उनमें से 877 में चार साल से ज्यादा की देरी हो चुकी है, जबकि 4,346 प्रोजेक्ट के पूरे होने में एक से दो साल की देरी हो रही है.

ओबेरॉय ने बताया, 'लेट होने वाले ज्यादातर प्रोजेक्ट रेरा से पहले वाले दिनों के हैं. कई प्रोजेक्ट तो ऐसी हालत में पहुंच गए हैं कि जिनमें उन्हें पूरा करना अब वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं रह गया है.'

कपूर ने कहा कि रेरा लागू होने के बाद अब मकानों की नई आपूर्ति में देरी नहीं होगी. इसके तहत बिल्डर्स को टाइमलाइन का पालन करना जरूरी है. वैसे सरकार की लगातार कोशिश है कि परियोजनाओं के क्रियान्वयन का काम तेज हो. कुछ महीने पहले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने देश में 50 हजार वर्ग मीटर तक की बड़ी निर्माण परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी की शर्त को खत्म कर दिया है.

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