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उठो देव जागो देव... देव उठनी एकादशी पर गाएं ये भजन, जागते हैं भगवान विष्णु

देवोत्थान एकादशी, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं. इस दिन उनकी पूजा और जागरण के लिए पारंपरिक मंत्रों के साथ-साथ लोक गीतों का भी विशेष महत्व है.

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देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं

देव उठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि देव जागरण की तिथि कहलाती है. सामान्य मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और फिर से संसार के भरण-पोषण का कार्य संभालते हैं. उनकी अनुपस्थिति में चार महीने तक यह कार्य अलग-अलग देवता करते रहते हैं, जिनमें शिवजी, गणेशजी, पितृ देवता और मां पार्वती या देवी दुर्गा भी शामिल हैं. खैर, ये पौराणिक मान्यता है और इनका जिक्र पुराण कथाओं में अलग-अलग संदर्भ में मिलता है. 

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन देव यानी विष्णु जी जागते हैं और उनके पूजन के दौरान उन्हें जगाने की परंपरा भी है. इस दिन देव को जगाने के लिए यानी उठाने के लिए कुछ पारंपरिक गीत गाए जाते हैं. पारंपरिक गीतों का महत्व मंत्रों से कम नहीं है. 

स्कंदपुराण में भगवान विष्णु को जगाने के लिए एक मंत्र का वर्णन है. 

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु।। 

इसका अर्थ है कि हे कमलाकांत, हे गोविंद, हे गरुड़ध्वज आप जागिए और उठिए और संसार समेत त्रिलोक का मंगल कीजिए.

लेकिन, लोक परंपरा में लोक गीतों का स्थान भी मंत्रों के समान ही पवित्र है. इन लोक भजनों को नवधा भक्ति में शामिल किया गया है, क्योंकि इनकी भाषा सरल, भाव शुद्ध और सीधे ईश्वर तक अपनी बात अपने तरीके से पहुंचाई जाती है. देवोत्थान के मौके पर ऐसे ही एक भजन के जरिए श्रीहरि को उठाया जाता है. अपनी पूजा के दौरान आप भी इसे गा सकते हैं.

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उठो देव बैठो देव गीत 
उठो देव बैठो देव

पाटकली चटकाओ देव

आषाढ़ में सोए देव
कार्तिक में जागे देव

कोरा कलशा मीठा पानी
उठो देव पियो पानी

हाथ पैर फटकारो देव
आंगुलिया चटकाओ देव

कुवारी के ब्याह कराओ देव
ब्याह के गौने कराओ

तुम पर फूल चढ़ाए देव
घी का दीया जलाये देव

आओ देव पधारो देव
तुमको हम मनाएं देव

चूल्हा पीछे पांच पछीटे
सासू जी बलदाऊ जी धारे रे बेटा

ओने कोने झांझ मंजीरा
सहोदर किशन जी तुम्हारे वीरा

ओने कोने रखे अनार
ये है किशन जी तुम्हारे व्यार

ओने कोने लटकी चाबी
सहोदरा ये है तुम्हारी भाभी

जितनी खूंटी टांगो सूट
उतने इस घर जन्मे पूत

जितनी इस घर सीक सलाई
उतनी इस घर बहुएं आईं

जितनी इस घर ईंट और रोडे
उत‌ने इस घर हाथी-घोड़े

गन्ने का भोग लगाओ देव

सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
बेर का भोग लगाओ देव

गाजर का भोग लगाओ देव
गाजर का भोग लगाओं देव

उठो देव उठो...

ये भजन लोक परंपरा में शामिल है और बहुत प्रसिद्ध है. इसमें बड़ी ही सरल भाषा में, आम शैली में एक भक्त ने अपनी मांग, अपनी पुकार रखी है. भजन में हरिविष्णु को मौसमी फल जैसे गन्ना, सिंघाड़ा, बेर, गाजर आदि का भोग लगाने की बात है तो वहीं उनसे संतान, व्याह-शादी आदि की मांग की जा रही है. देवोत्थान के मौके पर आप भी इस गीत के जरिए भगवान विष्णु को जागृत कर सकते हैं.

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