मादुरो तो बस बहाना, जिनपिंग असली निशाना... ट्रंप ने जंग छेड़ दी तो चीन के 60 अरब डॉलर का क्या होगा?

लैटिन अमेरिका में ट्रंप और मादुरो की लड़ाई ग्लोबल क्रूड मार्केट में खलबली मचा सकती है. चीन ने वेनेजुएला को अरबों डॉलर का कर्ज इस भरोसे पर दिया है कि उसे इस लोन के बदले में कच्चे तेल की लगातार सप्लाई मिलती रहेगी. लेकिन अगर ये लड़ाई छिड़ जाती है तो सारा समीकरण ध्वस्त हो जाएगा. इसका असर ग्लोबल मार्केट पर पड़ना तय है.

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चीन वेनेजुएला से 6 लाख बैरल तेल रोज मंगाता है. (Photo: ITG) चीन वेनेजुएला से 6 लाख बैरल तेल रोज मंगाता है. (Photo: ITG)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 17 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वेनेजुएला के तेल टैंकरों पर पूर्ण नाकाबंदी का आदेश दिया है. इसका मतलब यह है कि वेनेजुएला के ऑयल शिप की कोई मूवमेंट नहीं हो पाएगी. अगर ये ऑयल शिप अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा में जाते हैं तो अमेरिका इन पर सैन्य कार्रवाई कर इन्हें जब्त कर सकता है. अमेरिका ऐसा कर भी चुका है. 

वेनेजुएला और अमेरिका के बीच अगर टकराव आगे बढ़ता है तो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित चीन होगा. चीन वेनेजुएला के तेल का सबसे बड़ा खरीदार है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह तनाव युद्ध में बदलता है, तो चीन की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को गंभीर चुनौतियां मिल सकती हैं. चीन वेनेजुएला से लगभग 600,000 से 650,000 बैरल प्रति दिन (bpd) कच्चा तेल आयात करता है. ये आंकड़े दिसंबर 2025 के हैं. 

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वेनेजुएला चीन के कुल कच्चे तेल आयात का करीब 4% हिस्सा सप्लाई करता है, जो वैश्विक स्तर पर कम लगता है, लेकिन भारी और सस्ते क्रूड की वजह से ये क्रूड ऑयल चीनी रिफाइनरियों के लिए महत्वपूर्ण है. अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद चीन अप्रत्यक्ष रूट्स से यह तेल खरीदता रहा है, जैसे कि मलेशियन लेबलिंग के जरिए.

वेनेजुएला और अमेरिकी की लड़ाई में फंसेगा चीन का तेल

इस वक्त 20 मिलियन बैरल से अधिक वेनेजुएलन तेल समंदर में फंसे हुए हैं. ये तेल अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं. 

अगर ट्रंप वेनेजुएला के खिलाफ आगे बढ़ते हैं तो इस तेल का चीन तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा. 

वेनेजुएला से कच्चा तेल मुख्य रूप से समुद्री टैंकरों के जरिए चीन पहुंचता है. अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण यह व्यापार जटिल और अप्रत्यक्ष रूट्स पर निर्भर है. वेनेजुएला का अधिकांश तेल मलेशिया के तट के पास पहुंचता है. वहां इस तेल को दूसरे टैंकर में तेल ट्रांसफर किया जाता है, और इसे मलेशियन ओरिजिन (जैसे Malaysian Bitumen Blend या Mal Blend) के रूप में री-ब्रांड किया जाता है. इसके बाद यह सीधे चीन के पोर्ट्स (जैसे शांडोंग प्रांत के इंडिपेंडेंट रिफाइनरियों) पहुंचता है. यह तरीका प्रतिबंधों से बचने के लिए आम है और 2025 में भी जारी है. 

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वेनेजुएला के पोर्ट से निकले तेल को चीन तक पहुंचने में 15000 किलोमीटर की लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. 

चीन-वेनेजुएला संबंधों की जड़ें गहरी हैं.  पिछले दो दशकों में चीन ने वेनेजुएला को करीब 60 अरब डॉलर का कर्ज दिया है, जिनमें से अधिकांश कर्ज तेल निर्यात से चुकाए जा रहे हैं. चीनी कंपनियां वेनेजुएला के तेल क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं, और मादुरो सरकार के लिए बीजिंग एक प्रमुख सहयोगी बना हुआ है. 

वेनेजुएला के तेल में चीन का भारी भरकम निवेश

चीन ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए वेनेजुएला में अरबों डॉलर का निवेश किया है. वेनेजुएला के तेल क्षेत्र में चीन का निवेश काफी पुराना और गहरा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से यह काफी बदल चुका है. 2007 से 2016 के बीच चीन ने वेनेजुएला को लगभग 50-60 अरब डॉलर के कर्ज दिए थे. ये ज्यादातर “तेल के बदले कर्ज” वाली डीलें थीं, यानी वेनेजुएला तेल निर्यात करके इन कर्जों को चुकाता था. 

यह भी पढ़ें: 'वेनेजुएला युद्धपोतों से घिर चुका है...', ट्रंप ने दी बैटल वॉर्निंग, मादुरो सरकार आतंकी संगठन घोषित, तेल टैंकरों की नाकेबंदी

 इस दौरान चीन की बड़ी सरकारी कंपनियां जैसे CNPC और Sinopec ओरिनोको बेल्ट के कुछ ब्लॉक्स में जॉइंट वेंचर्स के जरिए सक्रिय थीं. CNPC का Sinovensa नाम का जॉइंट वेंचर सबसे प्रमुख था, लेकिन 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद इन बड़ी कंपनियों ने नए निवेश पूरी तरह रोक दिए और मौजूदा ऑपरेशंस भी काफी हद तक कम कर दिए.

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अब स्थिति यह है कि सरकारी स्तर पर बड़े निवेश नहीं हो रहे, लेकिन निजी चीनी कंपनियां सक्रिय हैं. सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण China Concord Resources Corp का है, जो एक प्राइवेट कंपनी है. 2024 में इसने PDVSA के साथ 20 साल का प्रोडक्शन-शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट साइन किया और माराकाइबो झील क्षेत्र के दो ऑयलफील्ड्स में एक अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश कर रही है. ये एक फ्लोटिंग ऑयल फील्ड है. यहां उत्पादन को मौजूदा 12 हजार बैरल प्रतिदिन से बढ़ाकर 60 हजार बैरल प्रतिदिन तक ले जाने का लक्ष्य है.

चीन का डबल गेम

चीन ने वेनेजुएला के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई के खिलाफ सिर्फ़ ज़ुबानी आपत्ति जताई है और सैन्य या आर्थिक समर्थन नहीं दिया है. चीन के लिए वेनेजुएला के साथ सीधा टकराव अमेरिका के साथ उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को और बढ़ा सकता है, जिससे उसकी अन्य वैश्विक रणनीतियों और व्यापार संबंधों पर खतरा हो सकता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अमेरिका के साथ कूटनीतिक तनाव बढ़ाना नहीं चाहता और इसलिए वेनेजुएला को खुला समर्थन नहीं दे रहा।.

वैश्विक ऊर्जा बाजार पर असर

अगर ट्रंप वेनेजुएला के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करते हैं तो वेनेजुएला का तेल निर्यात बाधित हो सकता है, जिससे वैश्विक तेल की आपूर्ति पर असर पड़ेगा और कीमतें बढ़ सकती हैं. चीन के लिए यह आपूर्ति विकल्पों की तलाश और ऊर्जा सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है।. 

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ट्रंप प्रशासन की नई नीति जिसमें संदिग्ध ड्रग बोट्स पर सैन्य हमले और टैंकर नाकाबंदी शामिल है, दुनिया के एनर्जी मार्केट को प्रभावित कर सकती है. चीन की सप्लाई अगर वेनेजुएला से बाधित होती है तो चीन को वैकल्पिक स्रोतों (जैसे रूस या मध्य पूर्व) से महंगा तेल खरीदना पड़ेगा. चीन का ये कदम एनर्जी मार्केट में असंतुलन पैदा करेगा. ये टकराव विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करेगा. 

हालांकि वर्तमान स्टॉक और ग्लोबल सप्लाई में प्रचुरता से फरवरी-मार्च 2026 तक राहत मिल सकती है, लेकिन लंबे समय में ऊर्जा कीमतें बढ़ सकती हैं. इसके अलावा वेनेजुएला से ऋण वसूली भी प्रभावित होगी, क्योंकि मादुरो सरकार की अस्थिरता से तेल-फॉर-लोन मॉडल खतरे में पड़ जाएगा. 

अमेरिका के इस कदम से लैटिन अमेरिका में चीन का प्रभाव कम होगा और अमेरिका की 'बैकयार्ड' नीति मजबूत होगी. विश्लेषक मानते हैं कि चीन सीधे हस्तक्षेप से बचेगा, लेकिन कूटनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ाएगा. फिलहाल चीन सतर्क रुख अपनाए हुए है, लेकिन वेनेजुएला संकट उसके लिए एक बड़ी परीक्षा बनता जा रहा है. 

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