अमेरिका ने ईरान के करीब क्यों तैनात किया 'आसमान का भूत', मिडिल ईस्ट में बढ़ सकता है तनाव

यह अमेरिका के पास सबसे अच्छा और यकीनन दुनिया का सबसे बेहतरीन युद्धक विमान है. एक बमवर्षक विमान की कीमत 2 बिलियन डॉलर है और एयर डिफेंस से साथ-साथ ये रडार से आसानी से बच सकते हैं. बी-2 दुनिया में किसी भी टारगेट तक पहुंच सकता है और बेस पर वापस आ सकता है.

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अमेरिका ने तैनात किए घातक बमवर्षक विमान (फाइल फोटो: Pexels) अमेरिका ने तैनात किए घातक बमवर्षक विमान (फाइल फोटो: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 7:25 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को यमन में दर्जनों हूती विद्रोहियों को मार गिराने वाली मिलिट्री एयर स्ट्राइक की वीडियो शेयर की है. यह घटना ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका ने कुछ दिनों पहले ही हिंद महासागर में एक द्वीप डिएगो गार्सिया में छह बी-2 स्टील्थ बॉम्बर विमान भेजे थे, जिसे एक्सपर्ट ईरान और हूतियों सहित उसके समर्थकों को रोकने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.

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दुनिया के सबसे एडवांस विमानों में से एक, जिसे 'आसमान का भूत' भी कहा जाता है, की ईरान के समुद्र तट से सिर्फ 2,400 मील की दूरी पर बड़े पैमाने पर तैनाती से पहले से ही उबल रहे मिडिल ईस्ट में तनाव और बढ़ गया है. प्लैनेट लैब्स पीबीसी की सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि द्वीप के एयरबेस पर छह बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स हैं, जिसका मैनेजमेंट अमेरिका और ब्रिटेन की सेना करती है. यह अमेरिका के स्टील्थ बॉम्बर बेड़े का 30 फीसदी है, एक्सपर्ट ने हैंगर में और भी बॉम्बर्स की मौजूदगी से इनकार नहीं किया है.

बी-2 स्टील्थ बमवर्षक क्यों?

इसकी वजह साफ है, यह अमेरिका के पास सबसे अच्छा और यकीनन दुनिया का बेहतरीन युद्धक विमान है. एक बमवर्षक विमान की कीमत 2 बिलियन डॉलर है और एयर डिफेंस से साथ-साथ ये रडार से आसानी से बच सकते हैं. बी-2 दुनिया में किसी भी टारगेट तक पहुंच सकता है और बेस पर वापस आ सकता है. इसमें हवा में ही फिर से ईंधन भरा जा सकता है.

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कोल्ड वॉर के वक्त के इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल पहले भी हूतियों को निशाना बनाने के लिए किया जा चुका है. बी-2 को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसमें पायलटों के लिए खाना रखने और गर्म करने के साथ-साथ टॉयलेट की भी सुविधा है. अब तक युद्ध में कोई भी बी-2 विमान तबाह नहीं हुआ है.

डिएगो गार्सिया में क्यों हुई तैनाती?

यह कदम अचानक उठाया गया नहीं है. इसे ट्रंप की ओर से आक्रामक हमले के रूप में देखा जा रहा है. लाल सागर पार करने वाले अमेरिकी जहाजों पर हमला करने और ईरान के बढ़ते परमाणु कार्यक्रम को लेकर उस पर दबाव बनाने के लिए ईरान समर्थित हूतियों को टारगेट किया जा रहा है. पिछले कई हफ़्ते से अमेरिका, यमन में हूतियों पर बमबारी कर रहा है. सबसे बड़ा हमला मार्च में हुआ था जब हवाई हमलों में 53 विद्रोही मारे गए थे और लगभग 100 अन्य घायल हो गए थे.

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ट्रंप ने तब तक हूती विद्रोहियों पर हमले जारी रखने की कसम खाई है जब तक कि संगठन लाल सागर में कमर्शियल जहाजों पर हमले बंद नहीं कर देता, जो एक अहम ट्रेड रूट है. गाजा के लिए एकजुटता के प्रतीक के रूप में 2023 में इजरायल और हमास के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से हूतियों ने इस क्षेत्र में जहाजों को निशाना बनाया है.

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'गोलीबारी बंद करो तो हमले रोक देंगे'

राष्ट्रपति ट्रंप ने इस सप्ताह के शुरू में कहा था, 'अमेरिकी जहाजों पर गोलीबारी बंद करो और हम तुम पर गोलीबारी बंद कर देंगे... हमने तो अभी शुरुआत ही की है, हूतियों और ईरान में उनके समर्थकों को असली जख्म देना अभी बाकी है.' हालांकि, रक्षा विश्लेषकों ने बताया है कि डिएगो गार्सिया में छह बी-2 बमवर्षक विमानों की तैनाती सिर्फ हूतियों को निशाना बनाने के लिए नहीं, बल्कि इसके पीछे एक व्यापक रणनीति होगी.

ईरान को संदेश देने की कोशिश

भारी तैनाती ईरान को यह मैसेज देने का भी एक कदम है कि वह ट्रंप प्रशासन के साथ अपने परमाणु समझौते पर फिर से बातचीत करे. पिछले महीने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई को लिखी चिट्ठी में ट्रंप ने नए परमाणु समझौते पर पहुंचने के लिए दो महीने की डेडलाइन या फिर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी.

ये भी पढ़ें: ईरान की इजरायल और अमेरिका को चेतावनी, कहा- कोई कदम उठाया तो मिलेगा करारा जवाब

ट्रंप ने पिछले महीने फॉक्स न्यूज से कहा था कि ईरान से निपटने के दो तरीके हैं, सैन्य तरीके से या फिर समझौता. उन्होंने कहा कि मैं समझौता करना पसंद करूंगा, क्योंकि मैं ईरान को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता. हालांकि, ईरान ने किसी भी तरह की सीधी बातचीत से इनकार किया है. ईरान ने सैन्य परमाणु कार्यक्रम से इनकार किया है, लेकिन कई रिपोर्टों और विश्लेषणों से पता चला है कि मीडिल ईस्ट का यह देश इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है. 

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बता दें कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2015 में अमेरिका, ईरान और पांच अन्य वैश्विक शक्तियों के बीच हुए परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था. अगर ईरान बातचीत की मेज पर नहीं आता है, तो उसकी परमाणु और हथियार भंडारण सुविधाएं अमेरिका का संभावित टारगेट हो सकती हैं. 

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