बांग्लादेश में महिला अफसरों को 'सर' कहने की बाध्यता खत्म, शेख हसीना सरकार के नियम को हटाया गया

यह नियम पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासनकाल के दौरान लागू किया गया था, जिसके तहत उन्हें और अन्य महिला अधिकारियों को भी ‘सर’ कहकर संबोधित किया जाता था. गुरुवार को हुई एडवाइजरी काउंसिल की बैठक में यह फैसला लिया गया.

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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना. (फाइल फोटो) बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना. (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 5:26 PM IST

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए महिला सरकारी अधिकारियों को 'सर' कहने के पुराने नियम को आधिकारिक रूप से रद्द कर दिया है. यह नियम पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासनकाल के दौरान लागू किया गया था, जिसके तहत उन्हें और अन्य महिला अधिकारियों को भी ‘सर’ कहकर संबोधित किया जाता था.

गुरुवार को हुई एडवाइजरी काउंसिल की बैठक में यह फैसला लिया गया. बैठक के बाद जारी आधिकारिक नोटिस में इस नियम की आलोचना करते हुए कहा गया कि, “शेख हसीना के लगभग 16 वर्षों के शासनकाल के दौरान एक निर्देश जारी किया गया था कि उन्हें ‘सर’ कहकर संबोधित किया जाए. बाद में यह परंपरा अन्य शीर्ष महिला अधिकारियों पर भी लागू हो गई. आज भी कई बार महिला अधिकारियों को 'सर' कहकर बुलाया जाता है, जो सामाजिक और संस्थागत रूप से अनुचित और अवांछनीय है.”

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सरकार ने सही और सम्मानजनक भाषा के उपयोग को सुनिश्चित करने की बात कही है, जो सामाजिक मूल्यों और मानदंडों के अनुरूप हो.

नए बदलाव और समिति की जिम्मेदारी

इस निर्णय के तहत ‘सर’ कहने की बाध्यता को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है और इसके साथ ही सरकार ने अन्य पुराने और जटिल प्रोटोकॉल नियमों की समीक्षा करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है. इसके लिए एक नई समिति बनाई गई है, जिसकी अध्यक्षता सैयदा रिजवाना हसन कर रही हैं. यह समिति ऊर्जा, सड़क, रेलवे, पर्यावरण और जल संसाधन जैसे विभागों पर सलाह देती है. समिति को एक महीने के भीतर अपनी सिफारिशें सौंपने को कहा गया है.

लिंग के अनुसार संबोधन को लेकर पहले से थी आलोचना

महिलाओं को ‘सर’ कहकर बुलाने की परंपरा को लेकर सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में काफी असहजता महसूस की जाती थी. कई अधिकारियों, कर्मचारियों और पत्रकारों ने बताया कि उन्हें सही लिंग संबोधन के इस्तेमाल पर दबाव झेलना पड़ता था या कभी-कभी असभ्यता का सामना भी करना पड़ता था.

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