लोकसभा चुनाव से पहले यूपी की सियासत मंदिर-मस्जिद और बौद्ध मठ पर आ गई है. यूपी सरकार के मंत्री रघुराज सिंह के बयान से शुरू हुए मंदिर-मस्जिद और बौद्ध मठ के विवाद में अब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी एंट्री हो गई है. योगी आदित्यनाथ की एंट्री ने इस सियासी लड़ाई में बहस की धारा ही बदल दी है.
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योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी को लेकर कहा है कि अगर मैं उसे मस्जिद कहता हूं तो विवाद होगा. भगवान ने जिसको दृष्टि दी है, वो देखे ना. त्रिशूल वहां क्या कर रहा है? हमने तो नहीं रखे. वहां ज्योतिर्लिंग है, देवप्रतिमाएं हैं. दीवारें चिल्ला-चिल्लाकर क्या कह रही हैं? मुझे लगता है कि मुस्लिम पक्ष की ओर से प्रस्ताव आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है और उसका समाधान हो.
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सीएम योगी का ये बयान ऐसे समय आया है जब ज्ञानवापी प्रकरण के बाद देश में मंदिर-मस्जिद-बौद्ध मठ को लेकर बहस छिड़ी हुई है. संघ प्रमुख मोहन भागवत इस मुद्दे से किनारा कर चुके हैं और बीजेपी के बड़े नेता भी खुलकर कुछ भी बोलने से बचते रहे हैं. ऐसे में, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के इस बयान के सियासी मायने क्या हैं?
योगी ने सेट कर दिया 2024 का एजेंडा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी को लेकर बयान से 2024 की चुनावी जंग के लिए एजेंडा सेट कर दिया है. साल 2024 के जनवरी महीने में ही राम मंदिर का भी उद्घाटन होना है. राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अभी कोई तारीख सामने नहीं आई है लेकिन मंदिर ट्र्स्ट की ओर से ये कहा गया है कि 15 से 25 जनवरी के बीच शुभ मुहूर्त में रामलला को मंदिर में विराजमान कर दिया जाएगा.
राम मंदिर के उद्घाटन के समय और लोकसभा चुनाव पर प्रभाव को लेकर चर्चा हो ही रही थी कि अब योगी ने ज्ञानवापी का दांव चल दिया है. सीएम योगी के ताजा बयान से साफ हो गया है कि राम मंदिर निर्माण को अपनी उपलब्धि बताने के साथ ही बीजेपी अब वाराणसी के ज्ञानवापी मुद्दे को भी धार देने की कोशिश करेगी. बीजेपी की रणनीति 2024 के चुनाव में विपक्षी पार्टियों को हिंदुत्व की पिच पर लाने की होगी.
पीडीए की काट के लिए मास्टर स्ट्रोक
बीजेपी ने 2024 के चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. बीजेपी को 2014 में यूपी की 71 और 2019 में 62 सीटों पर जीत मिली थी. विपक्षी एकता की कवायद के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने बीजेपी को हराने के लिए पीडीए का नारा दिया था. पीडीए यानी पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक. अखिलेश ने कहा था कि एनडीए को पीडीए ही हरा सकता है.
बीजेपी भी समझ रही है कि यूपी का जटिल जातीय गणित उसके लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. इसीलिए पार्टी ने राजभर समाज को साधने के लिए ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को फिर से साथ लिया. कुर्मी और निषाद समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली अपना दल (एस) और डॉक्टर संजय निषाद की निषाद समाज पार्टी पहले से ही एनडीए में थीं. अब योगी ने पीडीए की काट के लिए जातीय बैरियर तोड़ यूनिफाइड हिंदू वोटबैंक के लिए ज्ञानवापी का दांव चल दिया है.
विधानसभा चुनाव में सफल रहा था प्रयोग
यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया था. बीजेपी का ये प्रयोग तब सफल रहा था और पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के साथ लगातार दूसरी बार सरकार बना ली थी. बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने तब कहा था कि अयोध्या और काशी-मथुरा हमारे लिए चुनाव नहीं, आस्था के विषय हैं. हम इन्हें संवार रहे हैं, इसलिए तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले विपक्षी दलों को पीड़ा हो रही है.
कैसे शुरू हुआ मंदिर-मस्जिद-बौद्ध मठ विवाद
योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री रघुराज सिंह ने दावा किया था कि मुगलों ने हमला कर करीब चार लाख मंदिरों को मस्जिद बना दिया था. इन्हें हिंदू समाज को वापस लौटाया जाना चाहिए. देश में शांति-सद्भाव कायम रखना केवल हिंदुओं का ही काम नहीं है. रघुराज के बयान पर पलटवार करते हुए विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि वे हर मस्जिद में मंदिर खोजेंगे तो लोग हर मंदिर में बौद्ध मठ खोजने लगेंगे. उन्होंने बदरीनाथ मंदिर के भी बौद्ध मठ होने का दावा किया था.
क्या ज्ञानवापी से पार लगेगी बीजेपी की चुनावी नैया
पिछले कुछ समय से ज्ञानवापी विवाद चर्चा में है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इससे किनारा करते हुए साफ कहा था कि हम राम जन्मभूमि के आंदोलन में शामिल हुए और उसे पूरा भी किया. हमें अब आंदोलन नहीं करना. हमें रोज एक मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? झगड़ा क्यों बढ़ाना? इसके बाद ज्ञानवापी को लेकर कुछ भी बोलने से बीजेपी के नेता भी बचते रहे हैं.
इस पूरे विवाद में अब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की एंट्री हो गई है. सीएम योगी ने त्रिशूल, दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र और ऐतिहासिक गलती की बात कर एक तरह से ये दावा कर दिया है कि ज्ञानवापी मंदिर था.
क्या होते हैं बौद्ध मठ
बौद्ध मठ वह स्थल होता है जहां धर्मगुरु अपने शिष्यों को शिक्षा देते हैं. बौद्ध धर्मगुरु धार्मिक उपदेश भी बौद्ध मठ में ही देते हैं. सबसे पुरानी मठ संस्कृति वाले धर्मों में से एक बौद्ध धर्म में मठ के संचालन की जिम्मेदारी एक धर्मगुरु की होती है. बौद्ध धर्म में मठ के साथ ही विहार भी होते हैं. बौद्ध विहार यानी वो जगह जहां बौद्ध भिक्षुओं के रहने की व्यवस्था रहती है.
बिकेश तिवारी