उत्तर प्रदेश की सियासत में राजनीतिक समीकरण साधने के लिए सपा प्रमुख अखलेश यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया है. सपा ने पिछली बार से बड़ी टीम बनाई है, जिसमें जातीय बैलेंस बनाने के साथ उम्र व क्षेत्रीय संतुलन को भी बनाने की कोशिश की गई है. सूबे के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग राजनीतिक समीकरण और जातीय कंबिनेशन बनाए गए हैं.
पूर्वांचल के लिए समाजवाजी पार्टी ने दलित-ओबीसी वोटों पर फोकस किया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम-गुर्जर कॉन्बिनेशन बनाने की कोशिश की है. ऐसे ही यादव लैंड वाले इलाके के लिए यादव-अतिपिछड़ी जातियों का फॉर्मूला बनाया है. सेंट्रल यूपी के लिए कुर्मी-पासी-ब्राह्मण समाज को जोड़ने की रणनीति बनाई गई है.
पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-गुर्जर कॉन्बिनेशन
2024 के लोकसभा चुनाव और यूपी निकाय चुनाव से पहले सपा ने जाट, गुर्जर और मुस्लिम को संगठन में अहमियत देकर पश्चिमी यूपी की सियासत में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने की कोशिश की है. सपा की सहयोगी रालोद प्रमुख चौधरी जयंत सिंह भी इसी फॉर्मूले पर लगे हैं. खातौली उपचुनाव में रालोद को इस समीकरण से जीत मिली है, जिसके उसे और भी मजबूत बनाने में जुट गए हैं. इसलिए अखिलेश यादव ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 9 मुसलमानों को जगह दी है, जिसमें छह पश्चिमी यूपी से हैं. इसके अलावा दो जाट, एक गुर्जर, एक ठाकुर नेता को भी जगह दी है.
अखिलेश यादव ने रामपुर से आजम खान को राष्ट्रीय महासचिव, मुरादाबाद के कांठ विधायक कमाल अख्तर, अमरोहा से जावेद आब्दी को राष्ट्रीय सचिव, संभल से जावेद अली (राज्यसभा सांसद) को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी है. मेरठ से आकिल मुर्तजा को राष्ट्रीय सचिव बनाया है तो बदायू से मो. सलीम शेरवानी को महासचिव नियुक्त किया है. इस तरह पश्चिमी यूपी में बसपा के मुस्लिम कार्ड को काउंटर करने की रणनीति सपा ने बनाई है, क्योंकि मायावती दलित-मुस्लिम फॉर्मूले के जरिए मुस्लिमों को साधना चाहती है. ऐसे में अखिलेश ने मुसलमानों का खास तवज्जो देकर बड़ा दांव चला है.
नहीं, जाट समुदाय से आने वाले मुलायम परिवार के खास और अखिलेश यादव के साथ साए की तरह रहने वाले गाजियाबाद के राजेंद्र चौधरी को सपा का राष्ट्रीय सचिव बनाया है. पश्चिम में जाट चेहरे पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महासचिव बनाया हैं. मथुरा से संजय लाठर को सदस्य बनाया है, जो जाट समाज से आते हैं. बिजनौर से रमेश चंद तोमर को सदस्य बनाया है, जो ठाकुर समुदाय से आते हैं. मेरठ से नीरज पाल चौधरी को राष्ट्रीय महासचिव बनाया है. नीरज पाल गुर्जर हैं और उनके पिता हरीश पाल सांसद रह चुके हैं.
वहीं, रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने गुर्जर नेता और विधायक चंदन चौहान को पार्टी के युवा इकाई का अध्यक्ष बनाया है. इस तरह से सपा और रालोद की नजर जाट-मुस्लिम के साथ गुर्जरों को भी जोड़ने की है. आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर को साथ लेकर दलितों को भी साथ लाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं. पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-गुर्जर फॉर्मूले से बीजेपी को चुनौती देने की रणनीति सपा गठबंधन ने बना रखी है, लेकिन उसे जमीन पर उतारने की चुनौती जरूर है.
पूर्वांचल में दलित-ओबीसी पर फोकस
सपा ने पूर्वांचल के सियासी रण जीतने के लिए अलग फॉर्मूला तैयार किया है, जिसमें उन्होंने दलित-ओबीसी और अतिपिछड़े वर्ग को साधने की कवायद की है. आजमगढ़ के बलराम यादव, कुर्मी समुदाय से आने वाले लालजी वर्मा, राजभर समाज से रामअचल राजभर, पासी समुदाय से आने वाले अवधेश प्रसाद को महासचिव बनाया गया है. रामआसरे विश्वकर्मा, दयाराम पाल, पीएन चौहान, त्रिभुवन दत्त और राममूर्ति वर्मा को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है. संजय विद्यार्थी, रामगोविंद चौधरी, अबू आसिम आजमी, अल्ताफ अंसारी को सदस्य बनाया गया है. भूमिहार समुदाय से आने वाले राजीव राय को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है.
सपा संगठन की फेहरिश्त से साफ जाहिर होता है कि सपा की रणनीति कुर्मी, राजभर, यादव वोटों के साथ-साथ पाल और विश्वकर्मा समुदाय सहित तमाम अतिपिछड़ी जातियों को साधने की कवायद की है. ओबीसी के बड़ा चेहरा स्वामी प्रसाद मौर्य भी कुशीनगर से चुनाव लड़ते हैं, जो पूर्वांचल में आता है. पूर्वांचल में मायावती और बीजेपी भी इसी जातीय फॉर्मूले पर काम कर रही है, जिसके जवाब में सपा ने भी दांव चला है. पूर्वांचल की सियासत अब भी जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ऐसे में सपा ने सियासी मिजाज से समझते हुए राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है.
सेंट्रल यूपी में दलित-कुर्मी-ब्राह्मण कॉन्बिनेशन
सपा ने सेंट्रल यूपी के लिए दलित-ओबीसी-कुर्मी के साथ ब्राह्मण कंबिनेशन बनाने की कवायद कर रही है, जिसकी झलकी सपा संगठन में दिख रही है. सपा ने कुर्मी समाज से आने वाले रवि प्रकाश वर्मा, इंद्रजीत सरोज को महासचिव तो ऊषा वर्मा को सदस्य जबकि अभिषेक मिश्रा, तारकेश्वर मिश्रा को सचिव बनाया है. पवन पांडेय, ओपीसी यादव और मौलाना इकबाल कादरी को सदस्य बनाया है. सेंट्रल यूपी में दलित और ब्राह्मण के साथ कुर्मी मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है, जिसके चलते ही सपा ने संगठन में इन समुदाय को खास तवज्जो दी है. इंद्रजीत सरोज का पासी समुदाय के बीच मजबूत पैठ ही तो कुर्मियों के बीच रवि प्रकाश वर्मा का जनाधार है.
कानपुर-बुंदेलखंड में यादव-अति पिछड़ों पर दांव
कानपुर-बुंदेलखंड से लेकर यादव लैंड तक साधने के लिए अखिलेश यादव ने यादव वोटों के साथ-साथ अतिपछड़ी जातियों को साधने की रणनीति बनाई है. इसी मद्देनजर सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में चाचा शिवपाल यादव सहित परिवार के छह सदस्यों की जगह मिली है तो झांसी से चंद्रपाल यादव को रखा गया है. इसके अलावा लोधी समुदाय से आने वाले डॉ. मुकेश वर्मा, मौर्य समाज के लीलावती कुशवाहा, राजेश कुशवाहा को सदस्य बनाया गया है. कुर्मी समुदाय से अखिलेश कटियार, रामबख्स वर्मा को सचिव बनाया गया है तो मल्लाह समुदाय से आने वाले विशंभर प्रसाद निषाद को राष्ट्रीय महासचिव बनाया है.
सपा के राजाराम पाल सचिव बनाए गए हैं. इस तरह से यादव-कुर्मी-कुशवाहा-पाल-निषाद समुदाय के लोगों को संगठन में जगह देकर कानपुर से लेकर बुंदलेखंड तक को साधने की कवायद की है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड और यादव लैंड में सपा को इसीलिए हार का मुंह देखना पड़ा है, क्योंकि यादव समुदाय के अलावा कोई दूसरी ओबीसी जातीयों के चेहरे नहीं थे. इस तरह से सपा ने यादव समुदाय के खास तवज्जो देते हुए अतिपिछड़ी जातियों को जगह देकर 2024 के चुनाव में अपने दुर्ग को बचाए रखने की कवायद की है.
कुबूल अहमद