घोसी उपचुनावः दौड़ेगी साइकिल या खिलेगा कमल? नामांकन से प्रचार थमने तक कैसे बदला सीन

घोसी विधानसभा सीट के उपचुनाव में नामांकन से चुनाव प्रचार थमने तक, परिस्थितियां बहुत बदल गई हैं. शुरुआत में मुकाबले से बाहर नजर आ रही बीजेपी ने माइक्रो मैनेजमेंट के दम पर कमबैक किया और अब स्थिति ये है कि मुकाबला कांटे का हो गया है. घोसी में चलेगा एक पर एक का फॉर्मूला या खिलेगा कमल?

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अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो) अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

कुमार अभिषेक

  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:58 PM IST

पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 5 सितंबर को वोट डाले जाएंगे. 2024 के लोकसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माने जा रहे इस उपचुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने दारा सिंह चौहान और विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) ने पुराने समाजवादी सुधाकर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. दो दलों के बीच का सीधा मुकाबला अब दो गठबंधनों की लड़ाई बन चुका है.

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दो दलों के पीछे कई दलों की साख दांव पर है. गठबंधन के गणित का टेस्ट है तो जातिगत समीकरणों का भी. किसी के सियासी भविष्य का निर्धारण होना है तो किसी के सरकार में कद का. यही वजह है कि सपा और बीजेपी के साथ ही दूसरे दलों, नेताओं ने भी इसे साख का सवाल बना लिया है. घोसी सीट के लिए 5 सितंबर को वोट डाले जाने हैं. चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है लेकिन बीजेपी और सपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है.

मतदान से पहले अंतिम घंटों में बीजेपी और सपा, दारा सिंह चौहान और सुधाकर सिंह मतदान को लेकर अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. इन सबके बीच सुधाकर सिंह के बेटे का एक कथित ऑडियो भी वायरल हो रहा है. इसमें एक पुलिस अधिकारी को जूते मारने की धमकी सुनाई दे रही है. आवाज सुधाकर सिंह के बेटे का होने के दावे किए जा रहे हैं. सुधाकर सिंह और उनके बेटे के खिलाफ इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है.

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सपा ने बीजेपी पर सरकारी मशनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया है. बीजेपी ने सपा नेताओं पर पैसे बांटने का आरोप लगाया है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने इसे लेकर निर्वाचन आयोग से शिकायत भी की है. फिलहाल, घोसी में सूरतेहाल ये है कि फाइट टाइट है और सियासी पारा चढ़ा हुआ. दोनों ही दलों ने इस उपचुनाव के दौरान अपने बड़े चेहरों को मैदान में उतारा. द्वारे-द्वारे, गांव-गांव घूमकर अपनी उपलब्धियां, दूसरे की खामियां गिनाईं. अब वो घड़ी आ गई है जब मतदाता मतदान केंद्र पर पहुंचकर ईवीएम में अपना फैसला कैद करेंगे.

बीजेपी-सपा में कांटे की टक्कर

घोसी सीट पर बीजेपी और सपा के बीच कांटे की टक्कर है. बीजेपी उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को प्रचार के दौरान कई जगह विरोध का भी सामना करना पड़ा. सपा की ओर से शिवपाल सिंह यादव, अखिलेश यादव ने भी चुनाव प्रचार किया तो बीजेपी ने भी हालात भांपते हुए तेजी से एक्शन लिए. पार्टी ने नाराज नेताओं-कार्यकर्ताओं को मनाया और फिर छोटे-छोटे पॉकेट्स को टारगेट कर चुनावी रणनीति पर अमल शुरू किया. बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं के साथ ही गठबंधन सहयोगियों को भी चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतार दिया.

बड़े नेताओं ने डाला डेरा

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से लेकर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक तक, बड़े नेताओं ने घोसी में डेरा डाल लिया था. जातिगत-सामाजिक समीकरणों का ध्यान रखते हुए रणनीति का ताना-बाना बुना और उसे अमल में लाने के लिए एक-एक बड़े या प्रभावी चेहरे को आगे कर दिया. ब्राह्मण और अगड़ी जातियों के साथ ही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के परंपरागत दलित मतदाताओं के बीच डोर-टू-डोर जनसंपर्क के लिए ब्रजेश पाठक को आगे किया गया तो भूमिहार मतदाताओं को साधने की जिम्मेदारी योगी सरकार में मंत्री एके शर्मा को सौंपी गई. राजभर वोट के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर को आगे किया गया तो डिप्टी सीएम केशव मौर्य भी एक्टिव नजर आए.

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दलित वोट पर नजरें

बसपा ने इस उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारा है ऐसे में बीजेपी और सपा, दोनों ही दलों की नजरें दलित मतदाताओं पर हैं. मायावती ने न तो किसी के समर्थन का ऐलान किया और ना ही विरोध का ही. सूत्रों की मानें तो बसपा नेताओं ने घोसी के अपने कैडर को ये निर्देश दिया है कि या तो वे वोट देने ही न जाएं और अगर जाएं भी तो ईवीएम में नोटा दबाएं.

क्या है घोसी का जातीय गणित

घोसी विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक दलित-मुस्लिम मतदाता हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 95 हजार मुस्लिम और 90 हजार दलित मतदाताओं की तादाद बताई जाती है. इसके बाद राजभर और चौहान 50-50 हजार, बनिया 30 हजार, निषाद 19 हजार, राजपूत और कोईरी 15-15 हजार, भूमिहार 14 हजार, ब्राह्मण सात हजार और कुम्हार मतदाताओं की तादाद पांच हजार के करीब बताई जा रही है.

घोसी उपचुनाव में बाजी किसके हाथ लगेगी? ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे लेकिन घोसी की हवा बता रही है कि मुकाबला कांटे का है. विपक्ष का एक पर एक फॉर्मूला चलता है या माइक्रो मैनेजमेंट से कमल खिलता है? सभी की नजरें अब इस पर टिकी हैं.

 

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