मुलायम कुनबे में लंबे समय से चली आ रही सियासी वर्चस्व की जंग अब पूरी तरह से थम चुकी है. समाजवादी पार्टी की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिवपाल यादव को जगह मिल गई है. भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को सपा राष्ट्रीय महासचिव बनाकर नई जिम्मेदारी दे दी है. इस तरह से छह साल के बाद शिवपाल की सपा संगठन में वापसी हुई है, लेकिन उनके किसी भी करीबी नेताओं को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली. सपा में अपनी पार्टी का विलय करने वाले शिवपाल को अखिलेश टीम में स्थान मिलने से उनका सियासी कद बढ़ा या फिर घटा है समझिए.
बता दें कि मैनपुरी उपचुनाव के बाद चाचा-भतीजे सारे आपसी गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ आए तो शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय कर मरते दम तक पार्टी में रहने का ऐलान भी कर दिया था. ऐसे में अब अखिलेश ने शिवपाल यादव को महासचिव बनाकर सम्मान जरूर दिया, लेकिन चाचा का अपना पुराना सियासी रुतबा अब नहीं रहा.
पहले नंबर दो की भूमिका में थे मुलायम
मुलायम सिंह यादव के दौर में समाजवादी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में रहने वाले शिवपाल यादव को अखिलेश की टीम में पांचवें नंबर पर रखा गया है. हालांकि, सपा के राष्ट्रीय महासचिव के फेहरिश्त में आजम खान के बाद ही शिवपाल यादव का नाम है. इससे एक बात तो साफ है कि उनके सियासी कद के लिहाज से पद दिया गया, लेकिन उनसे कहीं बड़ा पद सपा में रामगोपाल यादव के पास है. रामगोपाल सपा के प्रमुख महासचिव है, जो सपा की नीति निर्धारण तय करेंगे और शिवपाल उसे अमलीजामा पहनाने का काम करेंगे.
समाजवादी पार्टी में कुल 15 राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए हैं, जिसमें से शिवपाल यादव भी एक हैं. प्रो. रामगोपाल यादव की हैसियत पार्टी में पहले जैसी है, लेकिन छह साल बाद सपा संगठन में मिली जगह में शिवपाल यादव राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका में होंगे. माना जा रहा है कि भतीजे अखिलेश यादव की रणनीति चाचा शिवपाल यादव को यूपी की सियासत से दूर रखने की है.
मुलायम के हनुमान कहलाते थे शिवपाल
बता दें कि मुलायम सिंह यादव के दौर में सपा में शिवपाल यादव की तूती बोलती थी. शिवपाल को मुलायम का हनुमान कहा जाता था, लेकिन साल 2012 में मुलायम सिंह ने जब अपना उत्तराधिकारी अखिलेश को घोषित कर दिया तो शिवपाल यादव को गहरा झटका लगा था. शिवपाल ने उस समय बर्दाश्त कर लिया था, लेकिन अंदर-अंदर चिंगरी सुलग रही थी. 2017 के आते आते चाचा-भतीजे के बीच तलवारें खिंच गईं. शिवपाल यादव ने अपना रास्ता बदला लिया और 2018 में सपा से अलग होकर अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली.
शिवपाल यादव का साथ छोड़ने के बाद सपा के तमाम जमीनी नेताओं ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया था. मुलायम सिंह यादव की तमाम कोशिशों के बावजूद चाचा-भतीजा का मिलन संभव नहीं हो सका. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव ने अखिलेश और शिवपाल को एक कर दिया. शिवपाल यादव सपा में वापसी कर गए हैं और अखिलेश यादव के साथ उनके रिश्ते भी सुधर गए हैं.
शिवपाल यादव को अखिलेश यादव में 'नेताजी' का अक्स नजर आया, तभी तो उन्होंने कार्यकर्ताओं से अखिलेश यादव को 'छोटे नेताजी' कहने की अपील की और अब अखिलेश ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया है. मुलायम के दौर में तो शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश की सियासत करते रहे. सपा संगठन में लंबे समय तक प्रमुख महासचिव और फिर प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली. सपा का सियासी आधार भी यूपी में ही है, जिसके चलते खुद को यूपी तक ही सीमित कर रखा.
अब राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ेगी शिवपाल की भूमिका
शिवपाल ने कभी भी दिल्ली की सियासत नहीं की, क्योंकि यह कार्य रामगोपाल यादव किया करते थे. अखिलेश टीम में भी यह जिम्मा रामगोपाल यादव के कंधों पर है. शिवपाल को राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद अब उनकी भूमिका प्रदेश स्तर की राजनीति में कम हो जाएगी. राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद उनकी राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका बढ़ेगी. वह दिल्ली की राजनीति करते हुए नजर आएंगे, लेकिन केंद्रीय राजनीति में रामगोपाल यादव काबिज हैं. ऐसे में शिवपाल यादव सीमित दायरे में ही रहेंगे.
शिवपाल यादव सपा में वापसी कर गए हैं और अखिलेश यादव के साथ भी उनके रिश्ते बेहतर हुए हैं. लेकिन शिवपाल के सपा में आने से अखिलेश को राजनीतिक फायदा क्या मिलेगा वो इस बात पर निर्भर करेगा कि शिवपाल यादव में फिलहाल कितनी ताकत बची है. शिवपाल का सियासी जनाधार यादव बेल्ट में ठीक-ठाक रहा है. इसी का नतीजा है कि शिवपाल के साथ आने का जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में बड़ा असर हुआ और लोगों ने डिंपल यादव के जमकर वोट दिए.
सपा को उत्तर प्रदेश में सियासी तौर पर मजबूत करने में जितना हाथ मुलायम सिंह यादव का था, उतना ही पसीना शिवपाल सिंह ने भी बहाया था. सपा में वह जमीनी नेता के तौर पर पहचान रखते थे और उनकी हर समाज के लोगों के बीच गहरी पैठ थी. संगठन कैसे चलाया जाता है और चुनाव कैसे जीता जाता है, इस मामले में शिवपाल को महारत हासिल थी. उनके बारे में यह कहा जाता रहा है कि वह पार्टी के बूथ लेवल तक के कार्यकर्ताओं से संवाद रखते हैं. हालांकि, यह बात उस दौर की जब मुलायम सिंह यादव पार्टी के सर्वे-सर्वा हुआ करते थे और शिवपाल यादव के पास शक्तियां निहित थीं.
अखिलेश यादव के हाथों में सपा की कमान है, क्या शिवपाल अब भी अपना पुराना रुतबा हासिल कर पाएंगे. अखिलेश क्या शिवपाल पर मुलायम सिंह जैसा भरोसा जता पाएंगे, क्योंकि 2016 में सियासी वर्चस्व की जंग में जो मनमुटाव आया है. उसने विश्वास की डोर को कमजोर किया है. ऐसे में अखिलेश यादव दोबारा से शिवपाल को इतनी ताकत नहीं देंगे कि जिससे दोबारा पार्टी के अंदर एक नया 'पॉवर सेंटर' बने. ऐसे में शिवपाल को राष्ट्रीय महासचिव जरूर बनाया है.
अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा के साथ ही यह संकेत दे दिए हैं कि शिवपाल यादव को अगले लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार भी बनाया जा सकता है. वहीं, अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव 2022 के समय से ही साफ कर दिया है कि लखनऊ और यूपी की राजनीति को वग खुद संभालेगे और दिल्ली की सियासत दोनों चाचाओं को दे दिया है. शिवपाल को सपा में भले ही सम्मान मिल गया हो, लेकिन उनके करीबी नेताओं को जगह नहीं मिली.
वहीं, सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुलायम परिवार के तेज प्रताप यादव, अक्षय यादव और धर्मेंद्र यादव को जगह मिली है, लेकिन शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव को शामिल नहीं किया गया है. इतना ही नहीं सपा के प्रवक्ताओं की भी कुछ दिनों पहले लिस्ट आई थी, जिनमें शिवपाल के करीबी एक ही नेता को जगह मिली थी. शिवपाल के साथ राम नरेश यादव, वीरपाल यादव, अशोक यादव, सुंदरलाल लोधी, संगीता यादव, पीवी वर्मा, ललन राय, जयसिंह यादव, राम सिंह यादव और हीरालाल यादव और फरहत मियां जैसे नेताओं ने सपा में वापसी की है, लेकिन किसी भी नेता को जगह नहीं मिली. ऐसे में शिवपाल यादव को सम्मान भले ही मिला हो, लेकिन राजनीतिक रुतबा नहीं हासिल हो सका. यही वजह है कि अपने करीबी नेताओं को जगह नही दिला सके.
शिवपाल के भरोसे इन नेताओं ने सपा छोड़ी थी, वरना अखिलेश यादव से उनका कोई निजी विरोध नहीं था. 2022 के चुनाव में शिवपाल यादव सपा से अकेले अपने टिकट पर राजी हो गए और अपने समर्थकों को मंझधार में छोड़ दिया. शिवपाल की तो सपा में वापसी हो चुकी है और उन्हें राष्ट्रीय महासचिव भी बना दिया हया है, लेकिन अभी तक इन नेताओं के सियासी भविष्य का कोई फैसला नहीं हुआ है. शिवपाल क्या इन नेताओं को सपा में एग्जेस्ट करा पाएगें, क्योंकि अखिलेश लॉबी के नेता अब काफी हावी हो चुके हैं और वह उन्हें स्पेस नहीं दे रहे हैं.
कुबूल अहमद