50 लाख रुपये हर साल टैक्स देने वाले NRI अरविंद जैन ने मोदी सरकार और गहलोत सरकार से जवाब मांगा है कि उनके पिता गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. उनका इलाज बाड़मेर मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में हो रहा था. जब वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी तो डॉक्टर ने मना कर दिया कि यह फैसिलिटी यहां पर नहीं है.
उसके बाद वे अपने पिता को लेकर निजी हॉस्पिटल ले जा रहे थे और रास्ते में गेट पर ही मौत हो गई. ऐसे में इनका बड़ा सवाल है कि जब ये सरकार को साल के 50 लाख रुपये का टैक्स देते हैं, उसके बावजूद इन्हें वेंटिलेटर की भी हॉस्पिटल में फैसिलिटी न मिले तो टैक्स देने का क्या मतलब है? दोनों सरकारों से इस मामले पर तुरंत कार्यवाही करने की मांग की है.
राजस्थान में तेल और खनिज के अथाह भंडार मिलने के बाद हर नेता और मंत्री बाड़मेर को दुबई बनाने का सपना दिखा रहे है लेकिन वो सपना ही बनकर रहता दिख रहा है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ज़िला मुख्यालय पर मेडिकल कॉलेज तो शुरू कर दिया लेकिन हॉस्पिटल में बेसिक सुविधा वेंटिलेटर की होनी चाहिए, वह भी मरीजों को नहीं मिल रही है.
हॉस्पिटल प्रशासन दावे तो बड़े-बड़े कर रहा है लेकिन एनआरआई के पिता को वेंटिलेटर की बेसिक सुविधा नहीं मिली जिससे उनको बहुत आघात लगा. उन्होंने कहा कि सालाना पचास लाख का टैक्स देने के बावजूद हमें सुविधा नहीं मिली. वेंटिलेटर लगाने के लिए सोशल साइट्स पर पीएम, सीएम, केन्द्र और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री को ट्वीट कर दिया.
राजस्थान में बाड़मेर के एनआरआई दो भाई अमेरिका में काम कर रहे हैं और उनका परिवार बाड़मेर में रहता है. उनके पिता को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी थी. उनका अहमदाबाद जॉन्डिस हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. डॉक्टरो ने अच्छा इलाज किया. तब उनके पिता ने अपने परिवार के पास जाने की इच्छा जताई तो ये लोग अहमदाबाद से बाड़मेर लेकर आए और दो दिन बाद उनकी तबियत थोड़ी खराब हुई.
अरविंद जैन ने आगे बात करते हुए कहा कि वहां से हम राजकीय हॉस्पिटल लेकर गए. वहां पर डॉक्टरों ने अच्छे से चेक किया लेकिन सांस में तकलीफ होने के कारण डॉक्टर ने कहा यहां वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है, आप को कहीं और लेकर जाना होगा. तब हमने पूछा कि यह तो मेडिकल कॉलेज है और वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है. तब मुझे बहुत आघात लगा. मैं सालाना पचास लाख रुपये का टैक्स भरता हूं लेकिन मुझे ही वेंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल रही है. मैं अपने पिता को लेकर निजी हॉस्पिटल लेकर जा ही रहा था कि पिता की मृत्यु हो गई. अगर वेंटिलेटर की सुविधा होती तो शायद मेरे पिताजी 6 महीने या साल-दो साल का समय हमारे साथ और निकाल पाते.
अरविंद जैन का कहना है कि मैं वेंटिलेटर के लिए कॉन्ट्रिब्यूशन करने को तैयार हूं. मैं यह चाहता हूं कि मेरे पिता को वेंटिलेटर सुविधा नहीं मिली लेकिन कोई और मरीज इस सुविधा के कारण अपनी जान न गवाएं. मैं देश के पीएम और प्रदेश के सीएम, स्वास्थ्य मंत्री सहित बाड़मेर जिले के MLA, MP और मंत्री से मांग करता हूं कि हॉस्पिटल में इस बेसिक सुविधा को जल्द से जल्द करवाएं. हम दो भाई हैं और भारत का यूएन में प्रतिनिधित्व करते हैं. साल में लाखों रुपये का टैक्स भरते हैं.
जब इस पूरे मामले की आजतक की टीम ने पड़ताल की तो वहां बैठे कंपाउंडर ने
बताया कि 2 साल से दो वेंटिलेटर रखे हुए हैं लेकिन कभी तक उसका उपयोग नहीं
हुआ है क्योंकि इसके लिए हमारे पास अलग से टीम नहीं है.
इस पर हॉस्पिटल प्रशासन का दावा है कि हॉस्पिटल में अलग वार्डो में करीब आठ
वेंटिलेटर हैं और जरूरत पड़ने पर चालू कर मरीज को रखा जाता है. राजकीय
हॉस्पिटल के पीएमओ बीएल मंसुरिया ने सफाई देते हुए कहा कि एनआरआई फैमिली
को वेंटिलेटर की आवश्यकता थी. उन्हें यह सुविधा क्यों नहीं मिली है, यह
मेरी जानकारी में नहीं है. बाकी आईसीयू में सुविधा थी. डॉक्टर ने मरीज को
वेंटिलेटर पर क्यों नहीं लिया, यह भी मेरी जानकारी में नहीं है. वहां के
कंपाउंडर ने ऐसा क्यों कहा, यह पता नहीं.
सबसे बड़ा सवाल है हॉस्पिटल प्रशासन का वह दावा कि यहां 8 वेंटिलेटर हैं जबकि हकीकत यह है कि वेंटिलेटर का उपयोग करने के लिए कभी भी हॉस्पिटल प्रशासन ने सोचा ही नहीं क्योंकि वह मरीज को यह कहकर टाल देते थे कि यहां पर वेंटिलेटर फैसिलिटी नहीं है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर आठ वेंटिलेटर होने के बावजूद भी आईसीयू वार्ड में वेंटिलेटर का 2 साल से उपयोग क्यों नहीं हुआ? जब इस तरह से मरीजों की मौत महज वेंटिलेटर का इस्तेमाल न होने के कारण हो जाए तो यह सोचने वाली बात है.