पुणे का अनोखा त्रिशुंड गणपति मंदिर, जहां भगवान गणेश मोर पर विराजते हैं

गणेश चतुर्थी पर सिर्फ लालबागचा राजा ही नहीं, पुणे का त्रिशुंड गणपति मंदिर भी देखने लायक है. अनोखी मूर्ति, 18वीं सदी की वास्तुकला और ऐतिहासिक झलक इसे टूरिस्ट्स के लिए छुपा खजाना बनाते हैं.

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16 साल में बना था त्रिशुंड गणपति मंदिर (Photo- x.com/@samraggi_debroy) 16 साल में बना था त्रिशुंड गणपति मंदिर (Photo- x.com/@samraggi_debroy)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST

आज यानी 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी है. अगर आप घूमने-फिरने के शौकीन हैं, तो पुणे का सोमवार पेठ स्थित त्रिशुंड गणपति मंदिर आपके लिए खास जगह है. ज्यादातर लोग गणेश चतुर्थी पर मुंबई के लालबागचा राजा या पुणे के दगडूशेठ हलवाई गणपति को ही याद करते हैं, लेकिन यह मंदिर कुछ अलग और अनोखा अनुभव देता है.

त्रिशुंड गणपति मंदिर में भगवान गणेश को तीन सूंड और छह भुजाओं के साथ मोर पर विराजमान देखा जा सकता है. मंदिर की सुंदरता और उसकी अनोखी मूर्ति देखकर हर आगंतुक मंत्रमुग्ध हो जाता है. यहां आने वाला हर शख्स रहस्य, इतिहास और कला के इस संगम को करीब से महसूस कर सकता है, जो गणेशोत्सव को और भी खास बना देता है. इस गणेशोत्सव पर अगर आप पुणे में हैं, तो यह मंदिर आपकी ट्रैवल लिस्ट में जरूर होना चाहिए.

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त्रिशुंड गणपति मंदिर  का इतिहास 

त्रिशुंड गणपति मंदिर का निर्माण करीब 16 साल तक चला. इसकी नींव 1754 में रखी गई और 1770 में यह तैयार हुआ. इसे भीमगीरजी गोसावी नाम के तपस्वी ने बनवाया था. कहा जाता है कि शुरू में यह एक शिव मंदिर था, लेकिन बाद में इसे गणपति को समर्पित किया गया. यह मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं रहा, बल्कि योगियों के लिए अभ्यास स्थल और समाधि मंदिर भी रहा. मंदिर के भीतर आज भी भीमगीरजी गोसावी की समाधि मौजूद है.

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गणेश की अनोखी मूर्ति (Photo- x.com/@samraggi_debroy)

अद्भुत मूर्ति और नाम की कहानी

मंदिर का नाम 'त्रिशुंड' भगवान गणेश की अनोखी मूर्ति से लिया गया है. यहां गणपति की तीन सूंड और छह भुजाएं हैं, और सबसे बड़ी बात, वे अपने पारंपरिक वाहन मूषक (चूहे) पर नहीं, बल्कि एक शानदार मोर पर सवार हैं. काले बेसाल्ट से बनी यह मूर्ति कीमती रत्नों से सजी है और देखने वालों को चौंका देती है.

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कला और वास्तुकला का अद्भुत संगम

इस मंदिर को देखकर लगता है जैसे आपने कला और इतिहास का संग्रहालय देख लिया हो. पूरा ढांचा दक्कन के काले पत्थर से बना है. इतना ही नहीं दीवारों और स्तंभों पर राजस्थान, मालवा, दक्षिण भारत और मराठा शैली की झलक मिलती है.  इसके अलावा मूर्तियों में जंजीरों में जकड़े गैंडे और हाथी, पौराणिक जीव, द्वारपाल और युद्ध के दृश्य दिखाई देते हैं. सबसे खास पैनल वह है जिसमें 1757 के प्लासी युद्ध का दृश्य अंकित किया गया है. जिसमें एक ब्रिटिश सैनिक और कैद में बंद गैंडा दिखाया गया है.

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18वीं सदी का त्रिशुंड गणपति मंदिर (Photo- x.com/@samraggi_debroy)
 

संरक्षण की पहल

इतिहास और वास्तुकला का यह रत्न लंबे समय तक छुपा रहा. लेकिन हाल के वर्षों में पुणे नगर निगम ने इसके संरक्षण पर ध्यान दिया है. अब यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों और कला-प्रेमियों के लिए भी एक खास जगह बन गया है. यहां आने वाले लोग कहते हैं कि यह मंदिर पुणे का छिपा खजाना है, जो इतिहास और अध्यात्म दोनों का अनुभव कराता है.

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कैसे पहुंचें इस अनोखे मंदिर तक

अगर आप पुणे ट्रिप पर हैं तो इस मंदिर को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें. यह सोमवार पेठ इलाके में, कमला नेहरू अस्पताल के पास स्थित है. पुणे रेलवे स्टेशन से आप ऑटो या कैब ले सकते हैं. हालांकि मंदिर तक का आखिरी हिस्सा पैदल जाना ही बेहतर रहता है, ताकि आस-पास की गलियों का भी असली पुणे वाला रंग-ढंग देख सकें.

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