संचार साथी ऐप पर सरकार को काफी विरोध का सामना करना पड़ा है. इसके बाद सरकार ने अपने फैसले को बदल दिया. अब इस ऐप को प्री-इंस्टॉल करना जरूरी नहीं है. पहले सरकार ने मोबाइल निर्माताओं को 120 दिनों का वक्त दिया था. कंपनियों को भारत में बिकने वाले और इस्तेमाल होने वाले सभी फोन्स में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल्ड देना था.
यहां तक कि पहले से इस्तेमाल हो रहे फोन्स के लिए कंपनियों को OTA अपडेट जारी कर इस ऐप को इंस्टॉल करने के लिए कहा गया था. हालांकि, विपक्ष के विरोध के बाद सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया है. इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सरकार की ओर से बनाए गए एक्टिव ग्रुप में ऐपल ने हिस्सा नहीं लिया था.
ये कोई पहला मौका नहीं है जब सरकार ने टेक्नोलॉजी से जुड़ा कोई फैसला लिया हो और उसका विरोध हुआ है. पहले भी सरकार और टेक्नोलॉजी कंपनियां एक दूसरे के आमने-सामने आ चुकी हैं. डेटा प्राइवेसी, रेगुलेशन, टैक्सेशन और कंटेंट मॉडरेशन जैसे मुद्दों पर सरकार और कंपनियों का टकराव हो चुका है.
डेटा प्राइवेसी व ट्रेसबिलिटी विवाद पर वॉट्सऐप और भारत सरकार का टकराव हुआ था. सरकार ने IT नियमों के तहत चैट मैसेज की ट्रेसबिलिटी की मांग की थी, जबकि वॉट्सऐप एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन फीचर देता है. सरकार चाहती थी कि देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर या फिर किसी अफवाह के फैलने पर ये पता किया जा सके कि उस मैसेज का फर्स्ट सेंडर कौन है.
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यानी उस मैसेज को पहली बार किसने भेजा है. अगर वॉट्सऐप ऐसा करता तो उसका एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन टूट जाता है. मामला इतना बढ़ गया कि इसे लेकर वॉट्सऐप कोर्ट पहुंच गया. इस मामले में अभी कोई फैसला नहीं आया है. साथ ही वॉट्सऐप एन्क्रिप्शन पहले की तरह ही काम कर रहा है.
ये मुद्दा कंटेंट मॉडरेशन और अकाउंट ब्लॉकिंग का था. किसान आंदोलन, फेक न्यूज और सुरक्षा मामलों पर सरकार ने कई अकाउंट्स और पोस्ट्स को हटाने के लिए ट्विटर से कहा था. ट्विटर ने सरकार के कुछ आदेशों पर आपत्ति जताई, जिसके बाद तनाव बढ़ा था. हालांकि, इस मामले में X को भारत सरकार के ज्यादातर आदेशों को मानना पड़ा था.
प्राइवेसी को लेकर ऐपल का भी सरकार से टकराव हो चुका है. दरअसल, iPhone ने फोन प्रोटेक्शन को लेकर एक वॉर्निंग जारी की थी. ये वॉर्निंग कई नेताओं और पत्रकारों के फोन पर आई थी, जिसमें कहा गया था कि उनके फोन पर स्पाईवेयर अटैक हुआ है. विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर आरोप लगाया था कि वे लोगों की जासूसी की कोशिश कर रहे हैं. सरकार ने इस पर ऐपल से सफाई मांगी थी. ऐपल ने इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा था कि ये अलर्ट संभावित खतरे पर बेस्ड था, ना कि कन्फर्म अटैक पर.
CCI ने गूगल पर Android और Play Store के दबदबे को लेकर 2200 करोड़ रुपये का फाइन लगाया है. इस मामले में गूगल पर एंड्रॉयड की मोनोपॉली, ऐप स्टोर्स के नियम जबरदस्ती लागू करने और कंपटीशन खत्म करने जैसे आरोप लगे. CCI के फाइन के बाद गूगल ने कई बदलाव किए. ये सालों में पहली बार हुआ था, जब गूगल ने अपने मॉडल में कोई बदलाव किया हो. हालांकि, अभी भी ये मामला पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है.
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मेटा से संसद समिति ने Facebook पर हेट स्पीच, राजनीतिक कंटेंट और डेटा सुरक्षा को लेकर कड़ी पूछताछ की. सरकार ने मेटा से पूछा था, 'क्या आपकी नीतियां भारत के लोकतंत्र को प्रभावित कर रही हैं?' इसके बाद मेटा को अपने कई नियमों का स्पष्ट करना पड़ा.
एक वक्त था जब BlackBerry भारत में मिनिस्टर्स का फोन कहा जाता था. ये डिवाइस बिजनेस क्लास की पहचान और सबसे सुरक्षित मोबाइल माना जाता था. 2008–2013 के बीच भारत सरकार और BlackBerry के बीच इतना बड़ा विवाद हुआ कि भारत में कंपनी का मार्केट शेयर लगभग खत्म हो गया.
BlackBerry का BBM उस समय दुनिया का सबसे सुरक्षित मैसेजिंग सिस्टम माना जाता था. BBM पर मैसेज एन्क्रिप्शन में रहते थे, जिन्हें आसानी से खोला नहीं जा सकता था. सुरक्षा एजेंसियों ने कहा कि इनका इस्तेमाल आतंकी और अपराधी करते हैं और इसकी मॉनिटरिंग होनी चाहिए.
मगर ब्लैकबेरी ने एन्क्रिप्शन तोड़ने से मना कर दिया और इसे अपनी टेक्नोलॉजी का मूल हिस्सा बताया. ब्लैकबेरी और सरकार के बीच विवाद बढ़ने पर कंपनी को बैन करने की चेतावनी भी दी गई. बाद में कंपनी आंशिक रूप से झुकी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उसकी वक्त एंड्रॉयड और iPhone तेजी से पॉपुलर हो रहे थे. बाजार और सरकार के दबाव की वजह कंपनी का मार्केट शेयर 1 फीसदी से भी कम पहुंच गया.
इन सब के अलावा सरकार ने चीनी ऐप्स को बैन किया, जिसमें TikTok और PUGB Mobile शामिल हैं. हालांकि, इन कंपनियों का सरकार से कोई विवाद नहीं था. इन्हें सरकार ने सुरक्षा कारणों से बैन किया था. बाद में PUBG की पैरेंट कंपनी Krafton ने BGMI को भारत में लॉन्च किया, लेकिन TikTok की कभी वापसी नहीं हो पाई.
अभिषेक मिश्रा