दुनिया की सबसे पुरानी ममी मिली... मिस्र से पहले चीन में बनाई जाती थी ममी

दुनिया की सबसे पुरानी ममियां, जो 10,000 साल पुरानी हैं, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में मिलीं. स्टडी से पता चला कि हंटर-गेदरर लोग मृतकों को धुएं से सुखाकर ममी बनाते थे. कंकालों को टाइट फीटल पोजीशन में बांधकर आग पर सुखाया जाता था. यह प्रथा धार्मिक महत्व रखती थी. आज भी कुछ जनजातियां इसे करती हैं.

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ये है चीन से मिली 10 से 12 हजार साल पुरानी ममी. (Photo: Hsiao-chun Hung) ये है चीन से मिली 10 से 12 हजार साल पुरानी ममी. (Photo: Hsiao-chun Hung)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 16 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:55 PM IST

क्या आप जानते हैं कि मिस्र की ममी से भी 5000 साल पुरानी दुनिया की सबसे पुरानी ममी कहां मिलीं? नई स्टडी से पता चला है कि चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया (फिलीपींस, लाओस, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया) में 4000 से 12000 साल पुरानी कब्रों में मिले कंकाल धुएं से सुखाकर ममी बनाए गए थे. यह स्टडी 15 सितंबर 2025 को PNAS जर्नल में प्रकाशित हुई. 

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धुएं से सुखाई गई ममी

शोधकर्ताओं ने चीन, फिलीपींस, लाओस, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया की 69 कब्रों से 54 कंकालों का अध्ययन किया. इनमें से कई कंकाल हाइपरफ्लेक्स्ड (टाइट फीटल पोजीशन में मुड़े हुए) थे, जो प्राकृतिक नहीं लगते. पहले वैज्ञानिकों को लगा कि शायद बॉडी को बांधकर रखा गया था. लेकिन X-रे डिफ्रैक्शन और इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी से पता चला कि कंकालों पर धुएं का निशान है, लेकिन कब्रों पर नहीं.

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यह दर्शाता है कि मृतकों को दफनाने से पहले आग पर धुएं से सुखाया गया था. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की हसाओ-चुन हंग ने कहा कि धुआं सुखाना सिर्फ सड़न रोकने के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व रखता था. यह प्रथा हंटर-गेदरर समुदायों में 12000 से 4,000 साल पहले प्रचलित थी.

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सबसे पुरानी ममी 12,000 साल पुरानी है, जो दक्षिण अमेरिका की चिंचोर्रो संस्कृति (7,000 साल पुरानी) और मिस्र की पुरानी ममी (4,500 साल पुरानी) से भी पुरानी है.

धुएं से सुखाने की प्रक्रिया: वैज्ञानिक कारण

मृतकों को कुरसी पोजीशन (भ्रूण जैसी मुड़ी हुई मुद्रा) में बांधा जाता था. फिर, कम तापमान वाली आग पर कई महीनों तक धुएं से सुखाया जाता था. इससे बॉडी सड़ने से बच जाती थी. स्टडी से पता चला...

  • कम तापमान का हीट: कंकालों पर सोट (काजल जैसा) का निशान और रंग बदलाव था, लेकिन जलने के निशान नहीं. यह धुएं से सुखाने का प्रमाण है.
  • संरक्षण का तरीका: गर्म और नम जलवायु में धुआं सबसे प्रभावी था. बॉडी को आग के ऊपर रखकर धुएं से सुखाया जाता, जो बैक्टीरिया को मारता और सड़न रोकता.
  • आधुनिक उदाहरण: शोधकर्ता 2019 में इंडोनेशिया के पापुआ गए, जहां दानी और पुमा जनजातियां आज भी मृतकों को बांधकर धुएं से सुखाती हैं. ये ममी काली हो जाती हैं और दशकों तक बची रहती हैं.

हंग ने कहा कि ये ममी त्वचा या बालों के साथ नहीं मिलीं, लेकिन जानबूझकर सुखाने से इन्हें ममी माना गया. ये कुछ दशकों से सैकड़ों साल तक बची रहतीं, लेकिन कंटेनर में न रखने से ज्यादा समय नहीं टिकतीं.

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रहस्य: कैसे शुरू हुई यह प्रथा?

शोधकर्ताओं का मानना है कि यह प्रथा अफ्रीका से 65,000 साल पहले दक्षिण-पूर्व एशिया में पहुंचे हंटर-गेदररों से शुरू हुई. शायद जानवरों के मांस को धुएं से सुखाने से सीखा गया. या रस्म के दौरान संयोग से पता चला. हंग ने कहा कि यह एक आकर्षक रहस्य है कि उन्होंने पता कैसे लगाया. लेकिन साफ है कि यह मृतकों को जीवितों के बीच रखने का तरीका था, जो प्रेम, स्मृति और समर्पण दिखाता है.

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टू लेयर माइग्रेशन मॉडल: प्राचीन प्रवास का प्रमाण

यह खोज टू लेयर माइग्रेशन मॉडल को मजबूत करती है...

  • पहली परत: 65,000 साल पहले अफ्रीका से आए हंटर-गेदरर, जो धुएं से ममी बनाते थे.
  • दूसरी परत: 4,000 साल पहले नेलिथिक किसान आए, जिनकी दफन प्रथाएं अलग थीं. ये प्राचीन हंटर-गेदरर दक्षिण-पूर्व एशिया के आधुनिक जनजातियों (जैसे दानी और पुमा) के पूर्वज हो सकते हैं. 

नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की बायोलॉजिकल एंथ्रोपोलॉजिस्ट आइवी ह्यूई-युआन येह ने कहा कि यह खोज एशिया में प्रारंभिक मानव प्रवास, वितरण और संपर्क के पैटर्न से मेल खाती है. अगर ये हाइपरफ्लेक्स्ड दफन धुएं से सुखाई गई ममी हैं, तो यह प्रथा पुरानी और व्यापक थी. 

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