ऊपर पहाड़ों से टूटकर गिर रहे थे पत्थर... अफगानिस्तान में भूकंप से इतनी मची बर्बादी

अफगानिस्तान के कुनार और नंगरहर में 6.0 तीव्रता के भूकंप से करीब 1100 लोगों की मौत हुई है. 2500 घायल हैं. हजारों घर टूट गए हैं. पहाड़ों से पत्थर गिरे, जिनसे कई गांव तबाह हो गए. तालिबान और अंतरराष्ट्रीय टीमें बचाव में जुटी हैं, लेकिन पहाड़ी रास्तों में मुश्किलें हैं. लोग खुले में सो रहे हैं, मदद की जरूरत है.

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अफगानिस्तान के जलालाबाद में दारा नूर गांव में भूकंप से टूटे अपने मकान में अपनी चीजें खोजता व्यक्ति. (Photo: Reuters) अफगानिस्तान के जलालाबाद में दारा नूर गांव में भूकंप से टूटे अपने मकान में अपनी चीजें खोजता व्यक्ति. (Photo: Reuters)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:03 PM IST

अफगानिस्तान में 1 सितंबर 2025 को रात में कुनार और नंगरहर प्रांतों में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया. यह भूकंप इतना तेज था कि पहाड़ों से पत्थर टूटकर गिरने लगे, घर मलबे में बदल गए और पूरा इलाका हिल गया. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कम से कम 800 लोग मारे गए, जबकि तालिबान सरकार का अनुमान 1100 मौतों का है. 2500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. हजारों बेघर हो गए. 

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भूकंप कैसे और क्यों आया... केंद्र कहां था?

अफगानिस्तान हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में स्थित है, जहां भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स (पृथ्वी की ऊपरी परतें) आपस में टकराती रहती हैं. इससे भूकंप आम हैं. यह भूकंप नंगरहर प्रांत के कुज कुनार जिले में केंद्रित था, जो जलालाबाद शहर से करीब 27 किलोमीटर पूर्व-उत्तर-पूर्व में है.

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भूकंप की गहराई सिर्फ 8 किलोमीटर थी, जो इसे और विनाशकारी बनाती है क्योंकि ऊर्जा सतह तक तेजी से पहुंच जाती है. भूकंप रात को आया, जब ज्यादातर लोग सो रहे थे. इसके बाद 17 से ज्यादा आफ्टरशॉक आए, जिनमें 4.5 और 5.2 तीव्रता के भी शामिल थे.

झटके काबुल और पड़ोसी पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद तक महसूस हुए, लेकिन वहां कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. अल जजीरा के अनुसार यह भूकंप रात के समय आने की वजह से ज्यादा घातक साबित हुआ, क्योंकि लोग घरों में थे. कुनार का इलाका गरीब और पहाड़ी है, जहां मिट्टी के घर ज्यादा हैं, जो भूकंप में आसानी से ढह जाते हैं.

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तबाही का मंजर: गांव उजड़ गए, पत्थरों की बौछार

यह भूकंप कुनार और नंगरहर प्रांतों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया. कुनार के चॉकी, नुर्गल, नूरगल, सोकी, वाटपुर, मनोगी और चपादारे जिलों में दर्जनों गांव पूरी तरह तबाह हो गए. वादिर, शोमाश, मसूद और अरीत गांवों में 90% तक लोग मारे गए या घायल हुए. आंदरलाचक गांव में अकेले 79 मौतें हुईं, जबकि मजार-ए-दरा में दर्जनों शव मिले. 

बीबीसी की रिपोर्ट में बताया गया कि पहाड़ों से पत्थर टूटकर गिरे, जिससे भूस्खलन हुआ और सड़कें बाधित हो गईं. घर मिट्टी और पत्थर के बने होने से तुरंत ढह गए. एक गांव में पूरा घर गिरने से एक आदमी ने अपनी पत्नी और चार बच्चों को खो दिया. कुल 1,000 से ज्यादा घर नष्ट हो गए. 

नंगरहर के दराई नूर जिले में 12 मौतें और 255 घायल हुए, जबकि लगहमान में 80 लोग घायल. नुरिस्तान में भी नुकसान हुआ. बचावकर्मियों को घंटों पैदल चलना पड़ा क्योंकि सड़कें मलबे से बंद थीं. तेज हवाएं और हल्की बारिश ने हालात और खराब कर दिए. 

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लोगों की दर्द भरी कहानियां: डर, चीखें और खामोशी

कुनार प्रांत के असदाबाद गांव के एक फ्रीलांस पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता मतीउल्लाह शहाब रात को भूकंप से जागे. उनके 23 परिवार के सदस्य बेडरूम से भागे. पूरी रात बगीचे में डर में बिताई. सुबह वे कार से निकले, लेकिन सड़क पर पत्थरों की वजह से 2 घंटे पैदल चलना पड़ा.

शहाब आंदरलाचक गांव पहुंचे तो सड़क पर बच्चों का इलाज हो रहा था. दो छोटे बच्चे स्ट्रेचर पर चोटों से सने लेटे थे. कई बच्चे सफेद चादरों में लिपटे थे. वहां 79 लोग मारे गए. मतीउल्लाह ने 17 आफ्टरशॉक महसूस किए और स्थानीय लोगों के साथ कब्रें खोदीं. गांव तबाह हो चुके थे. लोगों के चेहरे धूल से सने थे, सब खामोश थे जैसे रोबोट. 

सोकी जिले से एज्जतउल्लाह सफी ने बताया कि बच्चों, महिलाओं और जानवरों की चीखें सुनकर जागा. कयामत की रात थी. हवाएं तेज थीं, बारिश हो रही थी. बच्चे मुझसे चिपककर रो रहे थे. धूल हवा में भरी थी. मोबाइल नेटवर्क बंद हो गया, बिजली गुल. हम फोन की रोशनी पर निर्भर थे. 

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घाजियाबाद गांव के निवासी मोहम्मद असलम, जो हाल ही में पाकिस्तान से डिपोर्ट होकर लौटे थे, उन्होंने बताया कि भूकंप में उनके पिता, चचेरे भाई के दो बच्चे मारे गए. रात 12:30 बजे घर गिर गया. हम पांच लोग खो चुके हैं. 

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एतेबार गुल ने कहा कि पूरे गांव तबाह हो गए हैं. हर घर में 5-6 या 10 लोग मारे गए. सब कुछ मलबे में दब गया. लियाकत अली ने बताया कि मेरा परिवार के 7 सदस्य चले गए. हम बेबस हैं.  

गरीबी, पहुंच की कमी और मानवीय संकट

यह इलाका पहले से गरीब है, जहां मिट्टी के घर और खराब सड़कें हैं. तालिबान शासन और आर्थिक संकट की वजह से मदद पहुंचाना मुश्किल हो रहा है. बिजली गुल, बाजार बंद. हजारों बेघर, सबको टेंट की जरूरत. महिलाओं और बच्चों पर सबसे ज्यादा असर. महामारी का खतरा भी बढ़ गया है. आईआरसी ने कहा कि यह 2023 के भूकंप से भी बड़ा संकट पैदा कर सकता है.

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हेलीकॉप्टर से हो रही मदद

तालिबान सरकार ने तुरंत हेलीकॉप्टर भेजे. 40 से ज्यादा उड़ानें हुईं, 420 घायलों को जलालाबाद और असदाबाद अस्पताल ले जाया गया. स्वास्थ्य मंत्रालय ने 30 डॉक्टर और 800 किलो दवाएं भेजीं. रेड क्रॉस और यूएन ने टीमें भेजीं. वॉलंटियर्स ने खून दान किया.

भारत ने 1000 टेंट और 15 टन भोजन भेजा, चीन और ईरान ने मदद का वादा किया. यूरोपीय संघ और जापान भी सहायता दे रहे. लेकिन पहाड़ी इलाकों में पहुंचना मुश्किल है, कई जगह पैदल जाना पड़ रहा है. तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय मदद मांगी है. 

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यह भूकंप अफगानिस्तान की कमजोरियों को उजागर करता है – गरीबी, खराब इमारतें और पहुंच की कमी. 2023 के भूकंप में भी हजारों मरे थे, लेकिन तबाही फिर आई. विशेषज्ञ कहते हैं कि मजबूत घर और चेतावनी सिस्टम जरूरी. 

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