भारत के बड़े शहरों जैसे कोलकाता, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में इस गर्मी (2025) में जमीन के स्तर पर ओजोन प्रदूषण ने खूब सिर उठाया है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, इन शहरों में ओजोन का स्तर कई दिनों तक 8 घंटे के मानक से ज्यादा रहा. यह प्रदूषण इतना खतरनाक है कि यह लोगों के स्वास्थ्य और खेती पर बुरा असर डाल रहा है. इस समस्या को समझते हैं और जानते हैं कि क्या करना जरूरी है.
क्या है ओजोन प्रदूषण?
ओजोन एक गैस है जो तीन ऑक्सीजन अणुओं से बनती है. ऊंचे आसमान में यह हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती है, लेकिन जमीन के पास यह प्रदूषण बन जाता है. यह सीधे किसी स्रोत से नहीं निकलता, बल्कि वाहनों, उद्योगों और बिजलीघरों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के सूरज की रोशनी में रासायनिक प्रतिक्रिया से बनता है. यह गैस बहुत प्रतिक्रियाशील होती है. हवा में लंबी दूरी तक फैल सकती है, जिससे यह शहरों से लेकर गांवों तक को प्रभावित करती है.
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शहरों में ओजोन का हाल
CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गर्मी (मार्च-मई 2025) में कई शहरों में ओजोन का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया. दिल्ली की रिपोर्ट पहले ही जारी हो चुकी है, इसलिए इस अध्ययन में उसे शामिल नहीं किया गया. आइए, बाकी शहरों की स्थिति देखें...
इन शहरों में ओजोन का स्तर सिर्फ गर्मियों में नहीं,बल्कि सर्दियों और अन्य मौसमों में भी बढ़ रहा है, खासकर गर्म जलवायु वाले इलाकों में.
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ओजोन के हॉटस्पॉट और असर
हर शहर में कुछ खास इलाके हैं जहां ओजोन का स्तर सबसे ज्यादा बढ़ता है. इन हॉटस्पॉट्स में प्रदूषण का असर और गंभीर होता है. ओजोन सांस की नली को नुकसान पहुंचाता है. अस्थमा और दमा जैसी बीमारियों को बढ़ाता है. बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी वालों के लिए खतरनाक है. यह फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है.
क्यों बढ़ रहा ओजोन प्रदूषण?
ओजोन का बढ़ना मौसम और प्रदूषण स्रोतों पर निर्भर करता है. गर्मी और सूरज की रोशनी इसकी रासायनिक प्रतिक्रिया को तेज करती है. वाहन, उद्योग, कचरा जलाना और ठोस ईंधन का इस्तेमाल इसके मुख्य कारण हैं. दिलचस्प बात यह है कि जहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) ज्यादा होता है, वहां ओजोन कम बनता है, लेकिन साफ इलाकों में यह जमा हो जाता है .
समाधान क्या हो?
CSE की अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह गंभीर स्वास्थ्य संकट बन सकता है.इसके लिए जरूरी कदम हैं...
ऋचीक मिश्रा