कैसे काम करता है ATC जिसके ठप होने से दिल्ली एयरपोर्ट पर जाम हो गया 100 विमानों का चक्का?

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर AMSS (ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम) में खराबी से फ्लाइट्स में देरी हो रही है. यह ATC (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) डेटा का सपोर्ट करता है, जो मैसेज स्विचिंग से फ्लाइट प्लान मैनेज करता है. कंट्रोलर मैन्युअली काम कर रहे हैं. ATC हवाई जहाजों को निर्देशित करता है. AMSS मैसेज तेज भेजता है.

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एयर ट्रैफिक कंट्रोल किसी भी एयरपोर्ट का मुख्य केंद्र होता है जो फ्लाइट्स को मैनेज करता है. (Photo: Getty) एयर ट्रैफिक कंट्रोल किसी भी एयरपोर्ट का मुख्य केंद्र होता है जो फ्लाइट्स को मैनेज करता है. (Photo: Getty)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST

दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर फ्लाइट संचालन में देरी हो रही है, एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) डेटा को सपोर्ट करने वाले ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (AMSS) में तकनीकी समस्या आ गई है. कंट्रोलर्स फ्लाइट प्लान को मैन्युअली प्रोसेस कर रहे हैं, जिससे कुछ देरी हो रही है. तकनीकी टीम जल्द से जल्द सिस्टम को बहाल करने के लिए काम कर रही है. आइए समझते हैं कि ATC और AMSS क्या होते हैं. इनका क्या काम होता है.

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ATC का पूरा नाम एयर ट्रैफिक कंट्रोल (Air Traffic Control) है. यह एक स्मार्ट सिस्टम है जो हवाई जहाजों की आवाजाही को नियंत्रित करता है, ताकि कोई दुर्घटना न हो और सब कुछ सुचारू रूप से चले.

ATC सिस्टम क्या है?

ATC सिस्टम एयरपोर्ट पर एक केंद्रीय नियंत्रण प्रणाली है. यह हवाई जहाजों को जमीन पर, हवा में और आसमान के अलग-अलग हिस्सों में निर्देशित करता है. यह एक ट्रैफिक पुलिस की तरह है, लेकिन हवाई जहाजों के लिए. 

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मुख्य उद्देश्य

  • हवाई जहाजों के बीच टक्कर से बचाव.
  • उड़ानों में देरी कम करना. 
  • मौसम और अन्य समस्याओं का सामना करना.

ATC न सिर्फ एयरपोर्ट पर, बल्कि पूरे देश या दुनिया के हवाई क्षेत्र (एयरस्पेस) में काम करता है. भारत में DGCA (डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) और AAI (एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) इसकी देखरेख करते हैं.

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एटीसी में ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (AMSS) क्या है?

एटीसी यानी एयर ट्रैफिक कंट्रोल में AMSS एक बहुत जरूरी कंप्यूटर सिस्टम है, जो हवाई जहाजों की उड़ानों से जुड़ी खबरें और मैसेज तेजी से भेजने-लाने का काम करता है. सरल शब्दों में, यह एक स्मार्ट डाकिया की तरह है जो एयरपोर्ट्स, मौसम की जानकारी, फ्लाइट प्लान और सुरक्षा अलर्ट जैसे मैसेज को एक जगह से दूसरी जगह स्विच या ट्रांसफर करता है.

भारत में एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) इसे चलाती है. अगर यह सिस्टम खराब हो जाए, तो कंट्रोलरों को हाथ से काम करना पड़ता है, जिससे फ्लाइट्स में देरी हो जाती है. यह सिस्टम मौसम डेटा इकट्ठा करने और बांटने का मुख्य आधार भी है, ताकि पायलट्स को सही समय पर सारी जानकारी मिले.

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AMSS की मुख्य विशेषताएं

AMSS की स्पेसिफिकेशन बहुत आसान और आधुनिक है. यह IP-बेस्ड (इंटरनेट प्रोटोकॉल) कंप्यूटर सिस्टम है, जो AFTN (एयरोनॉटिकल फिक्स्ड टेलीकम्युनिकेशन नेटवर्क) से जुड़ा होता है. इसका रेंज पूरे देश या दुनिया के एयरपोर्ट्स तक फैला है. यह मैसेज को प्राथमिकता के आधार पर भेजता है – जैसे जरूरी अलर्ट पहले.

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यह ऑटोमेटेड वर्कफ्लो यूज करता है, जो मैसेज को सुरक्षित और तेज रूट करता है. भारत के बड़े एयरपोर्ट्स जैसे मुंबई और दिल्ली में नया IP-AMSS लगा है, जो 99% समय बिना रुके चलता है. कुल मिलाकर, यह ग्राउंड-टू-ग्राउंड कम्युनिकेशन के लिए स्टैंडर्ड ICAO नियमों पर बना है. इसमें ह्यूमन या ऑटोमेटेड यूजर्स मैसेज सबमिट-डिलीवर कर सकते हैं.

ATC सिस्टम की मुख्य विशेषताएं 

ATC सिस्टम बहुत एडवांस तकनीक पर आधारित है. इसमें हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और इंसानों का मिश्रण होता है. आइए देखें इसके मुख्य भाग...

1. रडार सिस्टम (Radar Systems)

प्राइमरी सर्विलांस रडार (PSR): यह रडार हवाई जहाजों को उनकी स्थिति (पोजीशन) के आधार पर ट्रैक करता है. यह रेडियो तरंगें भेजकर जहाजों को डिटेक्ट करता है, भले ही उनके पास कोई सिग्नल न हो.

  • रेंज: 50-100 किलोमीटर तक
  • फ्रीक्वेंसी: 1-3 GHz (गिगाहर्ट्ज)
  • सेकेंडरी सर्विलांस रडार (SSR): यह विमानों के ट्रांसपॉन्डर (एक छोटा डिवाइस जहाज में लगा होता है) से बात करता है. इससे जहाज की ऊंचाई, स्पीड और ID मिलती है.
  • मोड: मोड A (ID), मोड C (ऊंचाई), मोड S (उन्नत डेटा जैसे GPS पोजीशन).
  • रेंज: 200-400 किलोमीटर
  • एडवांस्ड वर्जन: ADS-B (ऑटोमेटिक डिपेंडेंट सर्विलांस-ब्रॉडकास्ट) – यह GPS से रीयल-टाइम लोकेशन शेयर करता है. भारत के बड़े एयरपोर्ट्स जैसे दिल्ली और मुंबई में यह लगा है.

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2. कम्युनिकेशन सिस्टम (Communication Tools)

  • VHF रेडियो: पायलट और ATC के बीच बातचीत के लिए. फ्रीक्वेंसी 118-137 MHz.
  • रेंज: 50-100 किलोमीटर
  • UHF और HF रेडियो: लंबी दूरी के लिए (समुद्र पार उड़ानों में)
  • डिजिटल सिस्टम: CPDLC (कंट्रोलर-पायलट डेटा लिंक कम्युनिकेशंस) – मैसेज भेजने के लिए, आवाज की बजाय टेक्स्ट.

3. नेविगेशन एड्स (Navigation Aids)

  • ILS (इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम): खराब मौसम में लैंडिंग के लिए. यह रेडियो बीम से जहाज को रनवे पर गाइड करता है.
  • कंपोनेंट्स: लोकलाइजर (दिशा के लिए), ग्लाइड स्लोप (ऊंचाई के लिए).
  • रेंज: 20-30 किलोमीटर
  • VOR (VHF Omnidirectional Range): दिशा बताने के लिए.
  • DME (Distance Measuring Equipment): दूरी मापने के लिए.

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4. ऑटोमेशन और सॉफ्टवेयर

  • FDPS (Flight Data Processing System): उड़ानों का डेटा मैनेज करता है, जैसे शेड्यूल, मौसम अपडेट.
  • ATM (Air Traffic Management) सॉफ्टवेयर: कॉन्फ्लिक्ट अलर्ट (टक्कर का खतरा बताना), ट्रैफिक फ्लो ऑप्टिमाइजेशन.
  • कंप्यूटर: हाई-स्पीड सर्वर, रीयल-टाइम डेटा प्रोसेसिंग के लिए. भारत में इंडस (Indian NextGen ATM System) इसका उदाहरण है.

5. मानव संसाधन (Human Elements)

  • ATC कंट्रोलर्स: ट्रेनिंग के बाद काम करते हैं. एक शिफ्ट में 2-3 लोग.
  • टावर: एयरपोर्ट के ऊंचे टावर से विजुअल मॉनिटरिंग.
  • कॉन्फ्लिक्ट डिटेक्शन: AI की मदद से, लेकिन अंतिम फैसला इंसान का.

ये स्पेसिफिकेशन ICAO (इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन) के स्टैंडर्ड पर आधारित हैं. भारत में AAI के एयरपोर्ट्स पर ये सिस्टम 99.9% अपटाइम के साथ चलते हैं.

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TC सिस्टम कैसे काम करता है? 

ATC सिस्टम तीन मुख्य स्तरों पर काम करता है. हर स्तर का अपना काम है, जैसे एक टीम में हर खिलाड़ी का रोल.

1. ग्राउंड कंट्रोल (Ground Control)

  • कहां: एयरपोर्ट के एप्रन (जहाज खड़े होने की जगह) और टैक्सीवे (रनवे तक जाने वाली राह) पर.
  • काम: जहाजों को पार्किंग से रनवे तक गाइड करना. ग्राउंड व्हीकल्स (ट्रक, कार) को कंट्रोल करना.
  • उदाहरण: "इंडियन 123, टैक्सी होल्ड शॉर्ट ऑफ रनवे 27" – मतलब रनवे से पहले रुक जाओ.

2. टावर कंट्रोल (Tower Control)

  • कहां: एयरपोर्ट टावर से, विजुअल रेंज में (5-10 किलोमीटर).
  • काम: टेकऑफ और लैंडिंग की परमिशन देना. रनवे पर स्पेस मैनेज करना (एक जहाज लैंड हो जाए, तो अगला आए).
  • उदाहरण: पायलट से बात – "क्लियर्ड फॉर टेकऑफ, विंड 10 नॉट्स".

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3. अप्रोच/डिपार्चर कंट्रोल (Approach/Departure Control)

  • कहां: एयरपोर्ट के आसपास के हवाई क्षेत्र में (50-100 किलोमीटर). 
  • काम: लैंडिंग वाले जहाजों को रनवे की ओर लाना (अप्रोच). टेकऑफ वाले को ऊंचाई पर भेजना (डिपार्चर). अन्य एयरपोर्ट्स से आने-जाने वाले ट्रैफिक को मर्ज करना. 
  • उदाहरण: ऊंचाई बदलने का निर्देश – "क्लाइंब टू फ्लाइट लेवल 250" (25,000 फीट ऊपर जाओ).

पूरी कार्यप्रणाली

  • स्टेप 1: फ्लाइट प्लान सबमिट – एयरलाइन कंपनी ATC को उड़ान का प्लान बताती है (रूट, टाइम, ईंधन).
  • स्टेप 2: मॉनिटरिंग – रडार और सॉफ्टवेयर से जहाज ट्रैक होता है.
  • स्टेप 3: निर्देश – रेडियो से पायलट को कमांड दी जाती है.
  • स्टेप 4: अपडेट – मौसम, ट्रैफिक बदलने पर प्लान चेंज.
  • स्टेप 5: हैंडओवर – एक कंट्रोलर दूसरे को चार्ज सौंपता है (जैसे टावर से अप्रोच).

ATC सिस्टम का महत्व और चुनौतियां

  • महत्व: हर साल करोड़ों उड़ानें सुरक्षित होती हैं. 2023 में भारत में 1.5 करोड़ से ज्यादा पैसेंजर ट्रैवल किए, सब ATC की वजह से.
  • चुनौतियां: खराब मौसम, ज्यादा ट्रैफिक, साइबर अटैक. लेकिन बैकअप सिस्टम (जैसे मैनुअल मोड) से ये हैंडल होते हैं.
  • भविष्य: AI और ड्रोन इंटीग्रेशन से और बेहतर होगा.
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