Delhi: असली बारिश से कितनी अलग होती है क्लाउड सीडिंग वाली आर्टिफिशियल रेन...गड़बड़ हुई तो क्या होगा?

दिल्ली के प्रदूषण से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग से आर्टिफिशियल बारिश होने वाली है. सामान्य बारिश से अलग – ये बादलों में रसायन डालकर 5-15% ज्यादा बरसाती है, छोटी लेकिन टारगेटेड होती है. ₹3.21 करोड़ का ट्रायल, 90 मिनट की उड़ान से 100 वर्ग किमी कवर होगा. गड़बड़ी का भी चांस है.

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दिल्ली में अगले तीन दिनों में आर्टिफिशियल बारिश कराई जाएगी. (File Photo: Getty) दिल्ली में अगले तीन दिनों में आर्टिफिशियल बारिश कराई जाएगी. (File Photo: Getty)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 23 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 12:26 PM IST

दिल्ली की हवा हर साल सर्दियों में जहरीली हो जाती है. दिवाली के बाद धुंध इतनी गाढ़ी हो जाती है कि सांस लेना मुश्किल हो जाता है. इसी समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार आर्टिफिशियल बारिश की कोशिश कर रही है. इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. ये तकनीक बादलों में रसायन डालकर बारिश कराती है. लेकिन ये सामान्य बारिश से बिल्कुल अलग है. 

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क्लाउड सीडिंग क्या है? बादलों को बारिश के लिए उकसाना

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तरीका है, जिसमें मौजूद बादलों में खास रसायन डाले जाते हैं ताकि बारिश हो जाए. ये रसायन पानी की बूंदों या बर्फ के कणों को जोड़ने में मदद करते हैं. मुख्य रसायन हैं सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस (ठंडा कार्बन डाइऑक्साइड) या नमक (जैसे आयोडाइज्ड सॉल्ट). 

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ये तरीका 1940 के दशक से इस्तेमाल हो रहा है. अमेरिका, चीन और यूएई जैसे देश पानी की कमी या प्रदूषण कम करने के लिए करते हैं. दिल्ली में ये हवा साफ करने के लिए है. परियोजना का नाम है 'टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेशन एंड इवैल्यूएशन ऑफ क्लाउड सीडिंग फॉर दिल्ली एनसीआर पॉल्यूशन मिटिगेशन. इसकी लागत ₹3.21 करोड़ है.

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सामान्य बारिश से कितनी अलग है आर्टिफिशियल बारिश?

सामान्य बारिश प्रकृति का कमाल है. बादल बनते हैं, हवा ठंडी होती है, नमी जमा होकर बूंदें बनाती हैं और बरस पड़ती हैं. ये प्रक्रिया बिना किसी मदद के चलती है. लेकिन क्लाउड सीडिंग में इंसान हस्तक्षेप करता है. मुख्य फर्क ये हैं...

  • बादल की जरूरत: सामान्य बारिश में बादल खुद बन सकते हैं. लेकिन क्लाउड सीडिंग में पहले से नम बादल होने चाहिए. बिना बादल के ये काम नहीं करता. दिल्ली में अभी (अक्टूबर 2025) बादल न होने से ट्रायल रुक गया है.
  • बारिश की मात्रा: सामान्य बारिश ज्यादा या कम हो सकती है. क्लाउड सीडिंग से बारिश सिर्फ 5-15% बढ़ती है. दिल्ली के ट्रायल में अनुमानित 10-15% वृद्धि. भारत के कुछ पायलट ट्रायल में सिर्फ 3% बढ़ी.
  • समय और जगह: सामान्य बारिश घंटों या दिनों चल सकती है. आर्टिफिशियल बारिश छोटी होती है – दिल्ली में एक उड़ान 90 मिनट की, 100 वर्ग किलोमीटर कवर करती है. ये टारगेटेड होती है, जैसे उत्तर-पश्चिम दिल्ली के प्रदूषित इलाकों पर.
  • उद्देश्य: सामान्य बारिश पानी देती है. आर्टिफिशियल बारिश प्रदूषण साफ करने के लिए – दिल्ली में पीएम2.5 लेवल 2024-25 सर्दी में 175 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो डब्ल्यूएचओ मानक से 11.9 साल कम जिंदगी देता है.

क्लाउड सीडिंग 'बादल को झटका देकर' बारिश उकसाती है, जबकि सामान्य बारिश 'प्रकृति का नृत्य' है.

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दिल्ली में कैसे काम करती है ये तकनीक? आंकड़े और तरीका

दिल्ली का प्रोजेक्ट आईआईटी कानपुर, आईएमडी और आईआईटीएम पुणे ने बनाया. 5 संशोधित सेसना विमान इस्तेमाल होंगे. हर उड़ान में रसायन छिड़के जाते हैं. 

  • तरीका: विमान बादलों में उड़ते हैं. रसायन छोड़ते हैं. ये कण पानी की बूंदों को जोड़ते हैं, जो भारी होकर बरस पड़ती हैं. मानसून के बादल ज्यादा नम होते हैं, इसलिए सफलता ज्यादा.
  • ट्रायल शेड्यूल: जुलाई 4-11, 2025 से शुरू होना था, लेकिन मौसम खराब होने से अगस्त 30-सितंबर 10 तक टला. हर ट्रायल 20-90 मिनट का. एक सफल ट्रायल से हवा 20-30% साफ हो सकती है. लेकिन ये अस्थायी है.  
  • आंकड़े: दुनिया में 39 देश कर चुके हैं. चीन ने 2014-2021 में $2 अरब खर्चे. सऊदी अरब ने 2022 में $256 मिलियन. भारत में सूखा प्रभावित इलाकों में पहले ट्रायल हुए, लेकिन दिल्ली पहली बार ट्रायल कर रहा है. 

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दिल्ली और दुनिया के केस

  • दिल्ली का उदाहरण (2025): जुलाई ट्रायल में मानसून बादलों पर टेस्ट. एक उड़ान से 100 वर्ग किमी में हल्की बारिश हुई, जो प्रदूषक धो ले गई. लेकिन सर्दी में ट्रायल बाकी, जहां प्रदूषण ज्यादा.
  • चीन का उदाहरण: बीजिंग ओलंपिक (2008) से पहले क्लाउड सीडिंग से प्रदूषण 40% कम. 2025 में भी हवा साफ करने के लिए इस्तेमाल.
  • यूएई का उदाहरण: 2016 से $22.5 मिलियन ग्रांट. रेगिस्तान में बारिश 15% बढ़ी, लेकिन कभी-कभी बाढ़ का खतरा. 

ये उदाहरण दिखाते हैं कि सफलता मौसम पर निर्भर है.

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गड़बड़ हुई तो क्या होगा?  

क्लाउड सीडिंग सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन गड़बड़ होने पर नुकसान हो सकता है. मुख्य जोखिम...

स्वास्थ्य जोखिम: सिल्वर आयोडाइड कम विषैला है, लेकिन ज्यादा एक्सपोजर से सांस या त्वचा में जलन. अस्थमा वाले मरीजों को खतरा. बारिश का पानी रसायनों से दूषित हो सकता है, जो पीने से पेट की समस्या. अध्ययन कहते हैं, सामान्य स्तर पर सुरक्षित, लेकिन बड़े पैमाने पर नुकसान संभव है.

पर्यावरण जोखिम: मिट्टी-जल में रसायन जमा हो सकते हैं. नीचे के इलाकों में अनचाही बारिश या सूखा. जलवायु परिवर्तन से प्रभाव कम हो सकता है.

अन्य जोखिम: अगर बादल न हों तो पैसे बर्बाद. अमेरिका में 10 राज्य प्रतिबंधित कर चुके, क्योंकि लोग इसे 'मौसम बदलना' समझते हैं. लागत ज्यादा – दिल्ली का ₹3 करोड़ सिर्फ ट्रायल.

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सावधानियां

  • ऑपरेशन के दौरान बाहर न निकलें, मास्क लगाएं.
  • बारिश का पानी फिल्टर करें या न पिएं.
  • स्वास्थ्य चेक: फेफड़ों की जांच, एलर्जी टेस्ट.
  • सरकार मॉनिटरिंग करे – पानी की क्वालिटी टेस्ट. 

अमेरिकी GAO रिपोर्ट (2025) कहती है, जोखिम कम हैं लेकिन लंबे समय के अध्ययन जरूरी. क्लाउड सीडिंग दिल्ली की प्रदूषण समस्या के लिए नई उम्मीद है. ये सामान्य बारिश से छोटी लेकिन लक्षित है, जो 5-15% ज्यादा पानी ला सकती है. लेकिन बिना बादल के बेकार. 

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