तेजस और सुखोई फाइटर जेट बनाने वाला HAL अब बनाएगा इसरो के लिए रॉकेट

तेजस और सुखोई फाइटर जेट बनाने वाला HAL अब इसरो के लिए रॉकेट बनाएगा. इसरो, IN-SPACe और NSIL के साथ SSLV तकनीक हस्तांतरण समझौते पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं. SSLV 500 किलो से कम वजन के उपग्रह लॉन्च करता है. HAL दो साल तक इसरो की मदद से तकनीक सीखेगा. 10 साल तक रॉकेट बनाएगा.

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ये है इसरो का SSLV रॉकेट जिसे अब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड बनाएगा. (File Photo: ISRO) ये है इसरो का SSLV रॉकेट जिसे अब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड बनाएगा. (File Photo: ISRO)

शिवानी शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 10 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:21 PM IST

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाया है. 10 सितंबर 2025 को बेंगलुरु में HAL ने इसरो, इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के साथ स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) की तकनीक हस्तांतरण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह समझौता भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाने और छोटे उपग्रहों के लिए सस्ती लॉन्च सेवाएं प्रदान करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है.

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SSLV क्या है?

स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) इसरो द्वारा विकसित एक तीन-चरण वाला रॉकेट है, जो 500 किलोग्राम से कम वजन वाले छोटे उपग्रहों को निचली पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit - LEO) में लॉन्च करने के लिए बनाया गया है. यह रॉकेट सस्ता, तेज और जरूरत के हिसाब से लॉन्च करने में सक्षम है.

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SSLV छोटे उपग्रहों, जैसे संचार, अर्थ ऑब्जरवेशन और नेविगेशन के लिए उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए आदर्श है. इसकी खासियत यह है कि इसे कम समय में तैयार किया जा सकता है, जो वैश्विक बाजार में छोटे उपग्रहों की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करता है.

समझौते का विवरण

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इस समझौते पर HAL के सीईओ (बेंगलुरु कॉम्प्लेक्स) जयकृष्णन एस., इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) के निदेशक डॉ. ए. राजाराजन, NSIL के चेयरमैन एम. मोहन और IN-SPACe के तकनीकी निदेशक राजीव ज्योति ने हस्ताक्षर किए.

इस दौरान HAL के चेयरमैन डॉ. डीके सुनील, इसरो चेयरमैन डॉ. वी. नारायणन, IN-SPACe के चेयरमैन डॉ. पवन कुमार गोयनका और कई वरिष्ठ वैज्ञानिक मौजूद थे. इस समझौते के तहत...

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  • HAL को SSLV की तकनीक का लाइसेंस मिलेगा. इसमें रॉकेट के डिज़ाइन, निर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण, इंटीग्रेशन, लॉन्च संचालन और उड़ान के बाद विश्लेषण की पूरी जानकारी शामिल है.
  • पहले दो साल (2025-2027) में इसरो HAL को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता देगा. इस दौरान HAL इसरो की मदद से दो SSLV रॉकेट बनाएगा.
  • अगले 10 साल तक HAL स्वतंत्र रूप से SSLV का बड़े पैमाने पर उत्पादन करेगा. भारतीय व वैश्विक ग्राहकों की मांग को पूरा करेगा.
  • HAL की बोली 511 करोड़ रुपये की थी, जिसके कारण उसने अडानी समूह और भारत डायनामिक्स जैसे अन्य प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ दिया.

HAL की भूमिका और जिम्मेदारी

HAL अब न केवल SSLV रॉकेट बनाएगा, बल्कि इसे बाजार में बेचेगा और लॉन्च सेवाएं भी प्रदान करेगा. यह पहली बार है जब भारत ने किसी रॉकेट की पूरी तकनीक को निजी कंपनी (हालांकि HAL एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है) को सौंपा है.

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HAL चेयरमैन डॉ. डीके सुनील ने कहा कि हम IN-SPACe, इसरो और NSIL के साथ मिलकर SSLV तकनीक को अपनाएंगे. स्वदेशी बनाएंगे. इसका व्यवसायीकरण करेंगे. हम छोटे उपग्रह लॉन्च सेवाओं में उच्च गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करेंगे.

HAL की यह पहल न केवल भारत में स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देगी, बल्कि छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs), स्टार्टअप्स और अन्य उद्योगों के लिए नए अवसर भी पैदा करेगी. HAL 2027 से हर साल 6-12 SSLV रॉकेट बनाने की योजना बना रहा है, जिससे भारत और वैश्विक ग्राहकों को सस्ती लॉन्च सेवाएं मिलेंगी.

इस समझौते का महत्व

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: यह समझौता भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. पहले इसरो ही रॉकेट बनाता और लॉन्च करता था, लेकिन अब HAL जैसे संगठन इस जिम्मेदारी को संभालेंगे.
  • वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति: छोटे उपग्रहों की मांग पूरी दुनिया में बढ़ रही है. अनुमान है कि 2032 तक यह बाजार 44 अरब डॉलर का हो जाएगा. SSLV की सस्ती और तेज लॉन्च क्षमता भारत को इस बाजार में मजबूत बनाएगी.
  • स्वदेशी तकनीक: HAL इस तकनीक को पूरी तरह स्वदेशी बनाएगा, जिससे भारत आत्मनिर्भर बनेगा और विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम होगी.
  • नए अवसर: यह समझौता भारतीय स्टार्टअप्स और छोटे उद्यमों के लिए रोजगार और व्यापार के नए रास्ते खोलेगा. HAL अपने आपूर्तिकर्ताओं का नेटवर्क बनाएगा, जिससे छोटी कंपनियां भी अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान दे सकेंगी.

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HAL का अनुभव और भविष्य की योजना

HAL पहले से ही इसरो के लिए पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) के हिस्से बनाता रहा है. चंद्रयान व गगनयान जैसे मिशनों में योगदान दे चुका है. अब SSLV के साथ HAL अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया आयाम जोड़ेगा. इसरो अगले दो साल तक HAL को प्रशिक्षण देगा, ताकि वह स्वतंत्र रूप से रॉकेट बना सके.

2027 के बाद HAL पूरी तरह से SSLV का निर्माण, विपणन और लॉन्च करेगा. HAL के निदेशक (वित्त) बरेण्य सेनापति ने कहा कि यह समझौता HAL के मौजूदा काम को प्रभावित नहीं करेगा. यह एक नया व्यापार क्षेत्र शुरू करेगा, जिससे कंपनी को नई आय मिलेगी.   

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए क्या मायने?

यह समझौता भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को बदलने वाला है. इसरो अब अनुसंधान और बड़े मिशनों (जैसे गगनयान और चंद्रयान) पर ध्यान देगा, जबकि HAL जैसे संगठन व्यावसायिक लॉन्च की जिम्मेदारी संभालेंगे. IN-SPACe के चेयरमैन डॉ. पवन कुमार गोयनका ने कहा कि यह भारत के अंतरिक्ष उद्योग को मजबूत करने और वैश्विक स्तर पर भारत को सैटेलाइट लॉन्च सेवाओं का बड़ा खिलाड़ी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
 

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