चीन ने तिब्बत में यारलुंग जांगबो नदी (जो भारत में ब्रह्मपुत्र कहलाती है) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाने का काम शुरू कर दिया है. इस बांध की लागत करीब 170 अरब डॉलर (लगभग 14 लाख करोड़ रुपये) है. इसे 2030 तक पूरा करने की योजना है.
चीन का दावा है कि ये बांध स्वच्छ ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए बनाया जा रहा है, लेकिन भारत और बांग्लादेश को डर है कि ये उनके लिए बड़ा खतरा बन सकता है. आइए, समझते हैं कि ये बांध क्या है. ये क्यों बन रहा है. भारत-बांग्लादेश के लिए ये क्यों चिंता का विषय है.
क्या है ये मेगा बांध प्रोजेक्ट?
चीन का ये बांध तिब्बत के न्यिंगची इलाके में यारलुंग जांगबो नदी के निचले हिस्से में बन रहा है, जहां नदी ग्रेट बेंड पर एक बड़ा यू-टर्न लेती है. भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है. इस बांध की खास बातें हैं...
यह भी पढ़ें: दो तरह के रेन जोन, हिमालय की दीवार... ऐसे ही नहीं उत्तराखंड-हिमाचल में बारिश मचा रही इतनी तबाही
चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने इस प्रोजेक्ट को सदी का प्रोजेक्ट बताया है. कहा है कि ये तिब्बत में बिजली की कमी दूर करेगा. साथ ही देश के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों को बिजली देगा.
चीन का दावा: स्वच्छ ऊर्जा और विकास
चीन का कहना है कि ये बांध 14वें पंचवर्षीय प्लान (2021-2025) का हिस्सा है. इसके कई फायदे हैं...
यह भी पढ़ें: पिघल रही है हिंदूकुश हिमालय की बर्फ, भारत समेत 6 देशों में भयानक आपदाओं की चेतावनी... स्टडी
चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि इस बांध से भारत और बांग्लादेश को कोई नुकसान नहीं होगा. उन्होंने दावा किया कि चीन ने दशकों तक इसकी स्टडी की है. पर्यावरण व सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाए गए हैं.
भारत और बांग्लादेश की चिंताएं
लेकिन भारत और बांग्लादेश इस बांध को लेकर चिंतित हैं. क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी दोनों देशों के लिए जीवनरेखा है. ये नदी अरुणाचल प्रदेश और असम से होकर बांग्लादेश में बहती है. बंगाल की खाड़ी में मिलती है. इस बांध से कई खतरे हो सकते हैं...
पानी की कमी: अगर चीन बांध में पानी रोकता है, खासकर गैर-मॉनसून महीनों में, तो अरुणाचल और असम में पानी की कमी हो सकती है. बांग्लादेश में 55% सिंचाई ब्रह्मपुत्र पर निर्भर है. अगर नदी का प्रवाह 5% कम हो, तो बांग्लादेश में 15% कृषि उत्पादन घट सकता है.
बाढ़ का खतरा: अगर चीन तनाव के समय बांध से पानी छोड़ता है, तो अरुणाचल और असम में भयानक बाढ़ आ सकती है. अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे “वाटर बम” कहा है, जो नदी के 80% पानी को रोक या छोड़ सकता है.
पारिस्थितिक नुकसान: ब्रह्मपुत्र का गाद (सेडिमेंट) असम और बांग्लादेश के खेतों को उपजाऊ बनाता है. बांध इस गाद को रोक सकता है, जिससे खेती और मछली पालन को नुकसान होगा. बांग्लादेश का सुंदरबन मैंग्रोव जंगल, जो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है भी खतरे में पड़ सकता है.
यह भी पढ़ें: तिब्बत में ग्लेशियर झील टूटने से नेपाल में केदारनाथ जैसी तबाही, देखें PHOTOS
भूकंप का जोखिम: बांध हिमालय के भूकंप-संवेदनशील क्षेत्र में बन रहा है. अगर भूकंप या भूस्खलन से बांध टूटता है, तो भारत और बांग्लादेश में तबाही मच सकती है.
जियोपॉलिटिकल खतरा: भारत को डर है कि चीन इस बांध का इस्तेमाल पानी को हथियार बनाने के लिए कर सकता है, खासकर LAC पर तनाव के समय. 2017 के डोकलाम विवाद में चीन ने ब्रह्मपुत्र का डेटा साझा करना बंद कर दिया था.
चीन की रणनीति: सिर्फ बिजली या कुछ और?
चीन इस बांध को स्वच्छ ऊर्जा का प्रोजेक्ट बता रहा है, लेकिन कई विशेषज्ञ इसे जियोपॉलिटिकल चाल मानते हैं. यारलुंग जांगबो नदी तिब्बत से निकलती है. भारत-बांग्लादेश के लिए जीवनरेखा है. इस बांध से चीन को नदी के प्रवाह पर पूरा नियंत्रण मिलेगा. ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, तिब्बत की नदियों पर नियंत्रण से चीन को भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाने की ताकत मिलती है.
चीन ने पहले भी यारलुंग जांगबो पर छोटे बांध बनाए हैं, जैसे जम हाइड्रोपावर स्टेशन (2015 में शुरू). लेकिन ये नया बांध अपनी विशालता और भारत की सीमा के पास होने की वजह से ज्यादा खतरनाक है.
यह भी पढ़ें: ग्लेशियर पिघलने से फटेंगे ज्वालामुखी, पूरी दुनिया में मचेगी तबाही... वैज्ञानिकों की चेतावनी
भारत का जवाब: सियांग बांध और कूटनीति
भारत इस खतरे को भांप चुका है और जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है...
सियांग बांध: भारत अरुणाचल प्रदेश में 10 गीगावाट का सियांग हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बना रहा है. इसका मकसद चीन के बांध के प्रभाव को कम करना और पानी की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. लेकिन इस प्रोजेक्ट को स्थानीय विरोध और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
कूटनीति: भारत ने एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज्म (ELM) के जरिए चीन से पारदर्शिता और डेटा साझा करने की मांग की है. जनवरी 2025 में भारत ने कहा कि वो अपने हितों की रक्षा करेगा.
क्षेत्रीय सहयोग: भारत और बांग्लादेश मिलकर चीन पर दबाव बना सकते हैं. बांग्लादेश ने भी बांध के प्रभाव की तकनीकी जानकारी मांगी है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि यूएन वाटर कन्वेंशन 1997 के तहत त्रिपक्षीय समझौता हो सकता है.
पारिस्थितिक और सामाजिक प्रभाव
तिब्बत में विस्थापन: चीन ने ये नहीं बताया कि बांध से कितने लोग विस्थापित होंगे. थ्री गॉर्जेस बांध ने 10 लाख लोगों को विस्थापित किया था, और इस बांध का प्रभाव भी बड़ा हो सकता है.
पारिस्थितिकी: तिब्बत का पठार दुनिया के सबसे विविधतापूर्ण इलाकों में से एक है. बांध से नदी का प्राकृतिक प्रवाह रुक सकता है, जिससे मछलियां और वनस्पति खतरे में पड़ सकती हैं.
बांग्लादेश: ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश की 65% पानी की जरूरत पूरी करता है. पानी की कमी से खेती, मछली पालन, और तटीय इलाकों में नमक का घुसपैठ बढ़ सकता है.
चीन की आर्थिक चाल
चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत दिख रहे हैं. इस बांध को आर्थिक बूस्टर के तौर पर देखा जा रहा है. चाइना याजियांग ग्रुप इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहा है. प्रोजेक्ट से सीमेंट, टनल उपकरण और विस्फोटक सामग्री की मांग बढ़ेगी, जिससे चीनी शेयर बाजार में उछाल आया. CSI कंस्ट्रक्शन इंडेक्स 7 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया.
लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ आर्थिक विकास के लिए है, या चीन दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है? बांध की जगह LAC के पास होना और चीन का डेटा साझा न करना भारत के लिए चिंता का कारण है.
आगे क्या?
ये बांध 2030 के दशक में शुरू होगा, लेकिन इसके प्रभाव अभी से दिखने लगे हैं. भारत और बांग्लादेश को चाहिए कि वो...
ऋचीक मिश्रा