नंदा देवी पर मौजूद हिरोशिमा परमाणु बम का एक तिहाई न्यूक्लियर मैटेरियल... क्या गंगा को खतरा है?

1965 में सीआईए ने नंदा देवी चोटी पर चीन की जासूसी के लिए प्लूटोनियम से चलने वाला न्यूक्लियर जनरेटर लगाने की कोशिश की. बर्फीले तूफान में उपकरण छोड़ना पड़ा. हिमस्खलन ने इसे बहा लिया. आज भी गायब है. गंगा के स्रोतों में प्रदूषण का खतरा बना हुआ है. अमेरिका चुप है, भारत में चिंता बढ़ रही है.

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चोपटा घाटी से दिखती त्रिशूल, नंदा देवी और चौखम्बा पर्वत. (File Photo: Getty) चोपटा घाटी से दिखती त्रिशूल, नंदा देवी और चौखम्बा पर्वत. (File Photo: Getty)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:28 PM IST

हिमालय की ऊंची चोटी नंदा देवी पर 1965 में एक गुप्त मिशन चल रहा था. अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने अमेरिकी और भारतीय पर्वतारोहियों की टीम भेजी थी. उनका मकसद चीन पर जासूसी करना था. चीन ने 1964 में अपना पहला परमाणु बम टेस्ट किया था, जिससे अमेरिका चिंतित था.

टीम ने चोटी पर एक खास उपकरण लगाना था – SNAP-19C नाम का पोर्टेबल न्यूक्लियर जनरेटर. ये प्लूटोनियम से चलता था और एंटीना को बिजली देता था. इससे चीन के मिसाइल टेस्ट के सिग्नल पकड़े जाते. ये डिवाइस करीब 50 पाउंड का था. इसमें प्लूटोनियम-238 और 239 था – नागासाकी बम में इस्तेमाल हुए प्लूटोनियम का एक तिहाई हिस्सा.

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मिशन कैसे शुरू हुआ?

मिशन की शुरुआत एक कॉकटेल पार्टी से हुई. अमेरिकी एयरफोर्स चीफ जनरल कर्टिस लेमे ने नेशनल ज्योग्राफिक के फोटोग्राफर बैरी बिशप से बात की. बिशप एवरेस्ट फतह कर चुके थे. सीआईए ने उन्हें टीम लीडर बनाया. उन्होंने अमेरिकी क्लाइंबर्स जैसे जिम मैकार्थी को चुना. भारतीय टीम की कमान कैप्टन एमएस कोहली के पास थी, जो एवरेस्ट फतह करने वाली भारतीय टीम के लीडर थे.

मिशन को छिपाने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च का बहाना बनाया गया. लेकिन अक्टूबर 1965 में चोटी के करीब पहुंचते ही मौसम खराब हो गया. बर्फीला तूफान आया. कैप्टन कोहली ने बेस कैंप से रेडियो पर आदेश दिया कि उपकरण छोड़कर सभी नीचे आ जाएं, जान बचाने के लिए. डिवाइस को बर्फ की एक गुफा में बांधकर छोड़ दिया गया.

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डिवाइस गायब हो गया

1966 में वापस लौटने पर वो जगह ही गायब थी. हिमस्खलन से सब बह गया. कई सर्च मिशन हुए, लेकिन डिवाइस नहीं मिला. कैप्टन कोहली कहते थे कि अगर खतरे का पता होता तो कभी नहीं छोड़ते. जिम मैकार्थी, आखिरी जीवित अमेरिकी क्लाइंबर, कहते हैं कि वो पहले ही चेतावनी दे चुके थे.

खतरा क्या है?

नंदा देवी के ग्लेशियर गंगा नदी को पानी देते हैं. लाखों लोग गंगा पर निर्भर हैं. प्लूटोनियम बहुत जहरीला है – कैंसर, हड्डी और फेफड़ों की बीमारियां पैदा कर सकता है. वैज्ञानिक कहते हैं कि पानी इतना ज्यादा है कि प्रदूषण फैलने की संभावना कम है, लेकिन अगर डिवाइस टूटा तो लोकल लोगों को खतरा. सबसे बड़ा डर 'डर्टी बम' का – आतंकवादी इस्तेमाल कर सकते हैं.

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राज खुला और कवर-अप

1978 में एक अमेरिकी पत्रकार ने स्टोरी ब्रेक की. भारत में हंगामा मचा. प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जांच कमिटी बनाई, लेकिन अमेरिका से कहा कि बात छिपाएं. अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने देसाई को धन्यवाद दिया कि मामला शांत किया. दोनों ने मिलकर बात दबाई.

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आज भी चिंता

जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. 2021 में एक बड़ा हिमस्खलन आया, जिसमें 200 लोग मारे गए. कुछ लोग डिवाइस को जिम्मेदार ठहराते हैं. भारतीय सांसद और लोकल लोग जवाब मांग रहे हैं. कैप्टन कोहली (जो हाल में गुजर गए) कहते थे कि ये उनकी जिंदगी का दुखद अध्याय है. सीआईए आज भी चुप है. ये कोल्ड वॉर का एक अदृश्य खतरा है, जो हिमालय की बर्फ में छिपा है. अगर डिवाइस मिला तो बड़ा खतरा, वरना अनिश्चितता बनी रहेगी.

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