Makar Sankranti 2025: इस बार क्यों खास है मकर संक्रांति? ये उपाय करने से चमक सकता भाग्य

Makar Sankranti 2025: इस बार सूर्य 14 जनवरी को प्रातः 09.03 पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसलिए 14 जनवरी को ही संक्रांति मनाना उत्तम होगा. पुण्यकाल में संक्रांति मनाना श्रेष्ठ माना गया है. इसलिए 14 जनवरी को प्रातः 09.03 से सायं 05.45 तक स्नान, ध्यान और दान का प्रयास करें.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 10:00 AM IST

Makar Sankranti 2025: आज मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है. सूर्य का किसी राशि विशेष पर भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है. सूर्य हर माह में राशी का परिवर्तन करता है, इसलिए कुल मिलाकर वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं, लेकिन दो संक्रांतियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं. मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति. सूर्य जब मकर राशि में जाते हैं, तब मकर संक्रांति होती है. मकर संक्रांति से अग्नि तत्व की शुरुआत हो जाती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है. इसलिए इस समय किए गए नामजप और दान का फल अनंत होता है.

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मकर संक्रांति का ज्योतिष से संबध
सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है. कहते हैं इसी त्योहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं. इसी समय धनु खरमास समाप्त होता है. इसलिए यहां से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति खराब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं. जहां परिवार में रोग कलह और अशांति हो वहां पर रसोई घर में नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है.

इस बार कयों खास है मकर संक्रांति?
इस बार सूर्य 14 जनवरी को प्रातः 09.03 पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसलिए 14 जनवरी को ही संक्रांति मनाना उत्तम होगा. पुण्यकाल में संक्रांति मनाना श्रेष्ठ माना गया है. इसलिए 14 जनवरी को प्रातः 09.03 से सायं 05.45 तक स्नान, ध्यान और दान का प्रयास करें. इस संक्रांति पर सूर्य और चंद्र, समसप्तक होंगे. यह स्थिति इस पर्व को और भी ज्यादा शुभ बना रही है. शनिदेव अपनी स्वयं की राशि कुंभ में और सूर्य शनि की राशि मकर में विद्यमान रहेंगे. इसलिए इस बार शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है.

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मकर संक्रांति को क्या करें?
प्रातः काल स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य दें. इसके बाद सूर्यदेव और शनिदेव के मंत्रों का जाप करें.  सम्भव हो तो गीता का पाठ भी करें. पुण्यकाल में नए अन्न, कम्बल और घी का दान करें. इस बार तिल और गुड़ का दान करना भी विशेष शुभ होगा. साथ में इस बार एक पीपल का पौधा भी लगवा देना चाहिएय. भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनाएं. भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें.

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