राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह-समझौते के लिए सोमवार को दिल्ली में बैठक होनी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों नेताओं से अलग-अलग मुलाकात करेंगे. बैठक पायलट के 'अल्टीमेटम' खत्म होने की मियाद से दो दिन पहले हो रही है. ऐसे में देखना है कि खड़गे क्या पायलट को उनका आंदोलन स्थगित करने और पार्टी के लिए प्रचार करने के रजामंद करेंगे या फिर गहलोत को समझा बुझाकर बीच का रास्ता निकालेंगे?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई में दिल्ली पार्टी कार्यलय में राजस्थान नेताओं की बैठक बुलाई गई है. बैठक में राजस्थान के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, सीएम अशोक गहलोत, प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, सचिन पायलट को बुलाया गया है. इसके अलावा राजस्थान को दोनों सहप्रभारी भी बैठक में शिरकत करेंगे. राजस्थान के विवाद पर पूछे गए सवाल पर खड़गे ने कहा कि सीएम गहलोत और पायलट से मुलाकात होगी. उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं से मुलाकात के बाद ही कुछ बात होगी.
माना जा रहा है कि बैठक के जरिए राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले गहलोत और पायलट के बीच चल रही खींचतान को खत्म कराने के लिए कोई फॉर्मूला निकालना है.पायलट की जनसंघर्ष यात्रा के बाद गहलोत सरकार को दिए अल्टीमेटम का भी समय पूरा होना में 2 दिन बचे हैं. उन्होंने कहा था कि अगर इस महीने के अंत तक राज्य सरकार से की गई तीन मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वह राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे. ऐसे में दिल्ली में होने वाली बैठक काफी अहम बताई जा रही है.
वहीं दूसरी ओर संभावनाएं जताई जा रही हैं कि पार्टी आज सचिन पायलट को अहम भूमिका सौंप सकती है, जिसकी चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में अधिक हो रही है. मीटिंग के बाद पार्टी आलाकमान क्या फैसला लेता है यह देखना होगा. बैठक में पायलट को उनका आंदोलन स्थगित करने और पार्टी के लिए प्रचार करने को कह सकती है. पायलट समर्थक चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव बाद नेतृत्व परिवर्तन का वादा करें तो बात बन सकती है.
सचिन पायलट अब और इंतजार नहीं करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ गहलोत खेमा सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है. उसका कहना है कि पायलट जिस तरह से गहलोत को टारगेट कर रहे हैं. वो विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
पायलट-गहलोत में संतुलन बनेगा?
कांग्रेस कांग्रेस हर संभव कोशिश में है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच संतुलन बनाकर राजस्थान चुनाव में उतरे ताकि पार्टी को सियासी नुकसान न हो सके. इसके लिए पहले सचिन पायलट को संतुष्ट कर शांत करने की कोशिश है. ऐसे में गहलोत भले ही पायलट के डिमांड पर एक्शन न ले रहे हो, लेकिन अपने रुख में नरमी जरूर लाए हैं. गहलोत ने कहा कि हम मानते हैं कि पूरी कांग्रेस एकजुट होकर लड़ेंगे और हम चुनाव जीतकर आएंगे.
पायलट ने खोल रखा है मोर्चा
बता दें कि सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार और पेपर लीक मामले को लेकर खुलकर मोर्चा खोल रखा है.पायलट ने अपनी मांगों में से एक के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए कथित घोटालों की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. 31 मई तक गहलोत सरकार पर पायलट की मांगों पर एक्शन लेने का दबाव है. साथ ही पायलट और उनके खेमे के कांग्रेस विधायकों ने एलान कर रखा है कि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो प्रदेश भर में गांव-ढाणी तक जाकर आंदोलन करेंगे. इस तरह से पायलट के विधायकों ने स्पष्ट कर रखा है कि अब याचना नहीं रण होगा.
कर्नाटक की तरह राजस्थान में सुलह होगी?
मल्लिकार्जुन खड़गे ने जिस तरह से कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को एक साथ लाने में सफल रहे हैं, उसी तरह से राजस्थान में फॉर्मूले तलाशना होगा. कांग्रेस अशोक गहलोत में वर्तमान देख रही है तो सचिन पायलट को भविष्य का नेता मान रही. इस तरह से कांग्रेस दोनों ही नेताओं को साधकर चलना चाहती है, लेकिन न गहलोत कोई समझौता करने के मूड में है और न ही पायलट अपने एजेंडे से पीछे हट रहे हैं. राजस्थान में छह महीने के बाद विधानसभा चुनाव है. ऐसे ही अगर खींचतान जारी रहा तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.
कर्नाटक चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस बात के लिए आमादा है कि विवाद खत्म होना चाहिए. अब तक सीएम गहलोत ने सभी निर्णय एकतरफा किए हैं और इससे पार्टी में कार्यकर्ता और नेता बट रहे हैं. यह स्थिति पार्टी के लिए हितकारी नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई को अजमेर आ रहे हैं, ऐसे में विवाद बना रहा तो प्रतिपक्ष और पीएम मोदी छींटाकशी कर आम लोगों के बीच कांग्रेस की छवि को खराब करेंगे.
कांग्रेस के सामने राजस्थान में अपनी सरकार को बचाए रखने की चुनौती है, क्योंकि सूबे में हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है. राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है, जिसके चलते बीजेपी अपनी वापसी की उम्मीद लगाए हुए है. ऐसे में कांग्रेस पूरी कोशिश में जुटी है कि गहलोत और पायलट को साधकर रख सके, क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले एकता नहीं रहने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने की संभावना को देखते हुए अब पार्टी नेतृत्व चाहता है कि किसी तरह दोनों के बीच आपसी मतभेद समाप्त किए जाए.
सीएम गहलोत को हाईकमान यह स्पष्ट तौर पर कह सकता है कि अपने कदम पीछे खींचे. राजस्थान विधानसभा के चुनाव में टिकट बांटने के अधिकार को लेकर भी कोई नीति तय की जाएगी. फिलहाल सचिन पायलट को नई जिम्मेदारी देने का तो निर्णय कर लिया गया है और जून महीने के प्रथम सप्ताह में मंत्रिमंडल का विस्तार किए जाने की चर्चा है. ऐसे में पायलट गुट के कुछ नेताओं को जगह मिल सकती है. मंत्री किस गुट के कितने होंगे इसका निर्णय आपसी समन्वय से केंद्रीय नेतृत्व की अध्यक्षता में तय किया जाएगा. इसके जरिए कांग्रेस जातीय और सियासी समीकरण साधने का दांव चल सकती है?
कुबूल अहमद