उपेंद्र कुशवाहा चुनावों से पहले शक्ति प्रदर्शन करते रहे हैं. कभी मानव श्रृंखला बनाकर, तो कभी रैली करके. 5 सितंबर की पटना रैली के पीछे भी उपेंद्र कुशवाहा का मकसद अपनी ताकत का एहसास कराना ही है - और ऐसा करने के लिए उपेंद्र कुशवाहा डबल अटैक कर रहे हैं - असली मकसद जो भी हो, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने जिस तरह SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण और राहुल गांधी पर बयान दिया है, वो तो बिल्कुल बीजेपी और एनडीए की पॉलिटिकल लाइन के खिलाफ जाता है.
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने रैली का मौका भी काफी सोच समझकर चुना है. ये संयोग है कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस होता है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के लिए ये मौका बिहार के लेनिन कहे जाने वाले जगदेव प्रसाद का शहादत दिवस भी है. शहीद जगदेव प्रसाद कुशवाहा समाज के बड़े नेता रहे हैं, उनके शहादत दिवस के मौके पर बिहार में पहले भी रैलियां होती रही हैं.
पटना रैली का मुद्दा परिसीमन है. उपेंद्र कुशवाहा परिसीमन को लेकर काफी दिनों से मुहिम चला रहे हैं. परिसीमन पर 25 मई को पहली रैली रोहतास के बिक्रमगंज में हुई थी. उसके बाद मुजफ्फरपुर और गया में रैलियां हुईं. उपेंद्र कुशवाहा परिसीमन के मुद्दे पर लोगों के बीच पहुंच रहे हैं, और इसी बहाने केंद्र की बीजेपी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है.
एनडीए में सीटों का मुख्य बंटवारा तो बीजेपी और जेडीयू के बीच होने वाला है, बाकी सीटें अन्य सहयोगियों में बांट दी जाएंगी. जेडीयू के सीनियर नेता केसी त्यागी का कहना है कि ये बीजेपी का आंतरिक मामला है, जिससे जेडीयू का कोई लेना देना नहीं है. केसी त्यागी ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टियों के बीच सीटों का तालमेल बीजेपी को अपने हिस्से से करना है.
परिसीमन की पैरवी, SIR पर सवाल
RLM नेता उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि बिहार में 50 साल से परिसीमन नहीं हुआ. अगर समय पर परिसीमन हुआ होता तो आज बिहार में लोकसभा सीटों की संख्या 40 नहीं बल्कि 60 होती. जैसे चिराग पासवान बीते दिनों अलग अलग तरह से दबाव बनाने की कोशिश करते देखे गए हैं, उपेंद्र कुशवाहा की रैली और बयान भी ऐसे ही इशारे कर रहे हैं.
ध्यान देने वाली चीज ये है कि उपेंद्र कुशवाहा भी चुनावी मुद्दा ही उठा रहे हैं, लेकिन एसआईआर पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने राहुल गांधी, वोटर अधिकार यात्रा पर तो टिप्पणी की ही है, एसआईआर पर भी राय जाहिर की है. उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि चुनाव आयोग को बिहार में एसआईआर के लिए और समय देना चाहिए था. क्योंकि, लोगों को इससे परेशानी का सामना करना पड़ेगा. साथ ही, उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि एसआईआर के मुद्दे पर निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा से कांग्रेस और राहुल गांधी को फायदा होगा.
वोटर अधिकार यात्रा को तो उपेंद्र कुशवाहा ने फेल बताया है, लेकिन वो ये भी मानते हैं कि राहुल गांधी को लंबे समय बाद बिहार में पहचान मिली है - आखिर उपेंद्र कुशवाहा एसआईआर पर सवाल खड़ा करके, और राहुल गांधी के फायदे की बात करके क्या बताना और जताना चाहते हैं.
उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि जनसंख्या को देखते हुए चुनाव आयोग को एसआईआर की प्रक्रिया एक या दो साल पहले शुरू कर देना चाहिए था... बिहार ऐसा राज्य है जहां बहुत से लोग देश के अलग अलग हिस्सों में काम कर रहे हैं, लेकिन वे वोटर बिहार के ही हैं... बिहार में कई ऐसे लोग भी हैं जिनके पास चुनाव आयोग के बताए हुए दस्तावेज नहीं हैं.
वोटर अधिकार यात्रा को फेल बताना तेवर थोड़ा नरम दिखाने की कोशिश लगती है, लेकिन राहुल गांधी को फायदा मिलने की बात तो बीजेपी को हजम होने से रही. देखा जाए तो एसआईआर पर भी उपेंद्र कुशवाहा वही लाइन ले रहे हैं, जो राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की - फर्क बस ये भर है कि उपेंद्र कुशवाहा के मुंह से वोट चोरी जैसी बात नहीं सुनाई दे रही है.
उपेंद्र कुशवाहा को फिर विकल्प की तलाश तो नहीं
उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल एनडीए में ही हैं. लेकिन, अचानक वो एनडीए की लाइन तोड़ते नजर आ रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी बिहार में नीतीश कुमार वाली लाइन की ही राजनीति करते हैं. नीतीश जितने तो नहीं, लेकिन पाला बदलने में वो भी कम नहीं है. रिकॉर्ड तो नीतीश कुमार के नाम ही दर्ज है, लेकिन वो भी एनडीए एक बार छोड़कर दोबारा लौटे हैं.
नीतीश कुमार से अक्सर उपेंद्र कुशवाहा की ठन जाने की वजह, उनका भी मुख्यमंत्री पद का दावेदार होना है. लेकिन, जब दाल नहीं गलती तो वो नीतीश कुमार को नेता भी मान लेते हैं, और साथ खड़े हो जाते हैं. ये सिलसिला भी ज्यादा नहीं चलता, और एक दिन साथ छूट ही जाता है.
पाला बदलने के हिसाब से देखें तो 2010 में उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में हुआ करते थे. 2015 में वो बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे, और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन कर तीसरा मोर्चा बनाया था. 2024 का लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी के साथ की बदौलत ही वो राज्यसभा पहुंच पाए हैं - आगे का इरादा क्या है, अभी तो नहीं मालूम लेकिन लक्षण तो अलग ही नजर आ रहे हैं.
मृगांक शेखर