तेज प्रताप के लिए महुआ का नतीजा जितना मायने रखता है, तेजस्वी यादव के लिए राघोपुर का रिजल्ट उतना मायने नहीं रखता. तेजस्वी यादव अगर बिहार चुनाव नहीं जीत पाते तो राघोपुर में कुछ भी हो क्या फर्क पड़ता है.
राघोपुर गवांकर भी तेजस्वी यादव अगर महागठबंधन को सत्ता दिला देते हैं, तो वो भी ममता बनर्जी के बराबर ही खुश होंगे. 2021 के चुनाव में ममता बनर्जी नंदीग्राम में बीजेपी के शुभेंदु अधिकारी से चुनाव हार गई थीं, लेकिन पश्चिम बंगाल में सरकार तो तृणमूल कांग्रेस की ही बनी.
तेजस्वी यादव को लेकर तेज प्रताप ने तो पहले ही अपना इरादा जाहिर कर दिया था. तेजस्वी यादव को साफ तौर पर संदेश दे दिया था कि अगर महुआ पर टेढ़ी नजर डाली तो राघोपुर में गदर मचा देंगे. जब तेजस्वी यादव ने महुआ जाकर मुकेश रौशन के लिए वोट मांगा, तो तेज प्रताप ने भी वैसा ही रिएक्शन दिया. नतीजे क्या होंगे, अभी किसे मालूम - लेकिन, राघोपुर और महुआ की लड़ाई और नतीजा दोनों ही लालू यादव के परिवार के लिए बहुत मायने रखते हैं.
ये भी मानकर चला जा रहा है कि चुनाव खत्म हो जाने के बाद तेज प्रताप के दिन वैसे तो नहीं रहने वाले, जैसे अभी चल रहे हैं. संघर्ष तो कभी न खत्म होने वाली चीज है, लेकिन परिवार के कुछ सदस्य भी साथ हों, तो परिवार के भीतर भी संघर्ष आसान हो जाता है. अभी तो परिवार और पार्टी से बेदखल तेज प्रताप अकेले पड़े हुए हैं - ले देकर मां का आशीर्वाद और बहनों की शुभकामनाओं का ही आसरा है.
चुनावी सियासत से संबंधित सारी बातों का महत्व अपनी जगह है, लेकिन ये भी सच है कि तेज प्रताप का भविष्य भी बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के प्रदर्शन पर ही निर्भर है.
1. अगर तेजस्वी यादव ने सरकार बना लेते हैं
तेजस्वी यादव के राघोपुर से चुनाव जीतने से भी ज्यादा जरूरी है, राष्ट्रीय जनता दल का इस बार ही सत्ता में लौटना. ऐसा हुआ तभी लालू यादव के राजनीतिक विरासत का भविष्य सुरक्षित है. राष्ट्रीय जनता दल भी तभी बचा और बना रहेगा. अगर
ऐसा नहीं हुआ तो परिवार के झगड़े का पूरा असर पार्टी पर पड़ेगा.
ये तो आसानी से समझा जा सकता है कि चुनाव की वजह से ही लालू यादव कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते होंगे. और, चुनाव खत्म होने तक तेज प्रताप यादव के प्रति किसी तरह का नरम रुख दिखाना भी उनके लिए मुश्किल लग रहा होगा. लालू परिवार के करीबी लोग बताते हैं कि तेज प्रताप यादव को को माता पिता दोनों का बराबर प्यार मिलता है. राबड़ी देवी के बयान तो सबने देखा ही है, लालू यादव की चुप्पी राजनीतिक मजबूरी है.
अगर सिर पर चुनाव नहीं होता, तो जरूरी नहीं कि तेज प्रताप यादव पर भी ऐसा एक्शन हुआ होता. न तो तेज प्रताप को पसंद नहीं करने वाले कुछ बोल पाते, न ही लालू यादव किसी की बात सुनते. कुछ दिन बवाल होता, और फिर लोग भूल गए होते. अपने अंदाज में डांट फटकार कर लालू यादव सब रफा-दफा कर चुके होते - लेकिन, चुनाव सामने हो तो भला कौन मुसीबत मोल ले.
तेजस्वी यादव की जीत ही तेज प्रताप यादव की घर वापसी की गारंटी है. लेकिन, पहले से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला है. तेज प्रताप को कुछ भी ज्यादा तभी मिल सकता है, जब तेजस्वी चुनाव में नहीं चल पाते.
2. अगर आरजेडी बहुमत से फिर चूक जाए
ये ठीक है कि तेज प्रताप यादव अभी बाहर हैं, लेकिन लालू परिवार और पार्टी में उनके हमदर्दों की कोई कमी नहीं है. राबड़ी देवी तो दबी जुबान में संकेत दे ही चुकी हैं. और, बहनें भी तभी तक खामोश हैं जब तक तेजस्वी यादव का एकछत्र राज है. मीसा भारती को भी राजनीति करनी है, और रोहिणी आचार्य की भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है.
आरजेडी में अभी तो यही हाल है कि तेजस्वी यादव की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है. बेशक लालू यादव सर्वेसर्वा हैं, लेकिन बेटे को विरासत सौंप देने के बाद अधिकारों की सीमाएं भी तो तय हो जाती हैं. समाज में ही देखिए, जिन मां-बाप ने जीते जी संपत्ति बेटे-बहू के नाम कर दी, उनका क्या हाल होता है. और, ये जानने के लिए आपको कहीं दूर जाने या गूगल करने की जरूरत नहीं है, बस ध्यान से अपने आस पड़ोस और रिश्तेदारों के घर की तरफ नजर डालिए. सब कुछ पता चल जाएगा. पता न भी चले तो महसूस तो कर ही सकते हैं.
राजनीति भी हमारे समाज का ही हिस्सा है. बेटे बेटियों के साथ फर्क समाज की ही तरह राजनीतिक दलों में भी देखने को मिलता. कांग्रेस से लेकर राष्ट्रीय जनता दल तक मिसाल हैं. मीसा भारती आरजेडी में तेजस्वी यादव से काफी पहले से एक्टिव हैं, लेकिन दबदबा तेजस्वी यादव का है.
लेकिन, तेजस्वी यादव का ये दबदबा तभी तक है, जब तक आरजेडी का प्रदर्शन अपेक्षा अनुसार बना रहता है. शानदार प्रदर्शन से कम तेजस्वी यादव के लिए कुछ भी बेकार है.
3. अगर तेज प्रताप महुआ से जीत जाते हैं
तेज प्रताप के लिए महुआ का नतीजा सबसे ज्यादा मायने रखता है. राघोपुर तो लालू यादव और राबड़ी देवी का गढ़ ही रहा है, महुआ से तेज प्रताप यादव को सुरक्षित सीट मानकर ही 2015 में चुनाव लड़ाया गया था. 2020 में उनकी सीट बदलकर हसनपुर से टिकट दे दिया गया, लेकिन पार्टी और परिवार से बेदखल कर दिए जाने के बाद तेज प्रताप ने महुआ से चुनाव लड़ने का फैसला किया.
अब अगर तेज प्रताप यादव चुनाव जीत जाते हैं तो खुद को साबित कर देंगे. ये भी साबित हो जाएगा कि तेजस्वी यादव को लालू यादव की जितनी जरूरत है, तेज प्रताप यादव को नहीं है. क्योंकि, जो भी करेंगे अपने दम पर ही करेंगे. और, सिर्फ अपने दम पर ही क्यों तेजस्वी यादव के विरोध के बावजूद माना जाएगा. लालू परिवार के साथ ने देने के बावजूद जीत की अपनी अलग ही अहमियत होगी.
फिर तो ये भी सवाल उठेगा कि लालू यादव की राजनीतिक विरासत के हकदार तेजस्वी यादव ही क्यों होने चाहिए? ऐसे में तेज प्रताप यादव का चुनाव जीत जाना तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ा झटका होगा. तेजस्वी यादव के साथ तो पूरा परिवार खड़ा रहा है, लेकिन तेज प्रताप यादव तो अपनी दादी की तस्वीर लेकर नामांकन दाखिल करने गए थे.
तेज प्रताप की महुआ से जीत लालू यादव के परिवार और पार्टी को बहुत बारी पड़ सकती है. पारिवार में संतुलन तो बदलेगा ही, पार्टी के समीकरण भी बदल जाएंगे - और तेज प्रताप यादव का तेवर तो यही बताता है कि वो बख्शने वाले नहीं हैं.
मृगांक शेखर