टैरिफ बढ़ाने को लेकर अमेरिका और चीन के बीच एक-दूसरे से आगे निकलने की रेस चल रही है. वॉशिंगटन की ओर से शुरुआती 34 फीसदी टैरिफ़ लगाए जाने के बाद बीजिंग ने अमेरिकी सामानों पर भी 34 फीसदी ड्यूटी लगाकर जवाब दिया. गतिरोध को बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब चीन पर अतिरिक्त 50 फीसदी टैरिफ़ लगा दिया है, जिससे कुल टैरिफ़ 104 फीसदी हो गया है. लेकिन बीजिंग पीछे नहीं हट रहा है और वह आखिर तक लड़ने के लिए कमर कस चुका है.
क्या कहते हैं चीनी एक्सपर्ट
चीन का मानना है कि वह मनोवैज्ञानिक तौर पर और नीतिगत मामलों को लेकर पूरी तरह से तैयार है. अमेरिका में चीन का निर्यात वैसे भी गिर गया है, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का सिर्फ 2.3 फीसदी है. इसका मतलब यह है कि इस टैरिफ वॉर में चीन नहीं बल्कि अमेरिका को ज़्यादा नुकसान होगा. तर्क दिया जा रहा है कि चीन के जवाबी टैरिफ ने पहले ही अमेरिकी शेयर बाज़ार को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे ट्रंप 2.0 की कमज़ोरी उबर कर सामने आई है.
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हालांकि, चीन में हर कोई इस बात से सहमत नहीं है कि एक-दूसरे के खिलाफ ट्रेड वॉर अच्छी सोच है. हांगकांग के चीनी विश्वविद्यालय के झेंग योंगनियान और पेकिंग विश्वविद्यालय के नेशनल स्कूल ऑफ डेवलपमेंट के प्रोफेसर लू फेंग जैसे एक्सपर्ट ने चीनी सरकार से सोवियत संघ की गलतियों को न दोहराने और अमेरिका के साथ 'नेगेटिव सम गेम' में शामिल न होने की अपील की है. वास्तव में वे इस संकट को चीन के लिए एक मौके के तौर पर देखते हैं, जिससे वह अपनी पुरानी समस्याओं जैसे अपर्याप्त घरेलू मांग और कमजोर खपत के साथ-साथ ट्रेड सरप्लस में ज्यादा वृद्धि को दूर करने के लिए घरेलू सुधार कर सकता है.
शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स के तहत 'ट्रंप टैरिफ पीड़ितों का विश्वव्यापी गठबंधन' स्थापित करने की भी बात हुई. हालांकि, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि जवाबी उपायों के मुद्दे पर चीन के लिए देशों को एकजुट करने के लिए संगठित करना मुश्किल होगा.
ग्लोबल वॉर या चीन-अमेरिका जंग?
रेसिप्रोकल टैरिफ के ऐलान के बाद से ही चीन के रणनीतिक हलकों में निराशा का माहौल है. ऐसा लगता है कि ट्रंप के टैरिफ के मौजूदा दौर के दायरे ने उन्हें चौंका दिया है. यह चिंता का विषय है कि ट्रंप प्रशासन ने एक ओर तो चीन पर सीधे हाई टैरिफ लगाए हैं, दूसरी ओर उसने अतिरिक्त उपाय किए हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से चीन के हितों को प्रभावित कर सकते हैं.
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अमेरिका में चीनी सामानों पर औसत टैरिफ रेड में काफी वृद्धि हुई है, जो 13 से बढ़कर 34 प्रतिशत हो गई है. यह यूरोपीय संघ (20 फीसदी), जापान (24 फीसदी), दक्षिण कोरिया (25 फीसदी) और अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत अधिक है. यह टैक्स रेट वियतनाम (46 फीसदी), कंबोडिया (49 फीसदी) और थाईलैंड (36 फीसदी) के बाद दूसरे स्थान पर है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीनी सामानों पर अमेरिकी टैरिफ तीन फीसदी से बढ़कर लगभग 20 फीसदी हो गया था. जब से ट्रंप व्हाइट हाउस में वापस आए हैं, उन्होंने दो बार 10 फीसदी टैरिफ लगाया है. अब रेसिप्रोकल टैरिफ को जोड़ते हुए चीन पर अमेरिकी टैरिफ 104 फीसदी तक पहुंच गया है.
अमेरिका ने दिया दोहरा झटका
ट्रंप ने चीन से आयात के लिए $800 ड्यूटी फ्री की रियायत को भी खत्म करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर भी साइन किए, जो उसकी तेजी से बढ़ती क्रॉस बॉर्डर ई-कॉमर्स इंडस्ट्री के लिए एक झटका है. इतना ही नहीं, TikTok अमेरिका-चीन संबंधों में एक टकराव का बिंदु बन गया. चीनी पक्ष ने अमेरिका पर TikTok मुद्दे पर एक समझौते को पक्का करने के लिए टैरिफ का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है.
इसके अलावा ट्रंप अतिरिक्त कदम भी उठा रहे हैं, 'जिनका टारगेट दुनिया है, लेकिन असल में निशाने पर चीन है', जो कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था पर हावी होने के लिए अमेरिका और चीन के बीच एक सीक्रेट वॉर का हिस्सा है. उदाहरण के लिए चीनी ऑब्जर्वर्स का तर्क है कि वियतनाम पर 46 फीसदी टैरिफ, थाईलैंड पर 36 फीसदी और कंबोडिया पर 49 फीसदी टैरिफ का मकसद चीनी सप्लाई चेन के पार्टनर्स को चोट पहुंचाना है. ये देश चीनी कंपनियों के लिए अपनी विदेशी उत्पादन क्षमता को ट्रांसफर करने की एक अहम जगह हैं. उन पर हाई टैरिफ अब चीनी कंपनियों को लागत में वृद्धि का सामना करने के लिए मजबूर करेंगे.
इसी तरह दक्षिण कोरिया (25 फीसदी) और जापान (24 फीसदी) पर टैरिफ चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री चेन पर बुरा असर डाल सकते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से चीन के कारोबार में बाधा पहुंचा सकते हैं. इस बीच चीनी पक्ष का तर्क है कि यूरोपीय संघ (20 फीसदी), भारत (26 फीसदी) और अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर टैरिफ बढ़ाकर, अमेरिका इन बाजारों के साथ चीन के जुड़ाव को कमजोर करने और वैश्विक व्यापार प्रणाली में उसकी जगह को कम करने की कोशिश कर रहा है.
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इसके अलावा, मेक्सिको और कनाडा ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ लिस्ट में शामिल नहीं थे, चीन पहले से ही कनाडा के साथ ट्रेड वॉर में है, जिसने चीन निर्मित इलेक्ट्रिक व्हीकल और स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर 100 और 25 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगाई है. यह पिछले हफ्तों में कनाडा पर ट्रंप के टैरिफ के बाद आया था. आयातित ऑटोमोबाइल और पार्ट्स पर 25 फीसदी टैरिफ को लेकर बीजिंग में चर्चा है कि मेक्सिको को चीन और अमेरिका के बीच चुनने के लिए मजबूर किया जाएगा. ठीक उसी तरह जैसे पनामा को पनामा नहर मामले में मजबूर किया गया था. मेक्सिको, अमेरिका के लिए सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल सप्लायर है और अमेरिकी बाजार में चीन के री-एक्सपोर्ट ट्रेड के प्रमुख नोड्स में से एक है.
चीन पर क्या हो सकता है असर
चीन को एक्सपोर्ट और री-एक्सपोर्ट ट्रेड (विशेष रूप से आसियान और मैक्सिको के जरिए री-एक्सपोर्ट की बढ़ती लागत) के दोहरे दबाव का सामना करना पड़ेगा. नतीजतन, विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल के लिए पांच फीसदी जीडीपी ग्रोथ टारगेट को इससे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
इस नजरिए से चीन की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. वर्तमान में चीन के घरेलू बाजार में ओवर कैपिसिट की समस्या, उद्योग में उथल-पुथल, गंभीर रोजगार की स्थिति और डिफ्लेशन है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चीनी घरेलू बाजार अतिरिक्त क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर सकता है, जिसके लिए चीनी कंपनियां निर्यात पर निर्भर हैं और विदेशों में अपने व्यापार का विस्तार करने के लिए उत्सुक हैं. इस तरह, चिंता है कि ट्रंप का ग्लोबल ट्रेड वॉर चीनी कंपनियों के विदेश जाने की संभावनाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा.
फुडान विश्वविद्यालय में एसोसिएट रिसर्चर लियू डियान जैसे चीनी जानकार ने तर्क दिया कि चीनी वस्तुओं की एंट्री कोस्ट को व्यवस्थित रूप से बढ़ाकर और इनवेस्टमेंट ट्रांसफर को दिशा देकर, अमेरिका एक नए ग्लोबल सप्लाई चेन लेआउट को बढ़ावा दे रहा है. इसका मतलब है कि सप्लाई चेन अब एकल और चीन के इर्द-गिर्द केन्द्रित नहीं है, बल्कि यह एक गठबंधन की तरह होगी. अमेरिका अपने देश में उच्च-स्तरीय विनिर्माण को बनाए रखता है जिसके मुख्य घटक लैटिन अमेरिका, वियतनाम और भारत में फैले हुए हैं. साथ ही फाइनेंशियल और सर्विस लिंक यूरोप और अमेरिका में पास हैं. इससे 'मेड इन चाइना' की भूमिका धीरे-धीरे हाशिए पर चली जाएगी.
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चीनी ऑब्जर्वर्स का मानना है कि विदेशी व्यापार की स्थिति को बदलने की कोशिश के रूप में टैरिफ बाधाएं ट्रंप का आविष्कार नहीं हैं. अमेरिका ने 1930 के दशक में भी इस पद्धति का इस्तेमाल किया था. हालांकि, इससे सीधे तौर पर वेइमर जर्मनी का पतन हुआ, जिसकी अर्थव्यवस्था उस समय निर्यात पर निर्भर थी और नाज़ी पार्टी का उदय हुआ. इन नए टैरिफ को लागू करने के अमेरिकी परिणाम क्या होंगे, यह तो समय ही बताएगा. हालांकि, बीजिंग में धारणा यह है कि कम से कम आने वाले दशक के लिए तेज़ प्रगति और रातोंरात धन का युग समाप्त हो गया है और अराजकता का युग शुरू हो गया है.
(अंतरा घोषाल सिंह ओआरएफ, नई दिल्ली में फेलो हैं. वह चीन की सिंघुआ यूनिवर्सिटीसे ग्रेजुएट हैं और ताइवान की नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी में चीनी भाषा की फेलो रह चुकी हैं, इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.)
अंतरा घोषाल सिंह