INDIA ब्लॉक के बने रहने के लिए जरूरी है कि मुद्दा सबका पसंदीदा हो, सिर्फ राहुल गांधी का नहीं

SIR पर विपक्षी एकजुटता ने INDIA ब्लॉक में जान फूंक दी है. राहुल गांधी के डिनर में 25 दलों के 50 नेता जुटे, और ऐसा लगता है जैसे इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व विवाद भी थम गया है. लेकिन, यह मेल-मिलाप तभी टिकेगा जब मुद्दा सबको सूट करता हो.

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SIR के मुद्दे ने इंडिया ब्लॉक में राहुल गांधी के नेतृत्व पर उठा सवाल फिलहाल टाल दिया है. (Photo: PTI) SIR के मुद्दे ने इंडिया ब्लॉक में राहुल गांधी के नेतृत्व पर उठा सवाल फिलहाल टाल दिया है. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 5:42 PM IST

INDIA ब्लॉक सबकी जरूरत बन चुका है. जितनी कांग्रेस की जरूरत है, उतनी जरूरत इंडिया ब्लॉक ही क्षेत्रीय दलों को भी है.

और, दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी के लिए भी ये फायदेमंद ही है. तभी तो बीजेपी के साथ आने से पहले ही नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक खड़ा कर दिया ता, सत्ता पक्ष के लिए और कुछ नहीं तो कई मामलों में ठीकरा फोड़ने के काम तो आता ही है. 

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SIR के बहाने बुलाई गई मीटिंग से एक बात तो साफ हो गई है - फिलहाल नेतृत्व का झगड़ा ठंडा पड़ गया है. डिनर में सब खुशी खुशी शामिल हुए, और किसी भी छोर से नेतृत्व का सवाल नहीं उठा - बाद में जो भी हो, फिलहाल राहुल गांधी के लिए इससे बढ़िया क्या हो सकता है.  

ममता बनर्जी भी शांत हैं. लालू यादव और शरद पवार भी आराम से हैं. अभी न तो नेतृत्व का मुद्दा उठ रहा है, न ही वर्चस्व की लड़ाई. लालू यादव बिहार चुनाव में व्यस्त हैं, तो ममता बनर्जी के लिए बंगाल चुनाव से पहले भाषा आंदोलन जरूरी है. अरविंद केजरीवाल का रुख भी काफी हद तक नरम ही नजर आ रहा है, पंजाब चुनाव में वैसे भी वक्त तो अभी काफी है. 

एक बात तो साफ हो गई है. अगर मुद्दा मजबूत हो, और उससे विपक्षी खेमे के सभी दलों का राजनीतिक स्वार्थ जुड़ा हो तो विपक्षी गठबंधन चलेगा ही - और 2029 के लोकसभा चुनाव तक राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने की भी किसी को फुर्सत नहीं मिलने वाली है.  

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राहुल गांधी का डिनर तो सफल ही लगता है

INDIA ब्लॉक का ताजा जमावड़ा पिछली मुलाकातों से अलग था. होस्ट भी बदला था, जगह भी बदली थी, और वजह भी. 

होस्ट राहुल गांधी थे, और वेन्यू उनका आवास 5, सुनहरी बाग रोड था. पहले ऐसे आयोजन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास 10, राजाजी मार्ग पर हुआ करता था. 

एक बड़ा अंतर संख्या बल को लेकर भी देखने को मिला. स्पेशल सेशन बुलाने के लिए संयुक्त पत्र पर 16 राजनीतिक दलों की तरफ से समर्थन में हस्ताक्षर किये गये थे, राहुल गांधी की डिनर पार्टी में 25 राजनीतिक दलों के 50 नेता शामिल हुए हैं, ऐसा बताया गया है. कांग्रेस नेताओं की स्वाभाविक रूप से तादाद ज्यादा थी. कांग्रेस के तीनों मुख्यमंत्री - सुखविंदर सिंह सुक्खू, रेवंत रेड्डी और सिद्धारमैया भी शामिल थे.

सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और मल्लिकार्जुन खरगे तो होस्ट टीम का ही हिस्सा थे, मेहमानों में डी राजा, तिरुचि शिवा, टीआर बालू , शरद पवार, सुप्रिया सुले, फारूक अब्दुल्ला, अखिलेश यादव, डिंपल यादव, रामगोपाल यादव, अभिषेक बनर्जी, उद्धव ठाकरे, रश्मि ठाकरे, आदित्य ठाकरे, कमल हासन, हनुमान बेनीवाल, महबूबा मुफ्ती, मुकेश सहनी और तेजस्वी यादव भी शामिल थे.  

डिनर से पहले राहुल गांधी ने जो प्रजेंटेशन दिया, उसमें चुनाव आयोग पर वोटों की चोरी का आरोप दोहराया. विपक्ष की राजनीति से जुड़ी चर्चाओं में SIR से आगे उपराष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी बातों पर चर्चा हुई.

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SIR पर चल रहे अभियान को लेकर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है. इंडिया ब्लॉक का अगला जमावड़ा महीने के आखिर में बिहार में हो सकता है, ऐसे संकेत भी मिले हैं. 

राहुल गांधी के डिनर के बाद एक बात तो समझ में आने लगी है - अगर राहुल गांधी या कांग्रेस की तरफ से ऐसे मुद्दे उठाये जाते हैं, जिनसे विपक्षी खेमे के हर राजनीतिक दल का किसी न किसी रूप में स्वार्थ जुड़ता है, तो सभी दल साथ खड़े देखने को मिलेंगे - लेकिन, जैसे ही थोड़ा सा भी स्वार्थ टकराया, दूरी बनाने के लिए बहानेबाजी और खेमेबाजी शुरू हो जाएगी. 

1. मुद्दा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है

SIR का मुद्दा फिलहाल सबको ठीक लग रहा है. एक एक करके सबकी बारी आनी है. और यही कारण है कि सब साथ साथ आ गये हैं - लेकिन, कांग्रेस की तरफ से जो रणनीति अपनाई जा रही है, वो बाकियों के लिए परेशान करने वाला हो सकता है.

बेशक राहुल गांधी एसआईआर का मुद्दा उठा रहे हैं, लेकिन उनका फोकस महाराष्ट्र में वोटों की कथित चोरी, और कर्नाटक वाले ‘एटम बम’ पर ही है. ये संयोग है कि वोटर लिस्ट पर काम बिहार में चल रहा है, इसलिए तेजस्वी यादव साथ खड़े हैं - लेकिन कांग्रेस का रुख समझ में तो उनको भी आ ही रहा होगा. 

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ऐसे ही अडानी का मुद्दा, आंबेडकर का मुद्दा और सावरकर का मुद्दा भी अलग तरह व्यवहार दिखा चुका है. आंबेडकर के मुद्दे पर जहां सभी साथ हुए थे, सावरकर पर शरद पवार और उद्धव ठाकरे, तो अडानी के मुद्दे पर ममता बनर्जी नाराज हो जाया करती थीं. जाति जनगणना के मुद्दे पर भी राहुल गांधी को सबका साथ नहीं ही मिल सका. 

अब एसआईआर से पैदा हुई गर्मजोशी उपराष्ट्रपति चुनाव तक चलती है भी या नहीं, देखना होगा. क्योंकि, उसमें में सभी के अपने अपने स्वार्थ हैं. पिछली बार तो ममता बनर्जी ने दूरी ही बना ली थी. 

2. तृणमूल कांग्रेस और AAP सिर्फ मतलब से जुड़ते हैं

तृणमूल कांग्रेस फिलहाल वैसे ही साथ है, जैसे दिल्ली सेवा बिल पर कांग्रेस के सपोर्ट की गारंटी मिलने पर ही अरविंद केजरीवाल इंडिया ब्लॉक में शामिल हुए थे. ममता बनर्जी को फिलहाल भाषा आंदोलन पर कांग्रेस का सपोर्ट मिल रहा है. 

आम आदमी पार्टी तो पहले ही बोल चुकी है कि वो इंडिया ब्लॉक में नहीं है. हां, एक प्रेस कांफ्रेंस में संदीप पाठक शामिल जरूर हुए थे. संजय सिंह का भी कहना है कि आगे भी जरूरी लगेगा तो एसआईआर की तरह सपोर्ट करेंगे. 

3. विचारधारा और नेतृत्व का मसला

राहुल गांधी का ये दावा कि कांग्रेस को छोड़कर किसी भी क्षेत्रीय दल के पास अपनी कोई विचारधारा नहीं है, सबको यूं ही चिढ़ा देता है. इस मुद्दे पर खुल कर न सही, लेकिन नाराजगी तो अखिलेश यादव भी जता चुके हैं. 

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आरजेडी नेता मनोज झा भी राहुल गांधी को समझाने की कोशिश कर चुके हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करे, लेकिन राज्यों में ड्राइविंग सीट क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ दे.

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