सम्राट चौधरी का डिप्टी सीएम बनना भी पक्का हो गया है. जैसे नीतीश कुमार का फिर से बिहार का मुख्यमंत्री बनना. और वैसे ही विजय सिन्हा का भी, आगे भी, उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना. अब तो नीतीश कुमार को भी एनडीए विधायक दल का नेता चुना जा चुका है. सम्राट चौधरी तो बीजेपी विधायक दल के नेता तो पहले ही चुने जा चुके हैं. बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद एनडीए की अगली सरकार में कुछ खास बदलाव की संभावना नजर नहीं आ रही है.
एनडीए सरकार के शपथग्रहण से पहले ही जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर का एक महत्वपूर्ण बयान आया है. असल में, प्रशांत किशोर बीजेपी और जेडीयू के मंत्रियों के खिलाफ अपने आरोपों की याद दिला रहे हैं - प्रशांत किशोर का कहना है कि वो अपनी बात पर अब भी कायम हैं. सम्राट चौधरी सहित एनडीए के कई नेताओं पर प्रशांत किशोर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा चुके हैं.
प्रशांत किशोर ने चुनाव के दौरान उनके निशाने पर आए नेताओं को सरकार में शामिल न करने की सलाह दी है - सवाल ये है कि चुनाव जीतकर फिर से सम्राट चौधरी के डिप्टी सीएम बन जाने के बाद प्रशांत किशोर क्या वास्तव में कोर्ट जाएंगे?
प्रशांत किशोर का अगला कदम क्या होगा?
कोर्ट जाने पर अगर सम्राट चौधरी के खिलाफ प्रशांत किशोर के आरोप सही साबित हुए तो अदालत अपराध के मुताबिक सजा भी मुकर्रर करेगी. लेकिन, अपराध साबित भी तभी हो पाएंगे जब सम्राट चौधरी के खिलाफ ठोस सबूत होंगे.
प्रशांत किशोर का कहना है, हमें उम्मीद थी कि सरकार एक्शन लेगी. लेकिन, लोगों ने उन्हें फिर से चुना है, और उन्हें बहुत बड़ा मैंडेट दिया है... अब ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो उन्हें कैबिनेट में शामिल न करें.
न तो नीतीश कुमार, और न ही बीजेपी, किसी ने भी प्रशांत किशोर के आरोपों को कोई तवज्जो दी थी. जिन नेताओं पर प्रशांत किशोर ने आरोप लगाए थे, सभी ने अपनी तरफ से खारिज कर दिया था. सम्राट चौधरी ने भी, और अशोक चौधरी ने भी. अशोक चौधरी ने तो नोटिस भी भेजा था, लेकिन बाद में ये कह कर कदम पीछे खींच लिए कि चुनाव का वक्त है, और ऐसी चीजों पर वो समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं.
प्रशांत किशोर कह रहे हैं, अगर ऐसे नेताओं को फिर से सरकार में शामिल किया जाता है, तो हम लोगों के पास जाएंगे. और, जरूरत पड़ने पर कोर्ट भी जाएंगे... जिन चार लोगों के बारे में हमने पहले बताया था, अगर वे फिर से मिनिस्टर बनते हैं, तो हम कोर्ट जाएंगे.
अब अगर सम्राट चौधरी भी अशोक चौधरी की तरह नोटिस देकर आगे बढ़ें, और अदालत जाकर आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराएं, तो प्रशांत किशोर की भी मुश्किलें बढ़ेंगी. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल इस बात के उदाहरण हैं. बुरी तरह फंसने पर कोर्ट कचहरी से पीछा छुड़ाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने बारी बारी उन सभी नेताओं से माफी मांग ली थी, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे.
जनादेश के बाद लोगों के बीच जाने का क्या मतलब?
हर किसी को, किसी के भी खिलाफ, किसी भी मामले में कोर्ट जाने का विकल्प तो हमेशा खुला रहता है. सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा हो जाने के बाद भी अपील की गुंजाइश होती है. और, ऐसे मामले में आधी रात को भी देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खुल जाता है, ये भी मिसाल बन चुका है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी सहित एनडीए के कुछ नेताओं पर चुनाव के ठीक पहले गंभीर आरोप लगाए थे. जबकि बीते तीन साल से वो जन सुराज मुहिम के तहत बिहार यात्रा पर निकले थे. मुहिम के दौरान प्रशांत किशोर के निशाने पर ज्यादातर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हुआ करते थे.
जब चुनाव करीब आए, तो प्रशांत किशोर ताबड़तोड़ कई नेताओं पर आरोप लगाने के साथ ही प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर भ्रष्टाचार के सबूत दिखाने लगे. वैसे तो प्रशांत किशोर जब तब चिराग पासवान की तारीफ भी करते थे, लेकिन अशोक चौधरी को घेरने के चक्कर में चिराग पासवान को भी चपेट में ले लिया था.
प्रशांत किशोर का आरोप है कि अशोक चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी के लिए पैसे देकर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट खरीदे थे. लेकिन, जब चिराग पासवान को लेकर सवाल पूछा जाने लगा तो प्रशांत किशोर ने समझाया था कि जरूरी नहीं कि ये जानकारी चिराग पासवान को हो ही.
उन दिनों ये भी देखा गया था कि आरोप लगाने के कुछ दिन बाद प्रशांत किशोर ने चुप्पी साध ली थी. लिहाजा सवाल भी हुए. तब प्रशांत किशोर ने बताया कि उनका मकसद लोगों को सच्चाई बताना भर था, और जब उन नेताओं ने मान लिया तो उनका काम हो गया.
हो सकता है, चुनाव में कुछ हासिल हो गया होता तो प्रशांत किशोर के लिए भी वे आरोप जुमला साबित होते, लेकिन अब जबकि राजनीति से संन्यास नहीं लेना है, और बिहार में भी बने भी रहना है तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा - लेकिन, प्रशांत किशोर का आरोपों के साथ मैदान में बने रहना आसान भी नहीं होगा क्योंकि वे नेता तो जनादेश के साथ लौटे हैं.
कोर्ट जाने की बात अलग है, लेकिन ये मुद्दा लेकर प्रशांत किशोर का जनता के बीच जाने की बात तो समझ से परे लगती है. जब चुनावों में जनता ने प्रशांत किशोर की बात को अनसुना कर दिया, तो फिर से लोगों के बीच जाकर प्रशांत किशोर क्या कहेंगे, और उसका असर तो होने से रहा.
मृगांक शेखर