नीतीश फिर सीएम... बिहार में 'महाराष्ट्र फॉर्मूला' लागू होने की थ्‍योरी क्‍यों फेल हुई

बीजेपी ने बिहार में आखिरकार नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है. वे NDA विधायक दल के नेता चुन लिए गए हैं. सम्राट चौधरी को बीजेपी विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद भी डिप्टी सीएम ही बनाया जा रहा है - आखिर वे क्या कारण हैं कि बीजेपी ने बिहार में महाराष्ट्र फॉर्मूला लागू नहीं किया, जिसके कयास लगाए जा रहे थे.

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नीतीश कुमार के साथ जुड़ा TINA (निर्विकल्प) फैक्टर बीजेपी को भी डराता है. (Photo: PTI) नीतीश कुमार के साथ जुड़ा TINA (निर्विकल्प) फैक्टर बीजेपी को भी डराता है. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:56 PM IST

चर्चा है  कि नीतीश कुमार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. अब तक तो यही मालूम हो सका है. एक अपडेट ये भी आया है कि सम्राट चौधरी बीजेपी विधायक दल के नेता चुन लिए गए हैं. लेकिन, उनको फिर से डिप्टी सीएम बनाए जाने की ही संभावना जताई गई है. 

पटना में नई सरकार के शपथग्रहण की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. स्पीकर और कुछ मंत्रालयों पर गठबंधन सहयोगियों की दावेदारी की खबरें भी आ रही हैं. और, एनडीए नेताओं की तरफ से ये भी बताया जा रहा है कि सब ठीक चल रहा है. अगर कहीं कोई पेच फंसा है, तो सुलझा लिया जाएगा.

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बिहार चुनाव से बहुत पहले ही महाराष्ट्र फॉर्मूले की चर्चा होने लगी थी. ये चर्चा तब और तेज हो गई जब बीजेपी नेता अमित शाह ने बिहार में मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला संसदीय बोर्ड में होने की बात कह दी. ये अमित शाह ही हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र चुनाव के दौरान एकनाथ शिंदे के सवाल पर कहा था, 'अभी तो हमारे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, चुनाव के बाद हम सभी बैठकर विचार-विमर्श करेंगे.'

महाराष्ट्र में चुनाव हुए, और हुआ वही जो अमित शाह के बयान से संकेत मिले थे. एकनाथ शिंदे ने तमाम पैंतरे अपनाए. रूठकर मुंबई से अपने इलाके में चले गए. लेकिन, बीजेपी मुख्यमंत्री पद पर टस से मस नहीं हुई. और, चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो बिहार और महाराष्ट्र के रिजल्ट भी बिल्कुल अलग हैं. 

सवाल ये है कि जेडीयू से ज्यादा सीटें इस बार मिलने के बाद भी बीजेपी 2020 की तरह नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाने को तैयार क्यों हुई? समझने की कोशिश करें, तो बीजेपी की कई मजबूरियां नजर आती हैं. 

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1. एनडीए में बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों का बंटवारा पहली बार 2025 में बराबरी का हुआ था. बीजेपी और जेडीयू दोनों ही 101-101 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़े थे. ठीक पहले, 2024 के आम चुनाव में बीजेपी ने अपने पास 17 लोकसभा सीटें रखते हुए जेडीयू को 16 सीटें दी थी. 2020 की बात करें, तो जेडीयू मोलभाव करके 115 सीटों पर ही तैयार हुई, और बीजेपी को 110 सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ा - 2025 के चुनाव में बड़े भाई और छोटे भाई के समीकरण को खत्म करने की कोशिश की गई. 

देखें तो सीट शेयरिंग से ही तय हो गया था की बीजेपी दबदबा बनाए रखने की कोशिश तो करेगी, लेकिन सब कुछ नीतीश कुमार के नेतृत्व में चलेगा. चुनाव से पहले भी, और चुनाव के बाद भी. और, बीजेपी अब भी अपनी बात पर कायम है. 

मतलब, बीजेपी पहले से ही नीतीश कुमार के प्रति एक राय लेकर चल रही थी. नीतीश कुमार को डिस्टर्ब करके जोखिम न उठाने का फैसला पहले ही हो चुका था. बस, सार्वजनिक तौर पर बोलने से बचा जा रहा था. अमित शाह और राजनाथ सिंह सहित दूसरे नेताओं के अलग अलग बयान भी खास स्ट्रैटेजी के तहत सामने आए - ताकि नीतीश कुमार को नापसंद करने वाले भी बीजेपी से नाराज न हों. 

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2. बीजेपी अलग अलग तरीके से अपने वोट बैंक का दायरा बढ़ाने की लगातार कोशिश करती रही है. ओबीसी वोटों में तो बीजेपी पहले ही सेंध लगा चुकी है, लेकिन बिहार में ईबीसी यानी अति पिछड़े वर्क पर अब भी बीजेपी की खास पकड़ नहीं बन पाई है. ईबीसी पर तो अब भी नीतीश कुमार का ही ज्यादा प्रभाव है, उसमें तो तेजस्वी यादव भी सेंध नहीं लगा पाए - और ये भी बीजेपी के संकोच का एक बड़ा कारण रहा है. 

3. महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण बीजेपी बनाम महायुति जैसा बना हुआ था. लेकिन, बिहार में बीजेपी बनाम नीतीश कुमार ही कायम है. बिहार में बीजेपी की चिराग पासवान जैसी ही जरूरत महाराष्ट्र में अजीत पवार की है, लेकिन चुनाव से पहले अजीत पवार का समर्पण चिराग पासवान जैसा नहीं था - हां, चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी के मुख्यमंत्री की बात करके अजीत पवार ने बीजेपी का साथ दिया, और एकनाथ शिंदे कमजोर पड़ गए. 

4. बिहार में हार जीत का अंतर भी महाराष्ट्र जैसा नहीं है, जैसा 2020 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था. जब बीजेपी ने 2020 में नीतीश कुमार को नजरअंदाज कर अपना मुख्यमंत्री नहीं बनाया, तो अब कहां सवाल उठता है. बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच सिर्फ चार सीटों का फासला है. बीजेपी को 89 सीटें मिली हैं, जबकि जेडीयू को 85. महाराष्ट्र चुनाव में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी ने 132 सीटें जीत ली थी, जबकि एकनाथ शिंदे की पार्टी 57 सीट ही जीत पाई थी. इन नतीजों के बाद शिंदे ने खुद कहा था कि बीजेपी को इतनी सीटें मिलने के बाद उनकी पार्टी का सीएम बनाया जाना स्‍वाभाविक है.

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5. बीजेपी के पास बिहार में देवेंद्र फडणवीस जैसा अब तक कोई नेता नहीं मिल पाया है. सम्राट चौधरी भी प्रशांत किशोर के निशाने पर आ गए थे, लेकिन अमित शाह ने आगे बढ़कर संभाल लिया. चुनावों में तो विष्णुदेव साय की तरह बड़ा मौका देने की बात कही थी, लेकिन अब तो यही सुनने में आया है कि सम्राट चौधरी को फिर से डिप्टी सीएम ही बन रहे हैं. 

सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम बनाया जाना भी कम नहीं है. आगे भी तो चुनाव लड़ना ही है. अगले साल न सही, उसके अगले साल बीजेपी को यूपी में भी तो चुनाव लड़ना ही है. ये बात अलग है कि सम्राट चौधरी को डिप्टी बनाकर बीजेपी प्रशांत किशोर को बवाल मचाने का मौका दे रही है. 

6. महाराष्ट्र में बीजेपी को अपने नाम पर वोट मिले थे, एकनाथ शिंदे के नाम पर नहीं. वो सिर्फ मराठा वोट साधने के टूल भर थे. बिहार में नीतीश कुमार के नाम पर वोट पड़ा है, और बीजेपी को सहयोगी दल होने का भी फायदा मिला है. 10-10 हजार वाली स्कीम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, लेकिन नीतीश कुमार की कैबिनेट की मंजूरी पहले ही मिल चुकी थी - और नीतीश कुमार की शराबबंदी सहित महिला केंद्रित योजनाओं की वजह से पहले से ही लोगों ने अपना मन बना लिया था. 

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7. नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बने रहने देने के पीछे, एक बड़ी वजह आने वाले विधानसभा चुनाव भी हैं. बीजेपी अपनी छवि नहीं खराब करना चाहती है. अगले साल तमिलनाडु में भी चुनाव होने वाला है. अब अगर बीजेपी नीतीश कुमार की जगह अपना मुख्यमंत्री बनाती तो ई. पलानीस्वामी गठबंधन से पीछे हट सकते हैं. वो तो पहले से ही कह रहे हैं कि गठबंधन चुनाव जरूर लड़ेगा, लेकिन सरकार तो AIADMK ही बनाएगी. 

कुल मिलाकर देखें तो बीजेपी का ये फैसला दूरगामी लगता है - आखिर भविष्य में लालू-राबड़ी शासन के 'जंगलराज' के मुकाबले बीजेपी को नीतीश कुमार के 'सुशासन' की विरासत भी तो अपना नाम करना है.

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