कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल ने हाल के कई ट्वीट्स में दावा किया गया है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था का बंटाधार हो चुका है, जिसमें जीडीपी वृद्धि दर में कमी, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की सुस्ती, और बेरोजगारी जैसे मुद्दों का जिक्र किया गया है. 31 मई 2025 को कांग्रेस ने ट्वीट किया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में जीडीपी वृद्धि दर 6.5% रही, जो चार साल में सबसे कम है और कोरोना काल के बाद सबसे सुस्त रफ्तार है. 2 जून 2025 को कांग्नेस ने HSBC की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) तीन महीने के निचले स्तर पर है, जिसका मतलब है कि सामान कम बन रहे हैं और कम बिक रहे हैं. 31 जनवरी 2025 को सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट किया कि 29% ग्रेजुएट बेरोजगार हैं और मैन्युफैक्चरिंग में नौकरियां घट रही हैं.
27 मार्च 2025 को कांग्रेसन ने दावा किया था कि 100 करोड़ से ज्यादा लोग आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं. 31 मई 2025 को कांग्रेस ने कहा कि विकसित भारत के लिए 8.2% की वार्षिक जीडीपी वृद्धि जरूरी है, जो मौजूदा दर से काफी कम है. कांग्रेस के ये आरोप कितने सही हैं ये हमें तीन तरह से समझ में आ सकते हैं. पहला कांग्रेस की सरकार के समय देश की तरक्की की तुलना मोदी के कार्यकाल से करके, दूसरा पिछले 10 सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरे देशों की तरक्की भारत की तुलना में किस तरह से और कितनी हो रही है इसकी चर्चा करके. तीसरा पूरी दुनिया में हो रहे व्यापार में भारत की भागीदारी को आधार बनाकर. आइये सभी पहलुओं की चर्चा करते हैं.
1-मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था की तुलना
मनमोहन सिंह (2004-2014) और नरेंद्र मोदी (2014-2024) के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना एक जटिल विषय है, क्योंकि दोनों नेताओं ने अलग-अलग वैश्विक और घरेलू परिस्थितियों में सरकार का नेतृत्व किया.
यूपीए-1 के दौर में में भारत की जीडीपी वृद्धि दर औसतन 7.5-8% प्रति वर्ष रही, जो वैश्विक वित्तीय संकट (2007-08) के बावजूद मजबूत थी. यूपीए-2 में वृद्धि दर धीमी हुई, औसतन 6.7% रही. 2012-13 में यह 5.24% तक गिर गई. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था 2004 में 11वें स्थान से 2014 में 9वें स्थान पर पहुंची. प्रति व्यक्ति आय 2004-2014 में 6% प्रति वर्ष की दर से बढ़ी, जो तेज थी.
नरेंद्र मोदी (2014-2024) के कार्यकाल में एनडीए-1 (2014-2019) में जीडीपी वृद्धि दर औसतन 7.5% रही, जिसमें 2016-17 में 8.2% (पुनर्गणना के बाद) उच्चतम थी. हालांकि, नोटबंदी (2016) और जीएसटी (2017) के कारण 2017-18 और 2018-19 में वृद्धि क्रमशः 6.8% और 6.5% रही.
एनडीए-2 (2019-2024) में कोविड-19 महामारी के कारण 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 5.8% की ऐतिहासिक गिरावट आई. 2021-22 में रिकवरी के साथ 8.7% की वृद्धि हुई, लेकिन 2024-25 की तीसरी तिमाही में यह 6.5% रही, जो चार साल में सबसे कम थी. पर इसके बावजूद भी भारत 2014 में 9वें स्थान से 2025 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना, और जीडीपी 4 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गई. प्रति व्यक्ति आय 2014-2024 में 4% प्रति वर्ष की दर से बढ़ी, जो यूपीए की तुलना में धीमी थी.
यूपीए के दौरान बेरोजगारी दर अपेक्षाकृत स्थिर रही, लेकिन ग्रेजुएट्स और युवाओं में बेरोजगारी एक समस्या थी. PLFS (2013) के अनुसार, 15-29 आयु वर्ग में बेरोजगारी दर 18-20% थी. 2014-2019 में बेरोजगारी दर में वृद्धि देखी गई, विशेष रूप से नोटबंदी के बाद, जिसने असंगठित क्षेत्र को प्रभावित किया. CMIE के अनुसार, 2018 में बेरोजगारी दर 6.1% थी, जो 45 साल में उच्चतम थी.
यूपीए-2 में मुद्रास्फीति एक बड़ी समस्या थी, खासकर 2010-2013 में, जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति 10% तक पहुंच गई. खाद्य मुद्रास्फीति 9-12% थी, जिसने मध्यम वर्ग को प्रभावित किया.एनडीए ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में बेहतर प्रदर्शन किया. मई 2014 में CPI मुद्रास्फीति 7.72% थी, जो 2019 तक 2.57% तक कम हुई. 2024 में यह 5-6% रही.
नोटबंदी और कोविड के बाद आपूर्ति शृंखला की समस्याओं और यूक्रेन-रूस युद्ध ने खाद्य और ईंधन की कीमतों को प्रभावित किया, लेकिन सरकार ने सब्सिडी और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से प्रभाव को कम करने की कोशिश की.
यूपीए के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश जीडीपी का 26% था, जो 2004-2009 में विशेष रूप से मजबूत था. निर्यात जीडीपी का 17% था. हालांकि, यूपीए-2 में नीतिगत स्थिरता की कमी और भ्रष्टाचार के आरोपों ने निवेश को प्रभावित किया. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) जीडीपी का 1.2% था.
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में निजी क्षेत्र का निवेश जीडीपी का 22% तक गिर गया, और मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 14% तक कम हुई. निर्यात जीडीपी का 13% रहा.
FDI में वृद्धि हुई, विशेष रूप से 2014-2017 में, लेकिन 2019 के बाद यह स्थिर हो गया। FDI जीडीपी का 0.8% रहा.
जीएसटी और इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड जैसे सुधारों ने दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार को बढ़ावा दिया, लेकिन नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया.
2-पिछले 10 सालों में दुनिया की अर्थव्यवस्था की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था कैसी रही
पिछले 10 वर्षों (2014-2024) में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है, जिसने इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में स्थापित किया है. इस अवधि में भारत ने वैश्विक रैंकिंग में अपनी स्थिति में सुधार किया, कई संरचनात्मक सुधार किए, और बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ाया. हालांकि, बेरोजगारी, आय असमानता, और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की सुस्ती जैसे मुद्दों ने चुनौतियां भी पेश कीं.
2014 में भारत दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी, जिसकी जीडीपी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर थी. 2024 तक, भारत ने जापान को पीछे छोड़ते हुए 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्थान हासिल किया.
वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2024-25 तक भारत की औसत जीडीपी वृद्धि दर लगभग 6.5-7% रही. 2023-24 में यह 8.2% थी, जो वैश्विक औसत 2.7% से काफी अधिक थी।
2020-21 में कोविड-19 के कारण जीडीपी में 5.8% की गिरावट आई, लेकिन 2021-22 में 8.7% की रिकवरी हुई.2024-25 की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 6.5% रही, जो चार साल में सबसे कम थी.
वैश्विक अर्थव्यवस्था की औसत वृद्धि दर इस अवधि में 2.5-3% रही. 2023 में यह 2.9% थी, जबकि भारत की वृद्धि दर 6.3% थी.
प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में, चीन की वृद्धि दर 2014-2024 में औसतन 5-6% रही, जो 2024 में 4.5% थी. अमेरिका और यूरोप की वृद्धि दर 1-2% रही. भारत ने इन सभी को लगातार पीछे छोड़ा. भारत की जीडीपी वृद्धि वैश्विक औसत से कहीं अधिक रही, जिसने इसे वैश्विक रैंकिंग में ऊपर उठाया. हालांकि, 2024-25 में 6.5% की वृद्धि दर ने कुछ चिंताएं पैदा कर रही हैं.
3-पिछले 10 सालों में दुनिया के व्यापार में भारत की हिस्सेदारी में क्या बदलाव हुआ है
पिछले 10 वर्षों (2014-2024) में वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी (विश्व व्यापार में निर्यात और आयात का अनुपात) में महत्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं.भारत की वैश्विक माल निर्यात में हिस्सेदारी 2005 में 0.9% से बढ़कर 2023 में 1.8% हो गई, और सेवा निर्यात में यह 2% से 4.3% तक बढ़ी. कुल मिलाकर, भारत की निर्यात हिस्सेदारी 1.2% से 2.4% हो गई, जबकि आयात हिस्सेदारी 1.5% से 2.9% तक बढ़ी है.
अमेरिका की निर्यात हिस्सेदारी 2012 में 12.2% से घटकर 2022 में 10.1% हो गई, और आयात हिस्सेदारी 15.4% से घटकर 13% रही.जापान की निर्यात हिस्सेदारी 2012 में 5.2% से 2022 में 4% तक कम हुई.UK की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी 1999 में 5.3% से घटकर 2015 में 3.7% हो गई.
संयम श्रीवास्तव