ममता बनर्जी को अच्छी तरह मालूम है, तृणमूल कांग्रेस को वोट कौन कौन देता है. वो ये भी जानती हैं कि उनका वोटर कौन है, और अपने वोटर को साथ बनाये रखने के लिए क्या क्या करना होता है. और, ममता बनर्जी जानती हैं कि कांग्रेस जैसे राजनीतिक विरोधियों को कैसे अपने वोटर से दूर रखना होता है.
ममता बनर्जी ये भी जानती हैं कि पश्चिम बंगाल में वोट कैसे लिये जाने हैं. तभी तो नंदीग्राम में चंडी पाठ भी करने लगती है, और मौका देखकर फुरफुरा शरीफ भी पहुंच जाती है. बीजेपी को पश्चिम बंगाल में पांव जमाने से कैसे रोकना है, ये उपाय भी 2020 में प्रशांत किशोर उनको सिखा ही चुके हैं. तभी तो 2019 के आम चुनाव के बाद से बीजेपी की दाल नहीं गल पा रही है. 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे तो यही बता रहे हैं.
मुस्लिम वोटर तो ममता बनर्जी के साथ स्वाभाविक रूप से खड़ा रहने लगा है. रही बात बंगाली अस्मिता की तो जैसे पिछले चुनावों में बीजेपी, खासकर मोदी-शाह, को जिस तरह बाहरी बताकर ममता बनर्जी हमले बोलती रही हैं, भाषा आंदोलन की घोषणा कर अभी से 2026 के पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर अपना इरादा साफ कर दिया है.
बीजेपी के हिंदुत्व के मॉडल को चैलेंज करने लगी हैं ममता बनर्जी
1. अप्रैल, 2025 में 250 करोड़ की लागत से बने जगन्नाथ धाम के उद्धाटन के बाद अब ममता बनर्जी ‘दुर्गा आंगन’ प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं. दुर्गा आंगन भी जगन्नाथ धाम की तरह भव्य मंदिर परिसर बनने जा रहा हैा, जो मां दुर्गा को समर्पित होगा - और साल भर आम लोगों के लिए खुला रहेगा. मतलब, अभी तक दुर्गापूजा साल में सिर्फ एक बार आता था, आगे से पूरे साल दुर्गापूजा का माहौल बनाये रखने की कोशिश होगी. जाहिर है, ये सब नुकसानदेह तो बीजेपी के लिए ही है.
ममता बनर्जी कहती हैं, जैसे हमने जगन्नाथ धाम बनाया है, वैसे ही अब हम दुर्गा आंगन बनाएंगे ताकि लोग पूरे साल लोग भक्ति-भाव का अनुभव कर सकें.
'खूंटी पूजा' तो पहले से ही होती आ रही है, अब तो तृणमूल कांग्रेस की तरफ से ये कोशिश होने लगी है कि पूरे पश्चिम बंगाल में ये भी बड़े पैमाने पर भव्य तरीके से हो. खूंटी पूजा, से ही दुर्गापूजा की शुरुआत होती है. खूंटी पूजा दुर्गापूजा से 90 दिन पहले शुरू होती है.
2. ममता बनर्जी अभी से सारी तैयारी बीजेपी के एजेंडे को ध्यान में रखकर करने लगी हैं. बीजेपी ने देखा कि ममता बनर्जी के विरोध के आगे 'जय श्रीराम' के नारे का कोई खास फायदा नहीं हो रहा है, तो धीरे धीरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम से बंगाल में देवी पर फोकस होने लगी है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने भी काउंटर का इंतजाम कर लिया है.
असल में, अब बीजेपी की तरफ से जय श्रीराम की जगह पश्चिम बंगाल में रचे बसे ‘जय मां काली’ और ‘जय मां दुर्गा’ जैसे नारों के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी है. हाल ही में पश्चिम बंगाल के दौरे पर दुर्गापुर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत देवी स्मरण के साथ की थी, और दावा किया था कि बीजेपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो बंगाली गौरव का संरक्षण और सच्चा सम्मान करती है.
ममता बनर्जी को बीजेपी का ये बदला स्टैंड कैसा लगा, शहीद रैली में बता दिया, ऐसा क्यों है कि आपको काली मां और दुर्गी मां सिर्फ चुनावों के समय ही याद आती हैं? मां दुर्गा हमारी आराध्य देवी हैं, और दुर्गा पूजा को तो अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिली हुई है... अब सुनिए, जैसे हमने भव्य जगन्नाथ धाम बनाया, वैसे ही हम दुर्गा आंगन बनाएंगे.
3. मुश्किल ये है कि ममता बनर्जी के इन अनुष्ठानों के विरोध के लिए बीजेपी को संविधान और जनता के पैसे का सहारा लेना पड़ रहा है. क्योंकि, ये सब बीजेपी की राजनीतिक विरोधी टीएमसी की नेता की तरह से हो रहा है.
पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी सवाल करने लगे हैं, किसी भी धार्मिक संस्थान जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा का निर्माण आम लोगों के टैक्स के पैसे से नहीं किया जा सकता. शुभेंदु अधिकारी का आरोप है कि ममता बनर्जी लोगों की गाढ़ी कमाई के टैक्स का बेजा इस्तेमाल कर रही हैं, और संवैधानिक मानकों को नजरअंदाज कर रही हैं. कहते हैं, उनको न तो संविधान की जानकारी है, न ही अपने धर्म की समझ है.
टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी पर जवाबी हमले के साथ ममता बनर्जी का अपने तरीके से बचाव कर रहे हैं. टीएमसी नेताओं का कहना है कि राजनीति में आने से पहले भी ममता बनर्जी घर पर काली पूजा करती थीं. जगन्नाथ धाम या दुर्गा आंगन जैसे मंदिरों का निर्माण उनकी सच्ची श्रद्धा की उपज है. टीएमसी सरकार ने हजारों दुर्गा पूजा आयोजनों को सपोर्ट किया है. दुर्गापूजा के लिए यूनेस्को हेरिटेज टैग भी हासिल किया.
4. ममता बनर्जी की तरफ से चीजों को बैलेंस करने की भी कोशिश होती रही है. मौलवियों के साथ साथ ममता बनर्जी पुजारियों को भी पैसे देने लगी हैं. सुंदरबन के सागर टापू में होने वाले गंगासागर मेले में ममता बनर्जी के निर्देश पर पूरा प्रशासनिक अमला ही मोर्चा संभाल लेता है. तृणमूल सरकार के मंत्री तक सुनिश्चित कराने में लग जाते हैं कि कपिल मुनि के आश्रम जाने वालों और सागर में स्नान करने वालों को किसी तरह की असुविधा न हो.
भारतीय जनता पार्टी को भी ममता बनर्जी उसी के दांव-पेच में उलझाने लगी हैं, और ऐसा लगता है जैसे कोई चक्रव्यूह रचने की कोशिश हो रही हो. एक तरफ ममता बनर्जी अयोध्या में बन रहे राम मंदिर उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करती हैं, प्रयागराज के महाकुंभ को 'मृत्युकुंभ' करार देती हैं - और दूसरी तरफ, दीघा में करोड़ों की लागत से जगन्नाथ धाम बनवा देती हैं. ममता बनर्जी खुद उद्घाटन करती हैं, और बीजेपी नेता दिलीप घोष भी पहुंच जाते हैं. कहते हैं, अक्षय तृतीया पर बुलाया गया तो चले गये.
भले ही ममता बनर्जी के ऐसे कदमों को सॉफ्ट हिंदुत्व की तरह समझा जाये, लेकिन ये राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व से कहीं ज्यादा आगे की बात है. राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व तो फेल हो चुका है, ममता बनर्जी काफी सोच समझकर कदम आगे बढ़ा रही हैं.
बंगाली अस्मिता सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है
गुजराती और मराठी अस्मिता की ही तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने सियासी सुरक्षा कवच बना लिया है. बीजेपी शासन वाले राज्यों में बांग्ला भाषियों के उत्पीड़न का आरोप लगाकर जिस तरह ममता बनर्जी ने शहीद दिवस रैली में रौद्र रूप दिखाया, अगले साल होने वाले चुनावों को लेकर तृणमूल कांग्रेस के कैंपेन की दशा और दिशा साफ नजर आने लगी है.
27 जुलाई से भाषा आंदोलन चलाये जाने की घोषणा कर चुकीं ममता बनर्जी अब पश्चिम बंगाल विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाने के बारे में सोच रही हैं. विशेष सत्र में खास तौर पर बंगाली अस्मिता का ही मुद्दा छाया रहेगा. ये सत्र 8 से 21 अगस्त के बीच हो सकता है. बताते हैं, अगर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया तो बीजेपी की सरकार वाले राज्यों में बंगाली भाषा बोलने वाले लोगों के उत्पीड़न और प्रताड़ना को लेकर औपचारिक प्रस्ताव भी लाया जा सकता है.
भाषा आंदोलन शुरू करने के पीछे ममता बनर्जी बीजेपी के भाषायी आतंक को वजह बता रही हैं. वैसे ममता बनर्जी के भाषाई आतंक का इल्जाम करीब करीब वैसा ही है, जैसा केंद्र में यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस के भगवा आतंक की बातें सुनकर लगता था.
पश्चिम बंगाल विधानसभा अगस्त में विशेष सत्र बुलाएगी। इसमें भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषियों के उत्पीड़न पर प्रस्ताव आएगा। सत्र 8 से 21 अगस्त के बीच हो सकता है। अन्य राज्यों में बंगाली मजदूरों पर हमले और अपमान का मुद्दा उठेगा। ममता बनर्जी ने 'बांग्ला अस्मिता' का मुद्दा उठाया है। पार्टी 27 जुलाई से विरोध प्रदर्शन करेगी।
ममता बनर्जी के साथ मुस्लिम वोट बैंक
ममता बनर्जी के लिए मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह एकतरफा और एकजुट है. 2021 के विधानसभा चुनाव में पूरा फुरफुरा शरीफ बड़ी चुनौती बना हुआ था. ममता बनर्जी के प्रभाव में असदुद्दीन ओवैसी तो बेअसर रहे, लेकिन इंडियन सेक्युलर फ्रंट ने काफी मुश्किलें खड़ी की थी, लेकिन ज्यादा डैमेज नहीं कर पाया - पीरजादा कासेम सिद्दीकी को साथ लेकर ममता बनर्जी ने पूरे इलाके में पैठ बनाने की बड़ी चाल पहले ही चल दी है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि जून, 2025 में ही पीरजादा कासेम सिद्दीकी को तृणमूल कांग्रेस का महासचिव नियुक्त कर दिया गया. जिस तरीके से पीरजादा कासेम सिद्दीकी को सीधे टीएमसी का महासचिव बनाया गया, वो भी खास तौर पर ध्यान खींचने वाला था. क्योंकि, जैसे किसी को पहले पार्टी में आने पर औपचारिक तौर पर शामिल किया जाता है, सदस्यता दिलाई जाती है, सार्वजनिक तौर पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है - पीरजादा कासेम सिद्धीकी के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.
मुस्लिम वोटर तो अब ममता बनर्जी के साथ वैसे ही खड़ा हो गया है, जैसे यूपी में अखिलेश यादव के साथ और बिहार में लालू यादव के बाद तेजस्वी यादव के साथ - वहां M-Y फैक्टर चलता है, ममता के इलाके में M-B यानी मुस्लिम और बंगाली फैक्टर काम करने लगा है.
मृगांक शेखर