पूर्वोत्तर के राज्यों, बंगाल, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों के बारे में यह बात किसी से छुपी नहीं है कि यहां बड़े पैमाने पर घुसपैठ होती है. लेकिन, असली चुनौती होती है इन घुसपैठियों की पहचान को लेकर. अब जबकि चुनाव आयोग द्वारा निर्वाचन सूची की गहन जांच को लेकर खबर आ रही है कि बिहार में बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाली घुसपैठिये हैं, तो सवाल उठना लाजमी है कि इन घुसपैठियों की पहचान कैसे सामने आई? क्योंकि, चुनाव आयोग यह तो पता लगा सकता है कि कोई व्यक्ति वोट डालने की योग्यता रखता है या नहीं. लेकिन उसके पास यह जांच करने का कोई साधन नहीं है कि वह किसी व्यक्ति के घुसपैठिया होने, और वह कहां से आया है, यह बता सके. बिहार चुनाव आयोग की तरफ से हर छोटी-बड़ी खबरों को लेकर सफाई और खंडन जारी हो रहा है, लेकिन घुसपैठियों की राष्ट्रीयता के बारे में आई खबर को लेकर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. यदि ये गलत होता, तो निश्चित ही इसका खंडन आ जाता.
तेजस्वी का नाराज होना कितना जायज?
दरअसल 13 जुलाई को यह खबर करीब -करीब हर चैनल और अखबार में आई कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान निर्वाचन आयोग ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. ये खबरें आयोग के सूत्रों के मुताबिक लिखी गईं थीं. चुनाव आयोग के तथाकथित सूत्रों का कहना था कि बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान घर-घर जाकर किए गए दौरे में बूथ लेवल अफसरों यानी बीएलओ को नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से आए लोग बड़ी संख्या में मिले हैं. जाहिर है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण का विरोध कर रहे नेताओं को यह बहुत नागवार गुजरा.
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रकार के सूत्रों की खिल्ली उड़ाई और पत्रकारों के बारे में ऐसे अपमानजनक शब्द कहे जिसे यहां लिखना भी ठीक नहीं लग रहा है. कहा जाता है कि आदर्श लोकतंत्र वही होता है जहां पर आखिरी शख्स की बात पर भी गौर किया जाए. इसलिए चुनाव आयोग का कर्तव्य बनता है कि अगर राज्य में विरोधी दल का सबसे बड़ा नेता इस तरह के सवाल उठा रहा है तो उसका प्रॉपर उत्तर दिया जाए. जाहिर है कि ऐसे मुद्दों पर अगर चुनाव आयोग अपना मुंह चुराएगा तो ये संदेश जाएगा कि कहीं न कहीं कुछ गलत हो रहा है.
ECI को नागरिकता की जांच का कितना अधिकार
यह सवाल बड़ा कन्फ्यूजन क्रिएट करने वाला है. यह सही है कि चुनाव आयोग को नागरिकता की जांच करने का सीधा अधिकार नहीं है. यह काम गृह मंत्रालय और नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत सक्षम प्राधिकारी का है. पर संविधान में उल्लेख है कि भारत के नागरिक को ही वोट देने का अधिकार है. जो वोट दे सकता है वही चुनाव लड़ और वही सरकार बनाता है. सवाल उठता है कि अगर चुनाव आयोग को नागरिकता जांचने का अधिकार नहीं होगा तो वो किस तरह किसी विदेशी के वोटर आईडी को निरस्त कर सकेगी? यही कारण है कि ECI को संविधान के अनुच्छेद 324 और Representation of the People Act, 1950 के तहत मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने का अधिकार दिया गया है.
ECI की प्रक्रिया में बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) ने घर-घर जाकर गणना फॉर्म एकत्र कर रहे हैं. जिसमें 11 प्रकार के दस्तावेज मांगे गए. जाहिर है कि इस तरह की जांच में आयोग को बांग्लादेशी, रोहिंग्या, और नेपाली नागरिकों के नाम मिले होंगे.बताया जा रहा है कि BLOs ने जन्म स्थान, दस्तावेजों की प्रामाणिकता, और खुफिया जानकारी के आधार पर संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान की है. संदिग्ध मतदाताओं को 1 अगस्त से 30 अगस्त, 2025 तक अपनी नागरिकता साबित करने का मौका मिलेगा, और अंतिम सूची 30 सितंबर, 2025 को प्रकाशित होगी. यह प्रक्रिया Registration of Electors Rules, 1960 की धारा 21 और 22 के तहत वैध है . हालांकि नागरिकता के संबंध में अंतिम निर्णय गृह मंत्रालय ही लेता है.
विपक्ष को दिक्कत क्यों है?
दिक्कत यह है कि विपक्ष को लगता है कि ये सब जानबूझकर किया जा रहा है. RJD, कांग्रेस, AIMIM ने इसे बैकडोर NRC करार देती है. पर सवाल ये भी उठता है कि देश में एक पॉपुलेशन रजिस्टर क्यों नहीं होना चाहिए. पाकिस्तान जैसे देश ने भी पॉपुलेशन रजिस्टर बना लिया है. दुनिया के हर सभ्य देश का अपना पॉपुलेशन रजिस्टर है. हालांकि सरकार और चुनाव आयोग दोनों ही स्पष्ट कर चुके हैं कि इस तरह की कोई बात नहीं है. फिर भी एनआरसी को हौव्वा बनाया जा रहै है. बिल्कुल उसी तरह जिस सीएए का विरोध करते हुए कहा गया कि देश से मुसलमानों की नागरिकता छीनने की साजिश रची जा रही है.
विपक्ष का दावा है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर बहुत से गरीब, दलित, और मुस्लिम समुदायों को निशाना बनाने की साजिश है. इस तरह का दुष्प्रचार स्पष्ट रूप से देश के नागरिकों के अधिकारों से खिलवाड़ करना है. दुनिया भर से जब गरीब लोग भारत में घुसकर अवैध रूप से अपना अड्डा बनाएंगे तो भारत के नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं पर असर तो पड़ेगा ही. केवल यह तर्क देकर ECI का काम केवल मतदाता सूची तैयार करना है, न कि नागरिकता जांचना. यह केवल वैसा ही तर्क है कि सड़क पर चलते हुए कोई अपराध हो जाए और उसे रोकने के लिए कोई पुलिस वाला आगे आए तो कहा जाए कि आप तो दूसरे थाने के हैं आपका यहां क्या काम है?
मतलब साफ है कि अपराध को रोकना मूल उद्ैश्य नहीं है. इसलिए तमाम तरीके इफ एंड बट किए जा रहे हैं.
तेजस्वी यादव और असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों का कहना है कि बिहार में 4 करोड़ प्रवासी मजदूरों के पास पूर्ण दस्तावेज नहीं हो सकते हैं. इसके साथ ही BLOs की निष्पक्षता और ECINet सॉफ्टवेयर पर भी सवाल उठाते हैं. जब कि चुनाव आयोग कहना है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी है.यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रक्रिया को नहीं रोका है.
संयम श्रीवास्तव