झारखंड भी एनडीए-मय? बीजेपी और हेमंत सोरेन कैसे एक दूसरे की जरूरत बन रहे हैं

झारखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर होने की खबरें लगातार आ रही हैं. खबरें भाजपा और मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन की नजदीकियों को लेकर. कांग्रेस की ओर से इस तरह की खबरों पर विराम लगाने के लिए बयान भी आया. पर जेएमएम की ओर से केवल एक क्रिप्टिक पोस्ट ही आई. मतलब यहां अब भी बहुत कुछ उलझा हुआ है.

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी (फाइल फोटो) झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी (फाइल फोटो)

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:48 PM IST

झारखंड मुक्ति मोर्चा के एनडीए में शामिल होने की खबरें पिछले एक हफ्ते से लगातार चर्चा में हैं. दिल्ली से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की रांची वापसी हो चुकी है. कांग्रेस पार्टी ने भी इंडिया ब्लॉक में किसी भी तरह के खटपट से इनकार किया है. झारखंड मुक्ति मोर्चा की एक सांसद महुआ माजी ने भी इस तरह की किसी भी खबर से इनकार किया है. पर इतिहास बताता है कि इस तरह की घटनाएं जब होती हैं तो किसी को बता के नहीं होती हैं. वैसे भी राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. हेमंत सोरेन के लिए एनडीए में आने की राह मजबूरी से ज्यादा रणनीतिक भी हो सकता है. उसी तरह बीजेपी के लिए भी हेमंत सोरेन भविष्य की रणनीति का आधार हो सकते हैं. 

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की दिल्ली यात्रा और बीजेपी नेताओं से कथित बैकचैनल बातचीत की खबरों ने एनडीए में जेएमएम को शामिल करने की अफवाहों को हवा दी है. जबकि जेएमएम ने सोशल मीडिया पर 'झुकेगा नहीं' जैसे क्रिप्टिक संदेश जारी किए हैं. जाहिर है कि अभी कुछ कहा नहीं जा सकता . फिर भी हम आंकलन तो कर ही सकते हैं कि धुआं क्यों उठ रहा है? जाहिर है कि जरूरत दोनों ही ओर से है. और जब जरूरत होती है तो उसी के हिसाब चीजें बदलती भी हैं. 

हेमंत सोरेन की NDA में जाने की मजबूरियां हैं

जेएमएम का आदिवासी आधार मजबूत है, लेकिन केंद्र का दबाव और आंतरिक चुनौतियां उन्हें नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर रही हैं.

1-कानूनी और जांच एजेंसियों से अस्तित्व की रक्षा

हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर जांच एजेंसियों के साये में रहा है. 2022-23 में मनी लॉन्ड्रिंग और खनन घोटाले के आरोपों में उनकी जनवरी 2024 में गिरफ्तारी हुई. ईडी-सीबीआई की जांच आज भी चल रही हैं.अगर जेएमएम इंडिया गठबंधन में बनी रहती है, तो ये केस तेज हो सकते हैं, जाहिर है कि इससे सरकार की अस्थिरता का खतरा होगा.

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सोशल मीडिया पर चर्चाओं में कहा जा रहा है कि हेमंत बीजेपी से 'सुरक्षा कवच' की मांग कर रहे हैं, ताकि केसों में राहत मिले. हेमंत के लिए एनडीए में आना अस्तित्व की रक्षा का एकमात्र रास्ता लग रहा है, जहां वे न केवल केसों से बच सकेंगे बल्कि सत्ता मजबूत भी कर सकेंगे. परिवार की विरासत को खतरे से बचाने के लिए जरूरी है कि वो जल्द ही कोई फैसला ले लें.

2-दीवालिया होने के कगार पर झारखंड

झारखंड खनिजों से भरपूर है, लेकिन विकास के मामले में अति पिछड़े राज्यों में आता है. राज्य का कर्ज 3 लाख करोड़ से अधिक हो चुका है, और केंद्रीय बजट में झारखंड को मात्र 0.5% हिस्सा मिल रहा है. हेमंत की 'अपना झारखंड' योजनाएं अच्छी हैं, लेकिन बिना केंद्र के फंड के वे अधर में लटक रही हैं.

सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि हेमंत दिल्ली में 'विकास पैकेज' की बात कर रहे हैं. यह मजबूरी इसलिए जरूरी बन गया है क्योंकि आदिवासी समुदाय विकास की मांग कर रहा है, जैसे नौकरियां, सड़कें और स्कूल आदि. अगर एनडीए में आते हैं, तो खनन लीज, आईआईटी और एयरपोर्ट प्रोजेक्ट्स तेजी से मंजूर हो सकते हैं, जैसा बिहार में नीतीश को मिला. बिना बीजेपी के, हेमंत की सरकार वित्तीय संकट में फंस सकती है, जो 2029 चुनावों में हार का कारण बन सकती है.

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राज्य का कुल कर्ज 3 लाख करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है. केंद्र से 25,435 करोड़ अनुदान में कमी (2019-25) तथा 61,677 करोड़ जीएसटी क्षतिपूर्ति के चलते स्थिति बिगड़ी है. ई-कल्याण छात्रवृत्ति और मइया सम्मान योजना जैसे वादों को पूरा करने में देरी हो रही है. 
खनन पर निर्भरता (राजस्व का 40%) के बावजूद, केंद्र-राज्य विवाद से रॉयल्टी फंसा हुआ है. निकाय चुनाव न होने से केंद्रीय फंड रुक गए हैं और सब्सिडी (LPG पर 400 रुपये) के चलते भी बोझ बढा है. ठेकेदारों के भुगतान में कई महीनों से देर हो रही है. विकास परियोजनाएं ठप पड़ गईं हैं.

3-इंडिया गठबंधन से बढ़ती दूरी नाराजगी में बदली

हेमंत सोरेन की सरकार 2024 चुनावों में इंडिया गठबंधन के दम पर बनी, लेकिन बिहार चुनावों में अपनी उपेक्षा से दुखी हेमंत सोरेन अगर एनडीए को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रखते हुए दिख रहे हैं तो इसमें कोई भी ताज्जुब की बात नहीं है. बिहार चुनावों में महागठबंधन ने जेएमएम की उपेक्षा की थी. इसके बाद जेएमएम सरकार में पर्यटन मंत्री सुदिव्य कुमार ने बयान दिया था कि कांग्रेस और आरजेडी ने साजिश रचकर झामुमो को बाहर किया है. झामुमो सरकार में शामिल एक मंत्री ने बयान दिया था कि इंडिया ब्लॉक में रहना है या नहीं इसकी हम अब समीक्षा करेंगे. झारखंड में बीजेपी अकेले 25-30 सीटें जीत रही है, जबकि जेएमएम आदिवासी बेल्ट पर निर्भर है. ऐसी भी अफवाहें हैं कि 8-11 कांग्रेस विधायक एनडीए का समर्थन कर सकते हैं. इंडिया ब्लॉक में दरारें हेमंत को अलग-थलग कर रही हैं. एनडीए में आकर वे 'राष्ट्रवादी' छवि बना सकेंगे, जो लोकसभा चुनावों में फायदेमंद होगा. 

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बीजेपी के लिए हेमंत सोरेन क्यों मजबूरी बन रहे हैं

बीजेपी बिहार चुनावों की जीत से उत्साहित है, लेकिन झारखंड में आदिवासी वोट की कमी और इंडिया ब्लॉक की एकता उसे परेशान कर रही है. हेमंत को साथ लाना बीजेपी के लिए केवल सत्ता हासिल करना नहीं है.बीजेपी हेमंत के जरिए और भी बहुत कुछ हासिल करना चाहती है. 

1-बीजेपी के लिए आदिवासी वोट बैंक का विस्तार

बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में हार है. 2024 चुनावों में 28 एसटी सीटों में से मात्र 2 पर ही जीत मिली, जबकि जेएमएम ने अधिकांश हथिया लीं. 2025 तक, लोकसभा की 5 एसटी सीटों पर भी प्रदर्शन खराब रहा. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि हेमंत का साथ लेकर बीजेपी 'ट्राइबल कार्ड' खेल सकेगी. 

यह मजबूरी इसलिए मजबूत है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी असंतोष (जैसे पेसा एक्ट) बीजेपी की छवि खराब कर रहा है. एनडीए में जेएमएम को शामिल कर (34+21=55+ सीटें), बीजेपी 2029 चुनावों में मजबूत हो सकती है. बिना हेमंत के, झारखंड 'लॉस्ट कॉज' बना रहेगा, जैसा केरल. यह कदम बीजेपी को ओडिशा-छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी फायदा पहुंचाएगा.

2-पूरी हिंदी पट्टी पर नियंत्रण का सपना

हिंदी पट्टी में एकमात्र दूसरे बचे राज्य झारखंड को भी बीजेपी एनडीए में लाना चाहती है. झारखंड में विधायकों का गणित इस संभावना को बल दे रहा है. जेएमएम (34) + बीजेपी (21) + अन्य (3) = 58 सीटें, जो बहुमत (41) पार कर जाती हैं.  यह सिर्फ सत्ता का खेल नहीं, बल्कि हिंदी पट्टी में बीजेपी की प्रभुत्व स्थापित करने की रणनीति है. 

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हिंदी पट्टी—उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली और झारखंड—में बीजेपी ने 2014-19 के दशक में जीत लिया था. 2019 में यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़ में हार के बाद भी, बिहार में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन ने वापसी दिलाई. 2023-24 में राजस्थान-एमपी जीते, 2024 में यूपी-छत्तीसगढ़ में वापसी हुई, और बिहार 2025 की जीत ने पट्टी को लगभग एनडीए का किला बना दिया.

 लेकिन झारखंड एकमात्र ऐसा राज्य बचा है, जहां हेमंत सोरेन की जेएमएम ने आदिवासी वोट बैंक के दम पर इंडिया गठबंधन को सत्ता सौंप दी. यहां बीजेपी की कमजोरी आदिवासी बेल्ट की सीटें ही बनीं.

3-बीजेपी का समावेशी राजनीतिक दल का सपना पूरा करना

हेमंत को साथ लेकर बीजेपी न केवल आदिवासी समुदाय को गले लगाएगी, बल्कि पूर्वोत्तर, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाएगी. यह कदम 'ट्राइबल कार्ड' को मजबूत करेगा, जैसा राम विलास पासवान या नीतीश कुमार के साथ हुआ. इन लोगों का साथ लेकर बीजेपी बिहार के सबसे कमजोर तबके तक पहुंच बना सकी है. 

समावेशी पहचान बनाने का सपना इसलिए पूरा होगा क्योंकि बीजेपी लंबे समय से दलितों और क्षेत्रीय दलों के साथ 'समायोजन' कर रही है. बिहार में चिराग पासवान का साथ, महाराष्ट्र में अजित पवार का विलय, ये उदाहरण साबित करते हैं कि एनडीए अब 'सभी के लिए' है.  हेमंत का साथ आदिवासी असंतोष (पेसा एक्ट, भूमि अधिकार) को दूर करेगा, और मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' को आदिवासी संदर्भ देगा.

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